मुरैना के पडावली के पास मितावली गाँव में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर को एकट्टसो महादेव मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर और उसके आसपास के शिलालेखों के अनुसार इसका निर्माण सन् 1323 में गुर्जर राजा देवपाल द्वारा कराया गया था। ऐसा माना जाता है कि मंदिर सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित में शिक्षा प्रदान करने का स्थान था। इसके अलावा यह तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण स्थान भी रहा है। देश के कोने-कोने से साधक अपनी तंत्र साधना के लिए यहाँ पहुँचते थे। यही कारण है कि इस मंदिर को भारत की तांत्रिक यूनिवर्सिटी कहा जाता है।
चौसठ योगिनी मंदिर, भारत के कुछ महत्वपूर्ण गोलाकार मंदिरों में से एक है। इसकी इमारत बेहद ही शानदार और अद्भुत है। यहाँ 64 कक्षों का निर्माण है। प्रत्येक कक्ष में एक योगिनी और एक शिवलिंग है। सभी चौसठ योगिनियाँ माता काली का अवतार मानी जाती हैं। इन चौसठ योगिनियों में 10 महाविद्याओं और सिद्ध विद्याओं की गिनती भी की जाती है। मंदिर परिसर के मध्य में एक मंडप स्थापित है जहाँ मुख्य शिवलिंग विराजमान है।
स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह मंदिर अभी भी शिव की तंत्र साधना के कवच ढका हुआ है। यहाँ स्थित सभी योगिनियाँ तंत्र और योग विद्या से सम्बंधित हैं, ऐसे में यहाँ आज भी योगिनियों को जागृत किया जाता है। इस मंदिर की महिमा कुछ ऐसी थी यहाँ विदेशों से भी तंत्र शक्ति प्राप्त करने के लिए जिज्ञासु प्रवृत्ति के लोग आया करते थे। इस मंदिर में आज भी रात में रुकने की मनाही है। मनुष्य की बात तो बहुत दूर यहां रात में पशु पक्षी भी नहीं रुकते हैं।
चौसठ योगिनी मंदिर जैसी दिखती है संसद
अगर आप इस मंदिर को देखेंगे और दूसरी और भारत की संसद को देखेंगे तो आप कुछ सेकंडो में ही पहचान सकते हैं कि अंग्रेजों ने भारतीय संसद का निर्माण इसी मंदिर की इमारत को देखकर और उस से प्रेरित होकर किया था। चौसठ योगिनी मंदिर में 101 स्तंभ है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय संसद में 144 स्तंभ… हिंदुओं के इस प्रमुख मंदिर में 64 कक्ष है जबकि संसद भवन में 340… इन दोनों इमारतों में सबसे बड़ी समानता यह है कि जिस प्रकार 64 योगिनी मंदिर के केंद्र में एक विशाल मंडप है जिसमें भगवान शिव का मुख्य शिवलिंग विराजमान है… ठीक वैसे ही केंद्र में संसद में भी एक हॉल बना हुआ है।