अफगानिस्तान के ताजा हालत से आप सभी बाकिफ हैं। तालिबान के हाथों में आई सत्ता का किस तरह तालिबानियों के द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है ये आप सभी के सामने हैं। लेकिन इसके बाबजूद पंजशीर नाम का एक समुह लगातार तालिबानियों के रास्ते का काँटा बन उनके विजयरथ को रोकने की कोशिश कर रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये पंजशीर क्या है? और इसका अफगानिस्तान की राजनीति में क्या प्रभाव है? एक तरफ जहाँ पूरा राष्ट्र तालिबानियों के आतंक से प्रभावित होकर इधर उधर भाग रहे हैं लेकिन पंजशीर एक ऐसा इलाका है जहाँ कोई अफरातफरी नहीं है, कोई भाग नहीं रहा, किसी को छिपने पर मजबूर नहीं होना पड़ रहा, किसी को दरवाजे पर दस्तक से डर नहीं लगता।
भौगोलिक स्थिति
पंजशीर को ‘पंजशेर’ भी कहते हैं जिसका मतलब ‘पांच शेरों की घाटी’ होता है। काबुल के उत्तर में 150 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस घाटी के बीच पंजशीर नदी बहती है। हिंदुकुश के पहाड़ भी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। पंजशीर एक अहम हाइवे भी है, जिससे हिंदुकुश के दो पास का रास्ता निकलता है। खवाक पास से उत्तरी मैदानों तक जाया जा सकता है और अंजोमन पास बादाखशन से गुजरता है। पंजशीर घाटी के हर जिले में ताजिक जाति के लोग मिलेंगे। सालंग में ये बहुमत में हैं। ताजिक असल में अफगानिस्तान के दूसरे सबसे बड़े एथनिक ग्रुप हैं, देश की आबादी में इनका हिस्सा 25-30% है। पंजशीर में हजारा समुदाय के लोग भी रहते हैं जिन्हें चंगेज खान का वंशज समझा जाता है। इसके अलावा पंजशीर में नूरिस्तानी, पशई जैसे समुदायों के लोग भी रहते हैं।
हर युद्ध से अप्रभावित रहा पंजशीर
पंजशीर पर कब्जे की हर कोशिश हर बार नाकाम रही है। अफगानिस्तान पर जब अमेरिका बम बरसा रहा था, उस वक्त भी पंजशीर इस हमले से प्रभावित नहीं हो पाया। चूंकि इस घाटी में ना तो कोई खूनी संघर्ष हुआ, ना ही कोई आपदा आई… इस वजह से अमेरिकी मानवीयता कार्यक्रमों के तहत इसे मदद भी नहीं मिल सकी। आपको बता दें कि सात जिलों वाले प्रांत के 512 गांवों में आज भी पंजशीर में बिजली और पानी की सप्लाई नहीं होती। रोज कुछ घंटे जेनरेटर चलाकर लोग काम चलाते हैं।
पंजशीर की ताकत क्या है?
नॉर्दन अलायंस का जन्म ही तब हुआ था जब तालिबान ने 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसका पूरा नाम ‘यूनाइटेड इस्लामिक फ्रंट फॉर द सालवेशन ऑफ अफगानिस्तान’ है। इस यूनाइटेड फ्रंट के बीच अफगानिस्तान के कई बड़े नाम थे जिसमें मसूद के अलावा राष्ट्रपति बुहानुद्दीन रब्बानी भी शामिल थे। शुरुआत में इसमें केवल ताजिक ही थे, मगर 21वीं सदी की शुरुआत होते-होते अन्य नस्लीय समूहों के लोग भी इसका हिस्सा बन गए। तालिबान के खिलाफ लड़ाई में नॉर्दर्न अलायंस को भारत के अलावा ईरान, रूस, तुर्की, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से साथ मिला है। तालिबान को पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने खूब मदद पहुंचाई। अमेरिका ने जब 9/11 के बाद अफगानिस्तान पर हमला किया, तब उसने नॉर्दर्न अलायंस की मदद ली। जब तालिबान को बाहर कर दिया गया, तब नॉर्दर्न अलायंस भंग हो गया और पार्टियों ने अंतरिम अफगान प्रशासन का समर्थन किया। पंजशीर के लोगों में अपनी जमीन बचाने का जज्बा कूट-कूटकर भरा है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में स्थानीय निवासी कहता है, “हम मुकाबला बरेंगे, सरेंडर नहीं। हम कभी घुटने नहीं टेकेंगे। पंजशीर के लोग कभी आतंकियों के आगे कभी सरेंडर नहीं करेंगे… ऐसा होने से पहले हम मौत को गले लगा लेंगे।”