कट्टरता के खिलाफ आज क्यों हमें है फ्रांस के साथ खड़े होने की ज़रूरत?

दुनिया आज जिस कट्टरपंथ की समस्या का सामना कर रही है, उसके बारे में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कई दशक पहले ही दुनिया को आगाह कर दिया था। उनके अनुसार, ‘इस्लाम का भाईचारा मानव का सार्वभौम भाईचारा नहीं है। यह भाईचारा सिर्फ मुसलमानों का मुसलमानों के लिए है। मुस्लिम समाज से बाहर वालों के लिए सिर्फ अपमान और अदावत है। यह सामाजिक स्वराज की व्यवस्था है, क्योंकि उसकी निष्ठा उस देश के प्रति नहीं होती जहाँ वह रहा है। उसकी निष्ठा उसके धर्म के साथ होती है।’

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पैगंबर कार्टून विवाद में फ्रांस में टीचर की गला काटकर हत्या के बाद अब इसी तरह का एक और आतंकवादी हमला वहाँ सामने आया है। फ्रांस के नीस शहर के एक चर्च में अल्लाहु-अकबर के नारे लगाते हुए हमलावर ने चाकू से एक महिला का सिर कलम करने के साथ दो और लोगों को मौत के घाट उतार दिया। पुलिस ने हमलावर को गिरफ्तार कर लिया है। हमलावर घायल होने के बाद भी बार-बार मज़हबी नारे लगा रहा था।

घटनास्थल पर पहुंचे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि इस्लामी आतंकवाद फ्रांस को निशाना बना रहा है। यह हमारी संस्कृति, मूल्यों और स्वतंत्रता पर हमला है। हम किसी भी स्थिति में इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। गौरतलब है कि फ्रांस में दो महीने में यह तीसरा हमला है। हिंसा का किसी भी सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए लेकिन जहाँ आज़ादी, भाईचारा और समानता की ही तरह धर्मनिरपेक्षता देश की संस्कृति का नीति वाक्य हो, उसके राष्ट्रपति को आज कहना पड़ रहा है कि अब डर उन्हें (कट्टरपंथियों को) लगेगा। शिक्षक सैम्युएल पैटी की बर्बर हत्या के बाद से फ्रांस में कट्टरपंथियों के खिलाफ अभियानों में बहुत तेज़ी आ गई है।

बनाया जा रहा इस्लामोफोबिया का हौवा

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने शिक्षक की हत्या के बाद कहा था कि इस्लाम संकट से दो-चार है। उनकी ये बात कई इस्लामी देशों को हज़म नहीं हुई। वे पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की जैसे कई इस्लामी देशों के निशाने पर आ गए। ऐसे जघन्य अपराध की निंदा करने के बजाए ऐसे देश असंगत इस्लामोफोबिया का हौवा खड़ा कर रहे हैं। एक निर्दोष शिक्षक को मौत के घाट उतार दिया गया और सेकुलरिज्म की आए दिन दुहाई देने वालों के मुंह पर ताला लगा हुआ है। इसके साथ ही कई इस्लामी देशों ने फ्रांस में बने सामानों का बहिष्कार करने का एलान कर दिया है। फ्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार की मांग करने वालों में भारतीय मुसलमान भी हैं। इन कृत्यों के बाद आम मुसलमानों की चुप्पी, फिर चाहे वह समर्थन में हो या भय से, अक्सर इन कृत्यों को अंजाम देने वालों का हौसला ही बढ़ाती है। ऐसे में ये प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि आज ये किस तरह का मुस्लिम समाज बनता जा रहा है कि ऐसे खतरनाक तत्वों के खिलाफ खड़े होने की बजाए, वे उल्टा उन्हें ही समर्थन देते नज़र आ रहे हैं?

इस्लामिक कट्टरता से लड़ने के लिए फ्रांस के साथ आया भारत

पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईरान और तुर्की जैसे कई इस्लामी देशों के निशाने पर आये फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के समर्थन में भारत खुलकर आ गया है। इस बाबत भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर न सिर्फ मैक्रों पर किये जा रहे व्यक्तिगत हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की है बल्कि कुछ देश जिस तरह से फ्रांस के शिक्षक की हत्या किये जाने को जायज़ ठहरा रहे हैं, उसे भी खारिज किया है। भारत के इस रुख को भारतीय कूटनीतिक जगत में एक बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस दुःख की घड़ी में फ्रांस का साथ देने की बात कही है। उन्होंने चर्च में हुए हालिया हमले में पीड़ित परिवारों और फ्रांस की जनता के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त की हैं व आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस के साथ खड़े होने की बात भी कही है। गौरतलब है कि भारतीय इंटरनेट और मीडिया में भी फ्रांस के इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई में जमकर समर्थन मिल रहा है।

तब्लीगी जमात के एजेंडे से अंजान दुनिया

दुनिया आज जिस कट्टरपंथ की समस्या का सामना कर रही है, उसके बारे में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कई दशक पहले ही दुनिया को आगाह कर दिया था। उनके अनुसार, ‘इस्लाम का भाईचारा मानव का सार्वभौम भाईचारा नहीं है। यह भाईचारा सिर्फ मुसलमानों का मुसलमानों के लिए है। मुस्लिम समाज से बाहर वालों के लिए सिर्फ अपमान और अदावत है। यह सामाजिक स्वराज की व्यवस्था है, क्योंकि उसकी निष्ठा उस देश के प्रति नहीं होती जहाँ वह रहा है। उसकी निष्ठा उसके धर्म के साथ होती है।’ कुछ महीनों पहले चर्चा में आए तब्लीगी जमात के काम और उसके उद्देश्य को बहुत कम ही लोग जानते हैंI लगभग 100 सालों से कार्य कर रही तब्लीगी जमात का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है- मुसलमानों को पक्का मुसलमान बनाना। तब्लीग (प्रचार) की जमात मुसलमानों के बीच हरेक गैर-इस्लामी चीज़ छोड़ने का प्रचार करती है।

वास्तव में जमात का मिशन है कि हिंदुओं के साथ मिल-जुल कर रहने वाले मुसलमानों को पूरी तरह उनसे अलग कर देना। अपने पूर्वजों के रीति-रिवाज़ों से नफरत करना और दूसरे मुसलमानों को भी ऐसे ही करने को कहना। गौरतलब है कि तब्लीगी एजेंडे को महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन के सक्रिय समर्थन से बहुत ताकत मिली। खिलाफत आंदोलन से उपजे आवेश का लाभ उठाकर उन्हें सही मुसलमान और आम मुसलमानों के बीच दूरी पाटने और उन्हें हिंदू समाज से अलग करने में आसानी हुई। खिलाफत के बाद जमात का काम दिनों-दिन बढ़ता चला गया कि आज विश्वभर में इनके केंद्र खुल गए हैं। अपने विषैले कृत्यों के कारण आज अमेरिका, मोरक्को, फ्रांस, फिलीपींस, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों ने जेहादियों और तब्लीगियों से गहरे संबंधों को उजागर किया है। ऐसे में तब्लीगी जमात का प्रचार और जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू नज़र आ रहे हैं। इसे जगह, समय और काफिरों की तुलनात्मक स्थिति देखकर तय किया जाता है। जमात और इन जैसे कट्टरपंथी संस्थाओं के काम दुनिया को दिखाने के लिए तो ‘शांतिपूर्ण’ रहते हैं पर यह शांति ‘सही’ वक्त के इंतज़ार के लिए है, क्योंकि उनके पास फिलाहल उतनी ताकत नहीं है।

कट्टरता से लड़ाई का कारगर उपाय

देर से ही सही पर दुनिया इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ एकजुट होती दिख रही है। सवाल उठता है कि फ्रांस के इस्लामिक कट्टरपंथियों से लड़ने की खुली चुनौती के बाद क्या दूसरे देश भी उसका साथ देने आएंगे? अगर नहीं, तो इसके खिलाफ चुप्पी साधे रहना भी कोई अब उपाय नहीं रह गया है। हमें आज न केवल इन कट्टरपंथियों से सख्ती से निपटना होगा बल्कि उनके समर्थन को भी सीमित करना होगा। इससे पहले कि गैर मुस्लिम लोग इन कट्टरपंथियों का विरोध करते-करते पूरे समुदाय के ही खिलाफ हो जायें, मुस्लिम समाज को खुद भी इन तत्वों के खिलाफ खड़ा होना होगा तभी हम दुनिया में शांति बनाए रख सकेंगे।

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