चुनाव आते आते बदले ममता के सुर, पीएम की योजनाओं से लेकर जनता के लिए जागरूक हुईं ममता

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के नजदीक आते ही ममता बनर्जी के सुर अचानक से बदलने लगे हैं। पीएम मोदी की योजनाओं को उन्होंने बंगाल में लागू करने की तैयारी कर ली है। साथ ही इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ भी ममता बनर्जी पहली बार फ्रंट पर आकर बात करने लगी हैं।

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2021 में पश्चिम बंगाल की धरती पर होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीख का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे ही बंगाल में राजनीतिक में उठक पटक और तेज हो रही है। पार्टियों के नेताओं का दलबदल खेल जारी है तो वहीं तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सुर बदले दिखाई देने लगे हैं। जिस तरह से पिछले कुछ महीनों में गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ताबड़तोड़ जनसभाएं की हैं उससे एक बात तो साफ है कि अब ममता बनर्जी नई रणनीति बनाने पर उतारू हो गई हैं।

ममता बनर्जी की राजनीति में किस तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन योजनाओं पर ममता बनर्जी ने रोक लगाई थी वह अब जारी होने लगी हैं। दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने भी इस्लामिक कट्टरता के खिलाफ मोर्चा खोलने की बात कही थी। ममता के बदले रुख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार उन्होंने अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र करते हुए लोगों से इससे सावधान रहने की अपील की है।

इसके अलावा ऐसा माना जा रहा है कि बंगाल में पीएम-किसान सम्मान निधि योजना को भी लागू किया जा सकता है। हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार जल्द ही नए कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर सकती है। लेकिन पीएम सम्मान निधि योजना को बंगाल में लागू करने की बात स्वीकार कर ममता बनर्जी ने खुद को कई तरह के सवालों के घेरे में खड़ा कर लिया है। क्योंकि यह वही ममता बनर्जी थीं जिन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को पूरी तरह से नकारने की बात कही थी। ऐसे में अब सवाल यह है कि आखिर ममता बनर्जी और टीएमसी के साथ ऐसा क्या हुआ कि वह प्रधानमंत्री की योजनाओं से लेकर जनता के बीच जागरूक होने की पहल को और बढ़ावा देने में लग गए हैं?

बीजेपी या खुद से डर?

ममता बनर्जी ने जिस तरह से खुद की राजनीति को एक अलग मोड़ देना शुरू कर दिया है उसके पीछे 2 कारण हो सकते हैं। ममता बनर्जी की सरकार में बंगाल और खास कर केरल में हुई सांप्रदायिक हिंसा आज तक किसी से छिपी नहीं है। जनता ने अब इस बात को कबूलना शुरू कर दिया है कि ममता राज में हिंसा का चरम पर रहना आम बात हो गयी। शायद यही कारण है कि अब उन्हें भी इस बात का भय सताने लगा है कि जनता इस बार चुनाव में उनके खिलाफ मतदान कर सकती है। दूसरी तरफ पिछले 2 महीनों में बंगाल की जनता ने बीजेपी और उनकी योजनाओं का खुले दिल से स्वागत किया है। अमित शाह और जेपी नड्डा ने पीएम मोदी की योजनाओं को जमीनी स्तर पर उतारना शुरू कर दिया है। वह लोगों के बीच जाकर इन योजनाओं की आवश्यकतओं को समझा रहे हैं। ममता सरकार की बेचैनी अब इतनी बढ़ गयी है कि उन्हें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को अपना हथियार बना कर चुनावी मैदान में उतरने की जरूरत पड़ गयी है।

हिन्दू मतों को सहेजने की गंदी साजिश

पश्चिम बंगाल में हिन्दू शरणार्थी और प्रदेश में रहने वाले अन्य हिन्दू परिवारों पर किस तरह से अत्याचार होते आये हैं ये ममता बनर्जी भी अच्छे से जानती हैं। यही वजह है कि हिन्दू मतों को सहेजने के लिए ही उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र किया है। लेकिन क्या चुनावी समय नजदीक आता देख वोट बैंक की राजनीति ममता बनर्जी को शोभा देती है? जिन हिंदुओ की पिछले 5 सालों में TMC और उनकी मुख्या ने सुध नहीं ली, वह अब इस्लामिक कट्टरता की बात कह कर एक समुदाय के मतों को सहेजने की गंदी राजनीति क्यों कर रही है? शायद उन्हें भी इस बात का आभास हो गया है कि यह वोट बैंक उनसे धीरे-धीरे कट रहा है और भाजपा की यही असली ताकत है। इसी कारण अब उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है।

हिंसा को बढ़ावा देने वालों के बदलने लगे सुर

पिछले कुछ समय मे ही अकेले बंगाल में राजनीतिक हिंसा में करीब 100 से ज्यादा भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो चुकी है। इन हत्याओं के दोषियों के खिलाफ गिरफ्तारी तो दूर, TMC ने कार्यवाही करनी तक जरूरी नहीं समझी। ये सब खुले आम ममता बनर्जी सरकार के राज में हुआ। तो फिर अब लोगों के बदलते नज़रिए को मद्देनजर रखते हुए ममता बनर्जी और TMC को कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ मोर्चा खोलने की याद क्यों आई? कहीं ना कहीं बंगाल के आने वाले चुनावों की तैयारी करने से पहले उन्हें देश में हुए कुछ ताज़ा चुनाव परिणामों पर नज़र डाल लेनी चाहिए ताकि उन्हें वोटर का मनोविज्ञान समझने में आसानी हो।

कहीं भारी ना पड़ जाए ममता बनर्जी पर उन्ही का दांव

वैसे तो ममता बनर्जी के बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में दोनों ही कार्यकाल देश भर में चर्चा का विषय रहे हैं। चाहे वो 2011 का उनका कार्यकाल हो जब उन्होंने लगभग 34 साल तक बंगाल में शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी को भारी बहुमत के साथ सत्ता से बेदखल करके राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली हो। ममता बनर्जी और TMC एक तबके और अपनी स्पष्ट राजनीति की वजह से जनता की नज़रों में रही हैं। लेकिन अब बदलाव का दांव ममता बनर्जी पर ही भारी पड़ता नजर आ रहा है। इस बार का बंगाल चुनाव TMC बनाम भाजपा समेत अन्य पार्टियों तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह चुनाव देश की राजनीति के लिए भविष्य की दिशा भी तय करेगा। यहां से आने वाले कुछ महीने ममता बनर्जी के लिए सबसे ज्यादा अहम रहने वाले है।

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