5 दशकों तक बिना सरकार में रहे किस तरह हिंदू हृदय सम्राट बाला साहेब ने की महाराष्ट्र पर हुकूमत

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क्या आपने कोई ऐसी शव यात्रा देखी है जिसमें लाखों की भीड़ हो, कुछ लोग खामोश खड़े हों, कुछ लोग अचंभित हों, ऐसा लग रहा हो, मानो एक व्यक्ति के लिए लाखों की भीड़ ईश्वर से लड़ने के लिए तैयार खड़ी है। पूरा वातावरण खामोश हो और इस सन्नाटे में कहीं से एक आवाज उठती हो ‘बाला साहेब ठाकरे’ तो पूरा वातावरण ‘अमर रहे !अमर रहे!’ के नारे से गूंज उठता हो। यह वही बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackrey) थे, जिनकी एक आवाज पर पूरा महाराष्ट्र जल उठता था और उन्हीं की एक आवाज पर पूरा महाराष्ट्र खामोश हो जाता था।

लेकिन आज वही बाला साहब ठाकरे (Bal Thackrey) लकड़ियों के ढेर पर खामोश लेटे हुए थे। उनकी कड़कड़ाती हुई आवाज को सुनने के लिए लोग बेताब थे। लोगों के मन में यह आशा थी कि शायद बाला साहब ठाकरे फिर से उस भगवा अंगवस्त्र के साथ चांदी की कुर्सी पर बैठे हैं। क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या क्रिकेटर, क्या अध्यापक और क्या रिक्शा चलाने वाला? आज सभी लोग एक कतार में खड़े होकर बाला साहेब ठाकरे को अंतिम विदाई दे रहे थे।

आइए जानते हैं हिंदू हृदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे से जुड़ी कुछ बातें-

जन्म और प्रारंभिक राजनीति

23 जनवरी का दिन था साल था 1927, पुणे के केशव सीताराम ठाकरे के घर में बाला साहब ठाकरे का जन्म हुआ। माता का नाम था रमाबाई। चार बेटियों के बाद बाबा साहब का जन्म हुआ था इसलिए घर में सर्वाधिक प्रेम के पात्र थे बाला साहब ठाकरे। मन में आए तो नौकरी की, नहीं मन में आई तो छोड़ दिया, ठाकरे ने कुछ समय तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में भी बिताया था।

बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackrey) को एक कार्टूनिस्ट के तौर पर भी जाना जाता है। पिताजी ने अच्छे-अच्छे कार्टूनिस्ट से उनका परिचय कराया था। 1950 के आसपास बाला साहब ठाकरे क्रांतिकारी कार्टूनिस्ट माने जाते थे। मीनू मसानी जैसे नेताओं पर कार्टून बनाने के कारण एक बार फ्री प्रेस जर्नल के मालिक से झड़प भी हो गयी थी। बाला साहेब ठाकरे अपना इस्तीफा उनके मुंह पर मारकर घर आ गए थे। बाद में ठाकरे ने अपने भाई के साथ मिलकर मराठी अखबार मार्मिक शुरू किया। मार्मिक का मतलब स्ट्रेट फार्म हार्ट। कम्युनिस्टों से भी उनकी कई बार भिड़ंत हुई लेकिन कम्युनिस्ट भी यह नहीं जानते थे कि आने वाले समय में बाला साहेब ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा राजनेता बनेगा जिनके बिना महाराष्ट्र की राजनीति को सोचा भी नहीं जा सकता।

क्यूँकि महाराष्ट्र में गुजराती और मद्रासी लोग बहुत रहते थे और मराठियों का यह मानना था कि मद्रासी और गुजरातियों की वजह से हमारी मातृभूमि में हमें ही नौकरी नहीं मिलती। सारी नौकरियां ये लोग खा जाते हैं। बालासाहेब ठाकरे भी जान चुके थे कि अब केवल लिखने से काम नहीं चलेगा। अब जमीन पर उतर कर इन सभी चीजों का विरोध करना होगा।

शिवसेना की स्थापना

1966 में बालासाहेब ठाकरे ने शिवाजी पार्क में अपने मित्रों के साथ शिवसेना बना ली। शिवसेना की पहली मीटिंग में 50000 लोगों को आना था लेकिन यह शिवसेना का जलवा था और बाला साहब ठाकरे (Bal Thackrey) का संघर्ष था कि उस दिन 2 लाख लोग पहुंचे और बाला साहब ठाकरे ने पहला भाषण दिया और उस पहले भाषण में ही उन्होंने कह दिया कि अब इस महाराष्ट्र में लोकशाही नहीं चलेगी ठोकशाही चलेगी। शिवसेना का निर्माण हो चुका था बाला साहेब ठाकरे मुंबई में अपनी पहुंच बढ़ा चुके थे। आर एस एस की तरह शिवसेना भी हर मोहल्ले में अपनी शाखाएं खोलने लगी थी। फिर गली-गली आंदोलन होने लगे। धीरे-धीरे पूरी मुंबई पर शिव सैनिकों का कब्जा हो गया। हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में शिवसैनिकों का होना आवश्यक हो गया था।

बाला साहब ठाकरे से जुड़े कुछ किस्से

  • केवल मराठियों के हक में आवाज उठाने वाले बाला साहब ठाकरे सचिन तेंदुलकर को बहुत ही पसंद करते थे। लेकिन एक बार सचिन तेंदुलकर ने यह कहा था कि महाराष्ट्र पूरे भारत का है और महाराष्ट्र पर पूरे भारत वासियों का अधिकार है तो सचिन तेंदुलकर को, बाला साहेब ठाकरे (Bal Thackrey) ने कहा था कि उन्हें क्रिकेट की पिच पर ही रहना चाहिए राजनीति का खेल हमें ही खेलने दें।
  • इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला समय कहा जाता है। जिसके खिलाफ पूरा देश आज तक बयान देता है लेकिन बाला साहब ठाकरे आपातकाल को सही मानते थे और खुलेआम उसके समर्थन में बात करते थे।
  • जब बाला साहब ठाकरे का निधन हुआ था तब लोग यह मानते थे कि शिवसेना की कमान बेटे उद्धव के हाथों में नहीं बल्कि भतीजे राज ठाकरे के हाथों में चली जाएगी। लेकिन इसके विपरीत पार्टी की कमान गई उद्धव ठाकरे के हाथों में और भतीजे राज ठाकरे ने पार्टी छोड़कर एमएनएस बना ली।
  • बालासाहेब ठाकरे के तीन बेटे हुए बिंदु माधव ठाकरे, जयदेव ठाकरे और उद्धव ठाकरे फिलहाल उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं और उनके दोनों भाई अभी भारतीय राजनीति में सक्रिय नहीं हैं।
  • बालासाहेब ठाकरे (Bal Thackrey) के निशाने पर सदैव मुस्लिम रहा करते थे। एक बार बाला साहब ठाकरे ने मुस्लिम समुदाय को कैंसर तक कह डाला था। हिंदू आतंकवाद की वकालत करते हुए उन्होंने कहा था इस्लामी आतंकवाद बढ़ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।
  • बाला साहब ठाकरे अपने प्रवासी विरोधी विचारों के कारण हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी को झेलते रहते थे। उन्होंने बिहारियों को देश के विभिन्न भागों के लिए बोझ बताकर एक बड़ा विवाद खड़ा किया था हालांकि वे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रशंसक रहे थे। ठाकरे की पार्टी को 1991 में बड़ा झटका तब लगा जब छगन भुजबल ने बाल ठाकरे द्वारा मंडल आयोग रिपोर्ट का विरोध करने के विरोध में पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गये।
  • 2005 में अपने जीवन का सबसे बड़ा झटका बाला साहब ठाकरे (Bal Thackrey) को तब लगा जब उनके भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़ दी और 2006 में अपनी पार्टी एमएनएस बना ली इस घटना ने शिवसेना भाजपा की दोबारा सत्ता में लौटने की उम्मीदों को कमजोर कर दिया।

इस तरह बाला साहेब ठाकरे ने अपने जीवन में सदैव हिंदू संस्कृति को धारण किया और हिंदुत्व की बात की। जिन शिवसेना प्रमुख के कहने पर पूरा महाराष्ट्र एक साथ खड़ा हो जाता था। उनके पीछे चलने को तैयार हो जाता था। आज वही शिवसेना सत्ता के पीछे इतनी पागल हो गई है कि अपनी विचारधारा से भी समझौता कर लिया है।

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