दिल्ली हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 22 हो गई है। आज अबतक 4 और शव मिल चुके हैं। इसमें एक खुफिया ब्यूरो (आईबी) का कर्मचारी भी है। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने अपने कांस्टेबल रतनलाल को खो दिया था। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के नाम पर दिल्ली में भारी उपद्रव किया जा रहा है। उपद्रवी बड़ी बेरहमी के साथ आम लोगों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोगों के घरों पर पत्थर फेंके गए, आग लगाई गई। यहां तक कि पेट्रोल पंप को भी आग के हवाले कर दिया गया। विरोध के नाम पर ये लोग इतने आक्रोशित हो गए हैं कि इन्हें किसी की जान लेने से भी गुरेज नहीं हो रहा है। उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग में हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल (Ratan Lal) की जान चली गई। हिंसा में मोहम्मद फुरकान नामक शख्स की भी जान चली गई है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं, कि आखिर विरोध प्रदर्शन के नाम पर उपद्रवियों की हिंसा को जायज कैसे ठहराया जा सकता है। हमारा संविधान सरकार के द्वारा बनाए गए किसी भी कानून या फैसले के प्रति विरोध जताने का अधिकार देता है। लेकिन विरोध के नाम पर किसी को नुकसान पहुंचाने की इजाजत कतई नहीं है। इस देश को स्वतंत्रता दिलाने वाले महात्मा गांधी पूरे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंसा को हमेशा रोकने की कोशिश करते रहे। वे किसी भी सूरत में हिंसा का समर्थन करने को तैयार नहीं थे।
रतनलाल (Ratan Lal) हेड कॉन्स्टेबल मूलरूप से राजस्थान के सीकर के रहने वाले थे। वह दिल्ली पुलिस में साल 1998 में भर्ती हुए थे। वर्तमान में उनकी तैनाती गोकुलपुरी सब डिवीजन के एसीपी अनुज के ऑफिस में थी। रतनलाल के बारे में जानकारी मिली है कि वह साेमवार काे बुखार होने के बावजूद ड्यूटी पर थे। उनके परिवार में बारह साल की बेटी सिद्धि, दस साल की बेटी कनक और सात साल का बेटा राम है। रतनलाल की पत्नी पूनम ने कहा पहले उन्हें टीवी देखकर पता चला था। इस बीच पुलिस की ओर से बताया गया कि वह जख्मी हो गए हैं, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया है। इस घटना की जानकारी मिलने के बाद रतनलाल के भाई और परिवार के अन्य लोग दिल्ली आ गए। दिल्ली हिंसा में जान गंवाने वाले पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल के परिवार की मांग है कि उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाए। रतनलाल उस वक्त दिल्ली के गोकुलपुरी में थे, जब भारी हिंसा भड़क गई। इस दौरान ड्यूटी पर तैनात रतनलाल की पत्थरबाजी में जान चली गई थी।
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