मुख्य कलाकार: संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल, ईशा तलवार
निर्देशक: हार्दिक मेहता
संगीतकार: रचिता अरोड़ा
फिल्मों में साइड कैरेक्टर सब्जियों में आलू की तरह होता है। जिस प्रकार आलू किसी भी सब्जी में आसानी से मिक्स होकर खाने का स्वाद बढ़ा देता है, लेकिन खाने के बाद शायद ही कोई आलू को याद रखता होगा। ठीक इसी प्रकार एक साइड कैरेक्टर बच्चन, कपूर और कुमार किसी के भी साथ फिट हो जाता है। लेकिन फिल्म जगत की कमजोरी यही है कि ऑडियंस केवल हीरो, हीरोइन और विलेन को ही याद रखती है और साइड कैरेक्टर की ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। फिल्मी दुनिया के साइड़ कैरेक्टर्स की कहानी ही दर्शाती है निर्देशक हार्दिक मेहता की नई फिल्म ‘कामयाब’। इस फिल्म में संजय मिश्रा, दीपक डोबरियाल और ईशा तलवार लीड रोल में नज़र आने वाले हैं।
कहानी
फिल्म में एक साइड कैरेक्टर सुधीर (संजय मिश्रा) की कहानी दिखाई जाती है। सिनेमा के एक दौर में वह लगभग हर दूसरी फिल्म में किसी छोटे-मोटे रोल में दिखा करता था। लेकिन अब वह लाइमलाइट से दूर अपने छोटे से कमरे में खुश रहता है। एक दिन अचानक एक पत्रकार सुधीर का इंटरव्यू करने आती है और उसे बताती है कि वह अब तक 499 फिल्मों में काम कर चुके हैं। 500 फिल्मों का रिकॉर्ड बनाने के लिए उसे मात्र एक और फिल्म में काम करना होता है। अब सुधीर यह रिकॉर्ड कायम करने की ठान लेता है।
सुधीर को लगता है कि 500 फिल्म पूरी हो जाने के बाद उसे एक कामयाब एक्टर की श्रेणी में जगह मिल जाएगी। इस काम में उसकी मदद करता है शागिर्द गुलाटी (दीपक डोबरियाल) जो एक साइड एक्टर से कास्टिंग डायरेक्टर बन चुका होता है। वह सुधीर का रिकॉर्ड पूरा करने की कोशिश करता है, लेकिन यह इतना आसान नहीं होता। आज के समय में एक छोटा सा रोल प्ले करने के लिए भी हज़ारों आर्टिस्ट लाइन में खड़े होते जाते हैं। सुधीर का यह सपना किस प्रकार पूरा होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
निर्देशन
निर्देशक हार्दिक मेहता ने फिल्मों की दुनिया के उस पहलु को उजागर करने की कोशिश की है, जिनकी ओर शायद कोई ध्यान भी नहीं देता। क्या आपको याद है कि आपने अभी तक जितनी फिल्में देखी हैं उसमें चौकीदार का, चाय वाले का, चपरासी या अन्य छोटे-मोटे किरदार किसने निभाए थे। यकीनन आपका जवाब भी ना ही होगा। लेकिन आज के समय में अवार्ड सेरेमनी जैसे समारोह में फिर भी इस सपोर्टिंग और साइड एक्टर्स के लिए भी कैटेगरी बना दी गई है, जिससे नए चेहरों को पहचान मिलने लगी है। फिल्म की कहानी रोमांचक है, लेकिन स्क्रीनप्ले बेहद कमजोर है। सेकेण्ड हाफ में दर्शकों को नींद आने लगती है। हालांकि क्लाइमैक्स देखने के बाद आपको अपने पैसे वसूल होते नज़र आएंगे।
एक्टिंग
फिल्म में केवल संजय मिश्रा की एक्टिंग पर ही ध्यान दिया गया है। कहानी देखकर ऐसा लगता है कि संजय मिश्रा किसी सुधीर की नहीं बल्कि अपनी खुद की कहानी बता रहे हों। संजय मिश्रा अभी तक 100 से अधिक फिल्मों में काम कर चुके हैं और बॉलीवुड में अब उनका नाम सीनियर एक्टर की श्रेणी में आता है। लेकिन फैन फोलोइंग के मामले में वह आज भी बहुत पिछड़े हुए नज़र आते हैं। इसके अलावा दीपक डोबरियाल भी अपने रोल में फिट नज़र आते हैं।
इस तरह की फिल्म लोग थियेटर पर जाकर देखना कम ही पसंद करते हैं, साथ ही इस कैटेगरी की फिल्म देखने वाले दर्शकों की संख्या भी बेहद कम है। हालाकिं फिल्म फेस्टिवल्स में कामयाब जैसी फिल्मों को काफी प्रसिद्धि मिलती है। बेहद कम बजट में बनी इस साधारण सी फिल्म का निर्देशन रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट और दृश्यम फिल्म्स ने मिलकर किया है। फिल्म का बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होना तो तय है। लेकिन ये देखना मजेदार होगा कि संजय मिश्रा जैसे दमदार कलाकार फिल्म बागी 3 को किस हद तक टक्कर दे पाते हैं।
Image Source: Tweeted by @Suresh_Mathew_