पूरे विश्व में प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन चुकी है जो बहुत सारी बीमारियों का कारण भी है। इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक वायु गुणवत्ता के मानकों में डेढ़ दशक बाद बदलाव करते हुए कुछ नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों में पीएम (पार्टकिुलेट मैटर)-2.5 और पीएम-10 के अलावा चार अन्य प्रदूषकों-ओजोन, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड की सालाना औसत सीमा पर भी कड़ाई बरती गई है। 1987, 2000 और 2005 के बाद यह चौथी बार है, जब इस वैश्विक संस्था ने हवा में घुलते जहर के नए और पहले की तुलना में कठोर पैमाने तय किए गए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई गाइडलाइंस के अनुसार 2005 में हवा में पीएम-2.5 की सालाना औसत सीमा, जो 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर निर्धारित थी, उस सीमा को घटाकर अब पांच माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर कर दिया गया है वहीं पीएम-10 की सालाना औसत सीमा 15 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर कर दी गई है, जो पहले एक घनमीटर पर 20 माइक्रोग्राम थी। वहीं ओजोन गैसों के लिए एक घनमीटर पर सालाना औसत सीमा 60 माइक्रोग्राम, नाइट्रोजन आक्साइड के लिए 10, सल्फर डाईआक्साइड के लिए 40 और कार्बन मोनोक्साइड के लिए चार माइक्रोग्राम निर्धारित की गई है।
जहरीला हो रहा है आकाश
वायु अब अपने साथ-साथ नई बीमारियों को भी पैदा कर रही है। स्वास्थ्य पत्रिका द लैंसेट में प्रकाशित प्लेनेटरी हेल्थ रिपोर्ट-2020 के अनुसार 2019 में भारत में सिर्फ वायु प्रदूषण से 17 लाख मौतें हुईं, जो उस वर्ष देश में होने वाली कुल मौतों की 18 फीसद थी। पिछले दो दशक में भारत में वायु प्रदूषण 42 फीसद तक बढ़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 84 फीसद भारतीय उन इलाकों में रह रहे हैं, जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से ऊपर है।