पंडित नेहरू के आगे कभी किसी की नहीं चली, ‘पंचशील समझौते’ ने चीन को दी कब्जे की छूट

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Panchsheel Agreement | भारत को विश्व के सबसे ताकतवर देशों में गिना जाता है। लेकिन इतिहास गवाह है तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत होने के बावजूद भारत ने कभी पहले किसी दूसरे देश पर हमला नहीं किया। यही वजह है कि आज भी कई दूसरे देश भारत की पीठ में छुरा घोंपने का काम करते हैं। ताजा उदाहरण चीन का ही है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकी संगठन का पक्ष लेने की बात हो या फिर भारत से लगती सीमाओं पर भारतीय सेना को उकसाने की, चीन भारत को चोट पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

चीन के साथ संबंधो को मजबूती देने के लिए भारत शुरुआत से ही प्रयासरत रहा है। जिसका चीन हमेशा फायदा ही उठाता आया है। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की नीतियां इस बात की गवाह हैं कि उन्होंने कई मौकों पर चीन को वो सब कुछ तोहफे में दिया, जिसका शायद वो कभी हकदार ही नहीं था। लेकिन तब आजाद भारत में विदेश नीति के मामलों में जवाहरलाल नेहरू के आगे किसी की भी सुनी नहीं जाती थी।

चीन ने तिब्बत कब्जाने के बाद की बगावत

1950 में जवाहर लाल नेहरू के सबसे खास मशहूर इतिहासकार कावालम माधव पणिक्कर चीन में नियुक्त होने वाले सबसे पहले राजदूत थे। लेकिन उनके रहते 5 महीने बाद ही चीन ने तिब्बत पर अपना कब्ज़ा जमा लिया। यहीं से चीन की रणनीति साफ हो चुकी थी। जरुरत थी तो बस पीएम जवाहर लाल नेहरू के सख्त कदम की। लेकिन उन्होंने सब कुछ जानते हुए भी बहुत साफ़ शब्दों में इसकी ख़िलाफ़त नहीं की थी। उल्टा भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा बताते हुए 1954 में पंचशील समझौता कर लिया।

सरदार पटेल ने नेहरू को कर दिया था आगाह

पंडित नेहरू के नेतृत्व में हर कोई यही मान चुका था कि चीन और भारत के रिश्ते मजबूती की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन उस समय सरदार वल्लभ भाई पटेल के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। पटेल ने 1949 में ही नेहरू को इस बात से आगाह कर दिया था कि चीन कभी भारत का दोस्त नहीं रहने वाला। लेकिन पंडित नेहरू अपनी विदेश नीति के आगे किसी की नहीं सुनते थे। चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का राज़ होते ही पटेल ने नेहरू को पत्र लिख कर चेता दिया था कि भारत को सिक्किम के साथ तिब्बत की भी रक्षा करनी चाहिए।

लेकिन दोस्ती के जश्न में डूबे पंडित नेहरू हर किसी से बेखबर थे। नतीजा ये हुआ कि चीन ने 1950 में तिब्बत को अपने कब्ज़े में ले लिया। 15 दिसंबर 1950 को पटेल का निधन हो गया और चीन को लेकर नेहरू का विरोध करने वाला कोई मजबूत व्यक्ति नहीं था।

भारत ने चीन के साथ किया पंचशील समझौता

पटेल के स्वर्गवास के कुछ ही सालो बाद अप्रैल 1954 में भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मानते हुए चीन के साथ ‘पंचशील’ के सिद्धांत (panchsheel agreement) पर समझौता कर लिया। जिसकी कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार थे।

1. सभी देशों द्वारा अन्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना

2. दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना

3. दूसरे देश पर आक्रमण न करना

4. परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना

5. शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का पालन करना

इसी (panchsheel agreement) समझौते के बाद हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगाए गए। इस समझौते के खिलाफ कई आवाज़ें भी उठीं। पूरे विश्व ने इस बात के कयास लगा लिए थे कि चीन इस समझौते के बाद एक नया उदाहरण पेश करेगा, लेकिन 1962 और 1967 के युद्ध ने चीन की नापाक हरकतों से दुनिया को वाकिफ़ करा दिया।

सरदार पटेल की हर बात सही साबित हुई

आज सरदार पटेल की कही बार बात सच साबित हो रही है। पंडित नेहरू को पत्र लिख कर सरदार पटेल ने लिखा था कि कम्युनिस्ट पार्टी की बढ़ती गतिविधियों के चलते आने वाले समय में भारत को चीन के साथ पाकिस्तान की हरकतों पर भी नज़र रखनी होगी। सरदार पटेल के चल बसने के बाद से ही चीन पीठ पीछे भारत के खिलाफ साजिश रचने का काम करता आया है। पंचशील समझौते (panchsheel agreement) का भी फ़िलहाल कोई असर होता नहीं दिखा।

Image Source: Tweeted by @drshamamohd

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