किसान आंदोलन के आड़ में जानिये क्या-क्या हुआ? विदेशी प्रोपेगेंडा पर अमेरिका और भारत ने कैसे लगाई रोक!

सरकार के द्वारा बनाए गए कृषि कानून किसानों को सशक्त बनाने के लिए बनाया गए थे, लेकिन अब इसका फायदा कुछ विपक्षी दल उठा रहे हैं और अब इससे विदेश में रहने वाले लोगों को भी फायदा हो रहा है। भारत के खिलाफ वह लोग प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं, जो अपने आप को बहुत बड़ा लिबरल बताते हैं।

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केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानून किसानों को सशक्त बनाने के लिए बनाया गए थे, लेकिन कुछ लोगों के निजी मतलब के लिए अब इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। दरअसल पिछले ढाई म हीने से किसान संगठन दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर धरना दे रहे हैं और केंद्र सरकार की खिलाफत कर रहे हैं। पहले नाराजगी सरकार के द्वारा बनाए गए कृषि कानून के लिए थी, लेकिन अब इसका फायदा कुछ विपक्षी दल उठा रहे हैं और अब इससे विदेश में रहने वाले लोगों को भी फायदा हो रहा है। दरअसल ऐसा हम नहीं बोल रहे हैं। बल्कि केंद्र सरकार ऐसा बोल रही है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में जो भी हुआ है, उससे यही पता चल रहा कि किसान आंदोलन की आड़ में कुछ राजनीतिक पार्टियां और कुछ विदेशी ताकतें भारत की छवि खराब करने में लगी हुई हैं और वह सोशल मीडिया को अपना सहारा बना रही हैं।

आज हम आपको किसान आंदोलन से जुड़ी हुई कुछ ऐसी बातों के बारे में बताने वाले हैं, जो काफी गौर करने वाली है-

किसान संगठनों ने 24 सितंबर 2020 से केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि बिल कानून कानून के खिलाफ प्रदर्शन प्रारम्भ किया था। उन्होंने सबसे पहले दिन अपने संबोधन में दावा किया कि उन्हें अपनी लड़ाई के लिए किसी भी राजनीतिक संगठन की जरूरत नहीं है। वह सीधे रूप से केंद्र सरकार से इस बारे में बात करना चाहते हैं। हालांकि शुरुआती कुछ दिनों में केंद्र सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन जब मामला बढ़ता गया तब केंद्र ने भी दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए किसान संगठनों के नेताओं को बातचीत करने के लिए बुलाया था। दोनों गुटों के बीच में 11 बार वार्ता हुई, लेकिन समाधान नहीं निकल पाया। किसान संगठन संशोधन के लिए तैयार नहीं थे। वह कृषि बिल कानून वापस लेना चाहते थे। वहीं केंद्र भी अपनी बात पर अटल था कि वह इन बिलों को वापस नहीं लेने वाली, लेकिन संशोधन के लिए तैयार है या फिर डेढ़ साल के लिए वह कानून पर रोक लगा सकती है।

किसान आंदोलन शुरुआती 1 महीने में शांतिपूर्ण तरीके से किया जा रहा था, लेकिन धीरे-धीरे इस आंदोलन में विपक्ष ने अपनी पैठ बनाना शुरू कर दी। सबसे पहले दिल्ली सरकार ने मुफ्त वाईफाई की घोषणा कर दी। कांग्रेस ने मुफ्त खाने की घोषणा कर दी। सभी दल कुछ ना कुछ लालच देकर किसान संगठनों में घुल मिल गए। हालांकि किसान जनवरी के महीने में भी मदद मांगने से साफ इंकार कर रहे थे, लेकिन जनवरी के आखिरी महीने में किसान भी विपक्ष के साथ मिल गए और कुछ नेता तो ऐसे थे कि विपक्ष की बैठकों में भी शामिल होते थे।

किसान आंदोलन का सबसे शर्मनाक दिन वह था, जब गणतंत्र दिवस के दिन परेड के समय कथित रूप से किसान कहे जाने वाले लोग जबरदस्ती दिल्ली के अंदर घुस गए और उन्होंने लाल किले में जाकर उत्पात मचाया और लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज के साथ धर्म विशेष का झंडा फहराया, जिसकी वजह से भारत की विश्व भर में बदनामी हुई। पड़ोसी मुल्क के एक बड़े नेता ने अपने ट्विटर अकाउंट से ट्वीट करते हुए कहा, “it’s time for tea ब्लैक डे फॉर इंडिया (Black day For India)।

इसी बीच कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने एक बार फिर दोस्ती का हाथ किसानों की ओर बढ़ाया और बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन किसान नहीं माने। वहीं तीन दिन पहले विदेशी पॉप स्टार रिहाना ने सबसे पहले किसान आंदोलन पर ट्वीट करते हुए कहा, “हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे?” इसके साथ ही उन्होंने कई हैशटेग प्रयोग किये। ताकि इसे सोशल मीडिया पर सर्कुलेट कर दिया जाए। रिहाना के ट्वीट के तुरंत बाद अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने भी भारत के खिलाफ कई तरह के बयान दिए और किसान आंदोलन का समर्थन किया। उन्होंने भी कई हैशटेक प्रयोग किये। सामाजिक कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, पोर्नस्टार मियां खलीफा जैसे नाम इसमें जुड़ते गए और सभी ने किसानों के लिए अपनी हमदर्दी दिखाना शुरू कर दी। ये सभी सितारे अपने आप को लिबरल बताते हैं। भारत सरकार ने भी हार नहीं मानी और ऑफिशल स्टेटमेंट जारी करके सितारों को आगाह कर दिया कि जब तक तथ्यों के बारे में पूर्ण जानकारी ना हो, तब तक ऐसे मामलों में टांग अड़ाना सही नहीं है।

वहीं दूसरी ओर वे बॉलीवुड सितारे जो कभी भी किसी मामले में मुखर नहीं होते हैं। वह देश की बात आई तो मुखर हो गए और उन्होंने जनता से दरख्वास्त की कि वह विदेशी ताकतों की बातों में ना आएं और एकता का प्रतीक बनें। उन्होंने भी इंडिया टुगेदर जैसे हैशटेग का प्रयोग किया था, लेकिन विपक्ष को यह बात भी पसंद नहीं आई और बीते दिन बिहार की सबसे बड़ी पार्टी कहे जाने वाली राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता ने क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के बारे में यह बोल दिया कि सचिन जैसे लोगों को भारत रत्न देना शर्मनाक बात है। क्योंकि उन्होंने देश के खिलाफ बोलने वाली रिहाना और मिया को दो टूक जवाब दिया था।

हम आपको बता दें किसान आंदोलन के जरिए विदेश में बैठकर लोग भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं। विपक्ष पिछले दिनों बार बार बोल रहा था कि अमेरिका के लोग भी कृषि कानून की खिलाफ़त कर रहे हैं, क्योंकि वहीं के सितारे सबसे ज्यादा ट्वीट कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष यह बात भूल गया कि बराक ओबामा के बाद डोनाल्ड ट्रंप और अब जो वाइडन भी पीएम मोदी के मुरीद हो चुके हैं, जहां कई साल पहले पीएम मोदी को पासपोर्ट नहीं दिया गया था। वही अमेरिका अब पीएम मोदी का गुणगान गाते रहता है। बीते दिन अमेरिका के नए प्रेसिडेंट जो बाईडेन भी भारत द्वारा बनाए गए नए कृषि बिल कानून का समर्थन किया है, जिसके बाद वहां के सितारों की बोलती बंद हो गई है, क्योंकि उनका राष्ट्रपति खुद इस कानून का समर्थक बन गया है। लेकिन अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो अपने आप को लिबरल बोलकर प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश कर रहीं हैं, लेकिन भारत सरकार भी लिबरल गिरोह का भंडाफोड़ करने में जुट चुकी है।

वही केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बीते दिन फिर से एक बार किसानों की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है और कहा कि हम एक बार फिर से बातचीत करते हैं और इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करते हैं, क्योंकि देश की बदनामी करके किसी का भी फायदा नहीं होगा। शायद आज कुछ लोग इस बात की खुशी मना लेंगे, लेकिन कल उन्हें इस बात का एहसास जरूर होगा कि देश का बुरा करके कोई भी व्यक्ति ज्यादा दिनों तक बच नहीं सकता है।

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