राजस्थान का दक्षिणाचंल बांसवाड़ा अपने बेनज़ीर शिल्प-स्थापत्य और लूठी-अनूठी परंपराओं के चिरंतन काल से जाना-पहचाना जाता है परंतु गर्मियों की ऋतु में आने वाले फलों के राजा ‘आम’ की चर्चा हो तो बात कुछ खास ही हो जाती है। वागड़ गंगा माही से सरसब्ज बांसवाड़ा जिला फलों के उत्पादन के लिए भी सर्वथा उपयुक्त है। यहां पर आम की कुल 46 प्रजातियों की हर साल बंपर पैदावार होती है जिनका देश के अनेक हिस्सों में सप्लाई की जाती है।
देखा जाए तो बांसवाड़ा जिले में परंपरागत रूप से पैदा होने वाली देसी रसीले आम की 18 प्रजातियों के साथ देशभर में पाए जाने वाली उन्नत किस्म की 28 अन्य प्रजातियों का भी उत्पादन होता है। जिले में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा संचालित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, बोरवट बांसवाड़ा पर भी बड़े क्षेत्र में मातृ वृक्ष बगीचे स्थापित हैं, जिसमें देशी व उन्नत विभिन्न किस्म की कुल 46 प्रजातियों की आम किस्मों का उत्पादन होता है।
यहां आम की 28 प्रजातियों का उत्पादन तो होता ही है मगर सबसे खास बात यह है कि आम की 18 स्थानीय प्रजातियां रेशेदार हैं और इनका उत्पादन सिर्फ दक्षिण राजस्थान में ही होता है। जिलेभर में फलों का कुल उत्पादन 45 हजार 443 मीट्रिक टन होता है। जिसमें आम, आवंला, नींबू, अमरूद, पपीता, अनार, चीकू तथा अन्य हैं। आम उत्पादन के क्षेत्र को देखें तो जिले के कुल फल उत्पादन क्षेत्र 3 हजार 480 हेक्टेयर में से 3 हजार 115 हेक्टेयर में आम का उत्पादन होता है जो कि कुल फलोत्पादन क्षेत्र का 90 प्रतिशत है।
मेंगो फेस्टिवल से मिली आम को पहचान जिले में पैदा होने वाली आम की 46 से अधिक प्रजातियों की बंपर पैदावार व उपलब्धता के कारण जिला प्रशासन, कृषि अनुसंधान केन्द्र और पर्यटन उन्नयन समिति, बांसवाड़ा द्वारा पहल करते हुए गत वर्ष तीन दिवसीय बांसवाड़ा मेंगो फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य यहां पैदा होने वाले आम की स्थानीय और उन्नत किस्मों से जनसामान्य को रूबरू कराना, किसानों को आम बगीचे लगाने के लिए प्रेरित करना। इसके साथ ही मेंगो हब के रूप में विकसित हो रहे बांसवाड़ा जिले का नाम राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने के उद्देश्य से तत्कालीन जिला प्रशासन की पहल से यह आयोजन राज्य का पहला और सफल आयोजन साबित हुआ था।