एक नहीं पाँच पद है राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ में जो आपने पहले कभी नहीं सुने होंगे, जानिए राष्ट्रगान से जुड़ी कुछ अन्य दिलचस्प बातें

बहुत कम लोग ये बात जानते है कि ‘जन गन मन’ गीत में कुल पाँच पद है, लेकिन संविधान में केवल पहले पद को ही राष्ट्रगान के रुप में अपनाया गया है। आज हम आपको इस गीत के पूरे पाँच पदों के बारे में बता रहे है, जो शायद ही आपने पहले कहीं सुना होगा या पढ़ा होगा।

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बचपन से लेकर आज तक हमने ना जाने राष्ट्रगान (National Anthem) कितनी बार गाया होगा। आप में से अधिकांश लोगों को ‘जन गन मन’ पूरा याद भी होगा। लेकिन क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानते है। सन 1911 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार राष्ट्रगान सार्वजनिक तौर पर गाया गया था। राष्ट्रगान के बारे में बताया जाता है कि सन 1911 में जब ब्रिटेन के राजा जॉर्ज V (George V) और क्वीन मेरी (Mary) भारत आए थे, तो उनके सम्मान में रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindra Nath Tagore) ने ये गीत लिखा था। उस दौरान जॉर्ज V को ही भारत का भाग्य विधाता माना गया था।

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रबिन्द्रनाथ टैगोर ने इसकी रचना मूलरूप से बंगाली भाषा में की थी, जिसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी उन्होंने ही 1919 में ‘दि मॉर्निंग सांग ऑफ इंडिया’ (The Morning Song of India) के नाम से किया था। बाद में सुभाष चंद्र बॉस द्वारा इसका हिंदी अनुवाद कराया गया और 24 जनवरी, 1950 को इसे संविधान में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त हुआ।

राष्ट्रगान (National Anthem) गाने का एक समय भी निर्धारित है, जिसे लयबद्ध तरीके से गाने में कुल 52 सेकेण्ड्स लगते है। बहुत कम लोग ये बात जानते है कि ‘जन गन मन’ गीत में कुल पाँच पद है, लेकिन संविधान में केवल पहले पद को ही राष्ट्रगान के रुप में अपनाया गया है। आज के समय में जॉर्ज V की बजाय भारत के संविधान को सर्वोपरि मानकर पूरा देश यह गीत गाता है और संविधान को ही देश का भाग्य विधाता माना जाता है।

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आज हम आपको इस गीत के पूरे पाँच पदों (5 Stanzas of National Anthem) के बारे में बता रहे है, जो शायद ही आपने पहले कहीं सुना होगा या पढ़ा होगा। जिस प्रकार पहले पद में यानी राष्ट्रगान में भारत के भूगोल का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार अन्य पदों में भारत के सभी धर्म आदि समेत कई बातों का ज़िक्र किया गया है। पूरा राष्ट्रगान (Full National Anthem Lyrics) इस प्रकार है-

जनगणमन अधिनायक जय हे, भारत भाग्यविधाता
पंजाब सिंधु गुजरात मराठा, द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा, उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गाहे तव जयगाथा
जनग मंगलदायक जय हे, भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।

अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध सिक्ख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे, तव सिंहासन-पाशे, प्रेमहार हॉय गाँथा
जनगण एक्य विधायक जय हे, भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।

पतन अभ्युदय वन्धुर पन्था, युग युग धावित यात्री
हे चिरसारथि, तव रथचक्रे मुखरित पथ दिनरात्रि
दारुण विप्लव माझे, तव शंखध्वनि बाजे, संकट दुःख त्राता
जनगण पथ परिचायक जय हे, भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।

घोरतिमिरघन निविड़ निशीथे, पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता
जनगण दुःखत्रायक जय हे, भारत भाग्यविधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।

रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले
तव करुणारुणरागे निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा
जय जय जय हे, जय राजेश्वर, भारत भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।

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