‘दिल वालो की’ दिल्ली नहीं भर पायी मजदूरों के पेट, इसलिऐ हज़ारों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ा

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सिद्धार्थनगर | लॉकडाउन के बाद दिल्ली में काम करने वाले यूपी बिहार के हाज़रो मजदूर पैदल ही घर के लिए निकल पड़े। भले ही देश भर के बुद्धिजीवी इसे लॉकडाउन का उल्लंघन करने की बड़ी भूल मान रहे हैं, लेकिन इन गरीब मजदूरों के पास दिल्ली से पैदल आने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं था। दिल्ली से सिद्धार्थनगर पहुंचे डुमरियागंज क्षेत्र के केवटली नानकार गांव निवासी आधा दर्जन युवकों ने लाकडाउन के बीच निकलने की ऐसी व्यथा सुनाई की। टीवी चैनलों पर सुनाई देने वाले नेताओ के बड़े-बड़े भाषण खोखले साबित हो गए।

डुमरियागंज के बेवां चौराहे पर इन मजदूरों से बात करने पर किसी ने बताया कि उन्हें तीन दिनों तक खाना नहीं मिला तो किसी ने कहा कि उनके मालिक ने उन्हें बेसहारा छोड़ दिया था और फोन भी नहीं उठाता था। ऐसे में उनके लिए दिल्ली में रहकर अपना पेट भरना मुश्किल हो रहा था। कई दिनों तक भूख से लड़ने के बाद आखिर ने उनके पास पैदल ही घर के लिए निकलने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं था। सिद्धार्थनगर के एक गाँव के निवासी लट्टू ने बताया कि साड़ी में लगने वाले लैस के दुकान पर काम करते थे, लाकडाउन की घोषणा के बाद मालिक घर गया तो फिर फोन नहीं उठाया, खाने पीने के लिए कुछ पैसे थे।

वह भी खत्म हो गए। स्थिति यह थी कि तीन दिनों तक भूखे रहना पड़ा। जरी का काम करने वाले राम सुमेर ने दुखी होकर कहा कि चार दिनों तक भूखे रहने के बाद घर न आता तो क्या करता। ऐसा लग रहा था कि यहां पर रुके तो मरना तय है। दिल्‍ली सरकार गरीबों के लिए कुछ नही कर रही है। ऐसे में वहां रहकर लाकडाउन का पालन कैसे करता। पप्पू ट्रक चलाते थे। उनका कहना है कि जब लाकडाउन की घोषणा हुई तो मालिक ने गाड़ी खड़ी करवाकर वेतन देने से इन्कार कर दिया। सरकार के दावे खोखले हैं। दिल्ली में यूपी व बिहार के हजारों लोग फंसे हैं। अगर व्यवस्था नहीं हुई तो कोरोना से पहले लोग भूख से मरने लगेंगे।

इन जैसे ही हज़ारों लोग ऐसे है जो कि भूख और मुफलिसी के कारण दिल्ली को छोड़कर अपने गाँव की पगडंडियों की तरफ़ पैदल ही चल पड़े हैं। कुछ अपनी मंजिल तक पहुँच गए हैं तो कुछ रास्ते मे ही कहीं फँसे हुए हैं। इन सभी को इतना तो विश्वास है कि, कुछ भी हो उनका गाँव तो उन्हें भूखे नहीं सोने देगा। फिर रास्ते मे उन्होंने पुलिस के डंडे भी खाये और सड़कों पर चलते हुए पैरो में छाले भी पड़वाये। लेकिन घर पहुँचने की खुशी और पेट भरने की आस ने इन सभी दिक्कतों को बौना साबित कर दिया।

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