मुख्य कलाकार: अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, फार्रूख जफर, सृष्टी श्रीवास्तव, विजय राज, बृजेंद्र काला
निर्देशक: शूजीत सरकार
संगीतकार: शांतनु मोईत्रा
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच लगभग तीन महीने बाद बॉलीवुड की कोई बड़ी फिल्म रिलीज़ हुई है। सिनेमाघरों के बंद होने के कारण ये फिल्म (Gulabo Sitabo) ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेज़ॉन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर रिलीज़ की गई है। देखा जाए तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ होने ये वाली ये अभी तक की सबसे बड़ी हिंदी सिनेमा की फिल्म है, जिसे 15 भाषाओं के सबटाइटल्स के साथ रिलीज़ किया गया है।
यह फिल्म पूरी दुनिया के 200 देशों में रिलीज़ होनी है और फैंस भी पिछले काफी समय से इस फिल्म के रिलीज़ होने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन फिल्म की रिलीज़ के बाद उम्मीदों और इंतजार की घड़ियों पर निर्देशक शूजीत सरकार (Shoojit Sircar) ने पूरी तरह से पानी फेर दिया है। उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि इस फिल्म में वे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachhan) और आज के जमाने के सुपरस्टार आयुष्मान खुराना (Ayushman Khurana) को कास्ट कर रहे हैं तो कहानी भी उनके मुताबिक होनी चाहिए। यदि आप भी ये फिल्म देखने का मन बना रहे हैं तो पहले ये रिव्यू अवश्य पढ़ लें।
कहानी
फिल्म की कहानी एक हवेली से शुरू होती है और वहीं पर खत्म हो जाती है। लखनऊ में फातिमा महल नाम की एक हवेली में मिर्ज़ा (अमिताभ बच्चन) अपनी बेगम फातिमा (फार्रूख जफर) के साथ रहता है। मिर्ज़ा बहुत ही कंजूस और लीचड़ किस्म का आदमी होता है जो चंद रुपयों के लिए हवेली का सामान बेचता रहता है। मिर्ज़ा 78 साल का होता है और बेगम फातिमा उससे 17 साल बड़ी होती है। मिर्ज़ा शादी से लेकर आज तक केवल फातिमा के मरने का इंतजार कर रहा होता है, क्योंकि उसके मरने के बाद ही मिर्ज़ा को वह हवेली मिल पाएगी।
मिर्ज़ा और फातिमा के साथ उनकी हवेली में कुछ किराएदार भी रहते हैं। बांके रस्तोगी (आयुष्मान खुराना) और उसका परिवार पिछले कई सालों से उसी हवेली में रह रहे होते हैं, लेकिन हवेली में रहने के लिए आज तक वह केवल 30 रुपए महीना ही किराया देता आया है। मिर्ज़ा और बांके की रोज़ाना किसी ना किसी बात पर नोक-झोंक होती रहती है। एक दिन अचानक पुरातत्व विभाग वाले हवेली को पुश्तैनी बताकर अपना कब्जा जमाने की कोशिश करते हैं। इसके बाद वकील और कागजात आदि के चक्कर में मिर्ज़ा इधर-उधर भटकता नज़र आता है। क्लाइमैक्स तक पहुँचते समय आपको लगेगा कुछ मजेदार देखने को मिलेगा, लेकिन वहाँ भी कुछ अटपटी-सी कहानी आपको देखने को मिलेगी।
एक्टिंग
अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के शहंशाह हैं और अब वह केवल एक अभिनेता नहीं रह गए हैं। लोगों के दिलों में उनके लिए एक खास जगह बन चुकी है। ऐसे में कोई भी फैन अपने पसंदीदा कलाकार को ऐसे कंजूस और दो-कौड़ी के रोल में देखना पसंद नहीं करेगा। वहीं आयुष्मान खुराना को दर्शक नए-नए किरादर में देखना पसंद करते हैं। लेकिन इस फिल्म (Gulabo Sitabo) में वह एक गरीब किराएदार और चक्की में आटा पीसते नज़र आते हैं।
अमिताभ और आयुष्मान की एक्टिंग स्क्रिप्ट के हिसाब से ठीक है, लेकिन निर्देशक उनकी प्रतिभा को इस्तेमाल करने में चूकते नज़र आए हैं। बांके की बहन गुड्डो का रोल निभाने वाली सृष्टि श्रीवास्तव ने अच्छा काम किया है। सृष्टि को आप इससे पहले कई वेब सीरीज़ में देख चुके होंगे। फिल्म की अन्य स्टार कास्ट ने भी बस ठीकठाक काम ही किया है।
निर्देशन
पीकू और विकी डोनर जैसी अच्छी फिल्में बनाने वाले शूजीत सरकार कई बार अपनी लय में नहीं आ पाते और इसी कारण वे गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo) जैसी फिल्म बना देते हैं। फिल्म की कहानी को अच्छी भी नहीं कहा जा सकता और इतनी बुरी भी नहीं। फिल्म में मनोरंजन की कमी का अहसास साफ तौर पर नज़र आता है। साथ ही फिल्म देखकर ऐसा लगता है जैसे फिल्ममेकर्स बिल्कुल भी पैसा खर्च नहीं करना चाहते थे। हर सीन में मिर्ज़ा को झुकी कमर के साथ चलता देखना कुछ ही देर में बहुत उबाऊ लगने लगता है। वहीं फिल्म का म्यूज़िक भी बहुत औसत दर्जे का है।
क्या है फिल्म की खासियत
यदि आप आयुष्मान खुराना और अमिताभ बच्चन के नाम पर ये फिल्म (Gulabo Sitabo) देखने का मन बना रहे हैं तो आपको निराश होना पड़ सकता है। फिल्म में लखनऊ शहर की कहानी दिखाई जाती है, लेकिन लखनऊ का वह नवाबी अंदाज और वहाँ की खास बोली फिल्म में कहीं नज़र नहीं आती। हालांकि बेगम का पुश्तैनी हवेली से प्यार आपको अच्छा लगेगा।
फिल्म के अंत में दिखाया जाता है कि मिर्ज़ा एक पुरानी कुर्सी 250 रुपए में बेच देता है, जिसके ऊपर एंटीक सामान की दुकान में 1,35,000 रुपए का स्टीकर लगा दिया जाता है। यहाँ निर्देशक ये समझाने की कोशिश करते हैं कि अपनी पुश्तैनी और कीमती चीजों की कद्र करना लोगों को सीखना चाहिए। यदि आप कुछ मनोरंजक देखना चाहते हैं तो इस फिल्म से दूर रहना अच्छा होगा। साथ ही फिल्म के लिए अलग से समय निकाला जाए, इस लायक भी ये फिल्म नहीं है।