केंद्रीय खुफिया ब्यूरो ने किसान आंदोलन को अतिवादी वाम संगठनों और खालिस्तानी संगठनों की घुसपैठ के प्रति अलर्ट आगाह किया है। आईबी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात जाहिर कि किसान आंदोलन के बहाने अतिवादी वाम संगठनों और खालिस्तान से जुड़े संगठन नागरिकता संशोधन कानून और विभिन्न मामलों में जेल में बंद अतिवादी वाम संगठनों के नेताओं के समर्थन में लगातार आवाज़ उठा रहे है और इसी आंदोलन के चलते व्यापक हिंसा की आशंका जताई जा रही है।
आईबी ने अपनी एक रिपोर्ट में यह बताया कि किसान आंदोलन के बहाने अतिवादी वाम संगठनों ने किसानों को भड़काने की मुहिम की शुरूआत कर दी है। इस आंदोलन के चलते कोरेगांव यलगार परिषद केस से जुड़े लोगों को जेल से छुड़ा देने की भी मांग की जा रही है। वहीं आंदोलन स्थल पर इसी मामले में ही जेल में बंद लोगों के समर्थन में आवाज़ उठाई जा रही है।और बीते कुछ दिनों पहले इस मामले में जेल में बंद माओवादी नेता वरवर राव, गौतम नवलखा जैसी कई लोगों को जेल से रिहा करने की भी मांग उठी है। जबकि सीएए आंदोलन के दौरान देशविरोधी टिप्पणी करने वाले शरजील इमाम के पक्ष में टिकरी बॉर्डर पर पोस्टर लगाए गए। आईबी ने अपनी रिपोर्ट में किसान आंदोलन के बहाने सीएए विरोधी आंदोलन को पुनर्जीवित करने और कोरेगांव हिंसा मामले में जेल में बंद लोगों के पक्ष में माहौल तैयार करने की साजिश रचने का अंदेशा जताया है।
रिपोर्टों की मानें तो कई ऐसे खालिस्तानी संगठन अभी भी इसी आंदोलन के बल पर पंजाब में कानून व्यवस्था की समस्याओं को बिगाड़ने की मुहिम में लगे है।टिकरी बॉर्डर पर शरजील इमाम और उमर खालिद की रिहाई की मांग संबंधी पोस्टर लगाने का जिक्र किया गया है। जब मीडिया ने इन पोस्टरों के संबंध में भारतीय किसान संगठन उगराहा के दर्शनपाल सिंह से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि हमारे संगठनों के बीच एक व्यापक सहमति बनी है।जिसमें यह तय हुआ है कि जिन पर एनआरसी और सीएए के खिलाफ आंदोलन के दौरान झूठे आरोप लगे है, उनके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है।
सरकार इस पूरे मामलें में चुप्पी साधे हुए है
सरकार के तरफ़ से किसान आंदोलनों पर कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है। शुक्रवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जरूर शरजील इमाम के समर्थन पर लगे पोस्टर पर प्रश्न उठाया था। उन्होंने कहा कि यह किसान आंदोलन है और इस आंदोलन मे इमाम का समर्थन जैसी बात को समझना मुश्किल है ऐसी चीजें खतरनाक तो है ही बल्कि किसान आंदोलन की प्रासंगिकता पर भी प्रश्न का बड़ा चिंताजनक छाप छोड़ेगी ।