मुख्य कलाकार: जैकलीन फर्नांडीज़, मनोज वाजपेयी, मोहित रैना, दर्शन ज़रीवाला
निर्देशक: शिरीष कुंदर
हाल ही में रिलीज़ हुई जैकलीन फर्नांडीज़ और मनोज वाजपेयी की फिल्म ‘मिसेज सीरियल किलर’ (Mrs. Serial Killer Review) का दर्शक काफी समय से इंतजार कर रहे थे। फिल्म के पोस्टर्स और ट्रेलर दर्शकों की उत्सुकता भी बढ़ा रहे थे, और उन्हें देख ऐसा लग रहा था कि फिल्म में जबरदस्त सस्पेंस और थ्रील देखने को मिलेगा। लेकिन नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ होने के बाद यह दर्शकों को पूरी तरह से निराश करती नज़र आ रही है। फिल्म देखकर ऐसा लग रहा है मानो निर्देशक खुद यह बात नहीं जानते कि वे कैसी फिल्म बनाना चाहते थे- एक सस्पेंस और थ्रीलर फिल्म, या एक हॉरर फिल्म या फिर कॉमेडी पर आधारित फिल्म। इन सभी चीज को मिलाकर डायरेक्टर और राइटर शिरीष कुंदर ने एक बेस्वाद खिचड़ी बना दी है।
कहानी
फिल्म (Mrs. Serial Killer Review) की स्टोरी अच्छी है, लेकिन खराब स्क्रीनप्ले इसे बहुत कमजोर कर देता है। एक दिन शहर में अचानक अविवाहित गर्भवती महिलाओं की गायब होने की खबर आने लगती है। तहकीकात करने पर डॉक्टर मृत्युन्जॉय मुखर्जी (मनोज वाजपेयी) के एक बंगले से उन सभी लड़कियों की लाश मिलती है। पुलिस अफसर इमरान शाहिद (मोहित रैना) को केस की जिम्मेदारी मिलती है और वह डॉक्टर को गिरफ्तार भी कर लेता है। मामला कोर्ट तक पहुंचता है और जाँच पड़ताल शुरू हो जाती है। लेकिन मृत्युन्जॉय की पत्नी सोना मुखर्जी (जैकलीन फर्नांडीज़) अपने पति को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाती है। क्या वह अपने पति को बचा पाती है? क्यों एक सीरियल किलर शहर की मासूम लड़कियों की हत्या कर रहा है? इन सवालों का जवाब आपको फिल्म देखने के बाद ही मिलेगा।
एक्टिंग
एक्टिंग के मामले में पूरी स्टार कास्ट ने बेहद निराश किया है। जैकलीन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सीरियस रोल उनके लिए नहीं बने है और डायलोग्स भी उन्हें ठीक से बोलने नहीं आते है। उनका काम फिल्मों में केवल और केवल सुंदर दिखना होता है और इससे ज्यादा उम्मीद उनसे करनी ही नहीं चाहिए। ‘द फैमिली मैन’ में जबरदस्त एक्टिंग करने वाले मनोज वायपेयी भी इस बार निराश करते है। यह बात भी समझ से परे है कि आखिर क्या सोचकर उन्होंने यह फिल्म साइन की होगी। भौकाल के बाद मोहित रैना एक बार फिर पुलिस के किरदार में फिट नज़र आते है।
फिल्म देखे या नहीं
यदि आपका लॉकडाउन खराब और बोरिंग जा रहा है और आप उसे बद से बदतर बनाना चाहते है तो यह फिल्म देख सकते है। शिरीष कुंदर ने डायरेक्शन भी बहुत खराब किया है। पति के जेल में होने के बावजूद पत्नी का मुस्कुराना हो या फिर कोर्ट में सुनवाई के दौरान बैठकर कैंडी क्रश खेलने जैसे सीन हो, बेहद ही वाहियात नज़र आते है। हालांकि फिल्म की शूटिंग लॉकेशंस अच्छी है, जो उत्तराखंड की सुंदरता दिखाती है। यदि सस्पेंस और थ्रीलर फिल्मों के शौकीन है और कुछ रोमांचक देखना चाहते है तो यह फिल्म आपको पूरी तरह से मायूस कर देगी।