क्या देश के विद्यालयों में श्रीमद्भागवत की शिक्षा दी जा सकती है? यह एक ऐसा सवाल है जो लगातार देश के लोग पूछ रहे हैं। लेकिन अब इसका जवाब भी लोकसभा की कार्यवाही के दौरान केंद्रीय मंत्री के द्वारा दे दिया गया है। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान महाराष्ट्र के भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी ने प्रश्नकाल के दौरान सदन में सवाल किया था कि क्या सरकार देश भर के स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाने पर विचार कर रही है। इसका जवाब देते हुए भारत सरकार की केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने संसद में कहा कि संविधान के तहत शिक्षा राज्य का विषय है, अगर राज्य सरकारें चाहे तो श्रीमद्भागवत गीता को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर सकती है। केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री ने आगे बताया कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की कक्षा सातवीं और आठवीं में श्रीमद्भागवत गीता के कुछ अंशों को पढ़ाया भी जा रहा है।
मध्यप्रदेश में शुरू हो चुकी है गीता और रामायण की शिक्षा
एमपी के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने कुछ समय पहले कहा था, ‘जो कोई भी छात्र भगवान राम के चरित्र और उनके कामों के बारे में जानना चाहता है, वह पाठ्यक्रमों के जरिए पढ़ सकता है। हम गजल के रूप में उर्दू भी पढ़ाने जा रहे हैं। ये एक स्वैच्छिक विषय रहेगा। छात्र अपनी मर्जी के अनुसार पढ़ सकते हैं।इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।’
मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा था कि रामचरितमानस की पढ़ाई में कोई बुराई नहीं है ये स्वदेशी शिक्षा प्रणाली और नई शिक्षा नीति के तहत इसे लागू करने की पहल की है। इसे भगवाकरण कह लो या फिर कुछ और। हमारी नई शिक्षा नीति में नये कोर्स के लिए दाखिले की प्रक्रिया शुरू की है। जो अध्ययन मंडल बना था उसी ने नया सिलेबस बनाया है। उसी में दर्शन के रूप में श्रीरामचरितमानस का पाठ्यक्रम 100 अंकों के साथ शामिल किया है।