हम इंसान इस धरती पे पिछले कई हज़ारो सालो से निवास कर रहें हैं। इंसान ने वक्त के हर हिस्से में कुछ न कुछ प्रगति की है। असंभव सी चीजे इंसान ने सम्भव करके दिखाई है। लेकिन आये दिन ऐसी कई सारी उलझने या फिर बरसो से दबी ऐसी रहस्यमय बातें, जो आज भी हमारे ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करती है।
इंसानी सभ्यता आज टेक्नोलॉजी को बड़ी तेजी से आगे लेकर जा रही है। पृथ्वी के हर कोने से कुछ न कुछ आविष्कार या नई खोजे होती जा रही है। लेकिन कुछ ऐसी रहस्यमयी बातें भी है जो हम बातो को अनुभव तो करते है लेकिन उसके बारे में कभी गोर से नहीं सोचते तो चलिए आज हम बात करेंगे एक ऐसी ही बात के बारे में की हमे अपनी ही रिकार्ड की गई आवाज अच्छी क्यो नहीं लगती?
अपने अक्सर यह नोटिस किया होगा कि हमे अपनी रिकॉर्ड की गई आवाज अच्छी नहीं लगती या यूं कहें कि बिल्कुल अलग लगती है। भला ऐसा क्यों होता है?
ऐसा इसलिए होता है कि दरअसल हमारे दिमाग की एक ऐसी लाक्षणिकता होती है कि वह कोई एक प्रकार की बार बार देखी हुई इमेज या एक प्रकार की बार बार सुनी हुई आवाज को एक परमिनेंट डेटा के रूप में स्टोर करता है। होता यूं ही कि हम जब भी बोलते है तब हम अपनी ही आवाज को सुनते है।
एक तो हवा के माध्यम से होते हुए हमारा कान हमारी आवाज को सुनता है और दूसरा वाइब्रेशन के कारण हमारी आवाज दिमाग तक प्रोसेस होकर पहुँचती है तो ऐसी दोनों तरीके की एक कम्बाइंड आवाज हमारा दिमाग स्टोर करने लग जाता है और बचपन से लेकर आज तक हमारी आवाज सुनने की वजह से दिमाग में इसकी परमानेंट आवाज स्टोर होती है। लेकिन हमारी रिकॉर्ड की हुई आवाज हम सिर्फ अपने कानों के माध्यम से ही सुनते ही जिसकी वजह से यह आवाज थोड़ी अलग लगती है।