नई दिल्ली | साल 1947 में भारत की आजादी के बाद अब तीसरी बार देश में शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है। इस नई शिक्षा नीति को इस तरह से बनाया गया है जिससे न सिर्फ़ शिक्षा में मजबूती आएगी बल्कि उसे सरल भी किया गया है। ताकि समाज के हर तबके तक शिक्षा की पहुंच रहे। अब किसी स्तर पर यदि कोई पढ़ाई बीच में छोड़े तो भी वो खाली हाथ न रहे, इसको ध्यान में रखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में पहली बार मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम को लागू किया गया है। इसके साथ ही तीन और चार साल के दो अलग-अलग तरह के डिग्री कोर्स भी शुरू किए जाएंगे। इनमें नौकरी करने वालों के लिए तीन साल का कोर्स होगा, जबकि शोध के क्षेत्र में रुचि रखने वालों को चार साल का डिग्री कोर्स करना होगा।
मौजूदा व्यवस्था में यदि चार साल के बीटेक या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाला छात्र किसी कारणवश यदि कोई आगे की पढ़ाई नहीं कर पाता है तो उसके पास कोई उपाय नहीं होता। उसकी पिछली पूरी मेहनत बेकार हो जाती थी। लेकिन नए सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। इससे ऐसे छात्रों को बहुत फायदा होगा जिनकी किसी कारणवश पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने नई शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदुओं की जानकारी देते हुए मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम की खूबी भी बयान की।
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इस नीति में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हुए बदलाव के तहत जो छात्र शोध के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं उनके लिए तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम होगा। वही जो रिसर्च में जाना चाहते हैं, वे तीन साल की डिग्री के बाद सिर्फ एक साल का एमए करके चार साल के डिग्री प्रोग्राम के तहत सीधे पीएचडी कर सकते हैं। देश में शोध को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन भी गठित किया जाएगा। जिससे सभी उच्च शिक्षण संस्थान जुडकर शोध के क्षेत्र में कार्य कर सकेंगे।
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