आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जरिए ही विश्व में कोरोना वायरस महामारी फैलने का दावा सबसे पहले किया गया था। एआई विशेषज्ञ टोबी वॉल्श ने यह दावा किया है कि एआई का उपयोग कर दसियों लाख ट्वीट्स का अध्ययन कर महामारी विज्ञानियों ने इन संकेतों को समझा था। आज एआई का उपयोग कई जगह कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में हो रहा है, लेकिन वॉल्श का मानना है कि इस लड़ाई में क्वारंटीन और सामाजिक-दूरी ही सबसे बड़े हथियार हैं। एआई में दवा की खोज पर काम हो रहा है। उन दवाओं में संभावना तलाशी जा रही है जो अभी दूसरी बीमारियों में उपयोग होती हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक वायरस की बायो-कैमिस्ट्री को एआई से समझ रहे हैं। संक्रमित लोगों के सीटी-स्कैन में फेफड़ों में नए नए पैटर्न पढ़े जा रहे हैं, ताकि ज्यादा सटीकता से रोग का पता लगे।
वॉल्श का मानना है कि तकनीक मदद तो कर रही है लेकिन क्वारंटीन और सामाजिक-दूरी जैसे पुराने औजार यह युद्ध जितवाएंगे। इनका उपयोग हम 700 वर्षों से कर रहे हैं। वे किस्सा बताते हैं कि 1377 में प्लेग प्रभावित देशों से आए जहाजों को वेनिस में बंदरगाह पर 40 दिन तक रोक कर रखा जाता था। इससे शहर में रोग नहीं फैलता था। वॉल्श ने हाल में ‘2062 : द वर्ल्ड दैट एआई मेड’ पुस्तक लिखी है जो भविष्य की दुनिया को बनाने में एआई की भूमिका पर है। वे मानते हैं कि एआई के जरिए हम भगवान भले न बन पाएं, लेकिन हमारा समाज जरूर बदलने जा रहा है। 50 प्रतिशत संभावना है कि हम ऐसी मशीनें बना पाएंगे जो हमारी तरह सोच सकेंगी। वॉल्श के अनुसार एआई का उपयोग कई स्तरों पर कोरोना वायरस के खिलाफ हो सकता है और हो भी रहा है। जांच, इलाज और रोकथाम में यह अपनी भूमिका निभा रहा है। वॉल्श न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में एआई के प्रोफेसर हैं। साथ ही ऑस्ट्रेलियाई विज्ञान अकादमी के फैलो भी हैं।
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