कोरोना संकट से जूझ रहे अन्नदाताओं, गरीबों, प्रवासी मजदूरों, श्रमिकों व अन्य कमजोर वर्गों का विशेष ध्यान रखने तथा रुकी हुई अर्थव्यवस्था को गति देने के इरादे से सरकार ने पिछले दिनों 20 लाख करोड़ रूपए के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। इसकी शुरुआत सबसे पहले 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रूपए के एक राहत पैकेज की घोषणा करने के साथ हो गई थी।
जिसके अंतर्गत लाभार्थियों को मुख्यतः तीन माह तक पांच किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल तथा एक किलो दाल प्रति परिवार देने, 20 करोड़ महिलाओं के जन-धन खातों में तीन माह तक 500 रूपए प्रति माह देने, तीन करोड़ गरीब बुजुर्गों, विधवाओं व दिव्यांगों के खातों में एक-एक हजार रूपए देने, पीएम किसान योजना के तहत दो-दो हजार रूपए की एक किस्त यानी लगभग नौ करोड़ किसानों को ये राशि देने की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही आठ करोड़ गरीब परिवारों को तीन माह तक एक गैस सिलिंडर प्रति माह देना भी तय किया गया है। इसके अलावा मनरेगा योजना के तहत मजदूरी को 182 रूपए से बढ़ाकर 202 रूपए प्रति दिन
कर दिया गया है।
एक राष्ट्र, एक राशनकार्ड
केंद्र सरकार द्वारा प्रवासी मजदूरों के पलायन को देखते हुए 14 मई को उन्हें दो महीनों तक 8 लाख टन खाद्यान्न एवं 50,000 टन चना वितरण करने की घोषणा की थी। जिसमें उन लोगों को भी शामिल किया गया जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे। इसके साथ देश में एक राष्ट्र, एक राशनकार्ड के सुधारों को मार्च 2021 तक लागू करने की भी घोषणा की गई। इस महत्वकांक्षी योजना के लागू होते ही लाभार्थी अपने हिस्से के राशन को देश में कहीं से भी ले सकेगा। ऐसा करने पर ये जन वितरण प्रणाली में एक बहुत बड़ा सुधार होगा।
पैकेज के अनुसार किसानों को खरीफ फसलों की बोआई के लिये ऋण उपलब्ध कराने हेतु नाबार्ड के माध्यम से 30,000 करोड़ रूपए की अतिरिक्त राशि मुहैया कराई जाएगी। अनुमान के मुताबिक इससे तकरीबन 3 करोड़ लघु और सीमांत किसानों को लाभ होने की उम्मीद है। अब बात की जाए पीएम-किसान योजना की तो इसमें शामिल सभी किसानों को किसान डेबिट कार्ड की सुविधा देने से करीब 2.5 करोड़ किसानों को दो लाख करोड़ रूपए का रियायती ऋण मिलेगा। इसमें मछुआरों व पशुपालक किसानों को भी शामिल किया गया है। ज्ञात हो कि इस साल के बजट में कृषि क्षेत्र में 15 लाख करोड़ रूपए ऋण का प्रावधान पहले से ही है। ये नया ऋण इस प्रावधान के अतिरिक्त है या इसी का एक हिस्सा है, अभी ये स्पष्ट होना बाकी है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन
कृषि, मछली पालन एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों के लिए एक लाख करोड़ रूपए के राहत कोष बनाने की घोषणा केंद्र सरकार द्वारा 15 मई को की गई। आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की भी घोषणा की गई जिसके अंतर्गत अब किसान अपनी उपज का लाभकारी मूल्य पा सकेंगे। किसानों को और राहत देने के लिए सरकार ने अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि खाद्य पदार्थों को अपने नियंत्रण से मुक्त करने का भी फैसला लिया। जिससे अब इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी परिस्थिति के अलावा स्टॉक जमा करने की कोई सीमा नहीं निर्धारित की जाएगी।
इससे किसान अब अपनी उपज को जहाँ उसे उचित लगे, वहाँ बेच सकेगा। वहीं, कानून बनाकर कृषि उत्पादों का अन्तराष्ट्रीय व्यापार भी बेहतर किया जाएगा। इसके अलावा कृषि उत्पादों को ई-ट्रेडिंग के जरिए बेचने की सुविधा को और बेहतर बनाया जाएगा। सरकार अब ऐसी कानूनी संरचना बनाने की ओर अग्रसर है जिससे किसानों को अपनी उपज सीधे थोक एवं खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों व उद्योगों आदि को बेचने की सुविधा मिल सके।
आत्मनिर्भर भारत अभियान
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत सरकार ने 1 जून को रेहड़ी-पटरी वालों को लॉकडाउन के बाद कारोबार वापस शुरू करने के लिए 10,000 रूपए तक के कर्ज की मंजूरी दे दी है। केंद्रीय कैबिनेट की इस बैठक में किसानों को राहत देने के लिए 14 खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी बढ़ाने का भी फैसला लिया गयाI स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों पर अमल करते हुए खरीफ की सभी प्रमुख 14 फसलों को जिनमें ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन व तिल शामिल हैं, उनके समर्थन मूल्य में लागत के मुकाबले 50 फीसद वृद्धि की बात कही गई हैI वहीं, केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि अल्पकालिक तीन लाख रूपए के कृषि ऋण की अदायगी की अंतिम तारीख को मौजूदा हालात के चलते इसे 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने का समय
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार द्वारा मनरेगा योजना पर विशेष ध्यान दिया जा रहा। कोरोना संकट से त्रस्त लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के अपने गाँव लौटने से एक तरफ गाँवों में उन्हें रोजगार देने की समस्या आड़े आ गई है वहीं इसका दूसरा पहलू ये भी देखने में आया है कि उचित फैसलों के द्वारा ऐसे वक्त में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी दुरुस्त किया जा सकता है। योजना के अंतर्गत गाँव लौटे श्रमिकों को मनरेगा के तहत कृषि कार्यों में लगाया जाएगा जिससे उन्हें रोजगार के लिए फिर शहरों की तरफ न ताकना पड़े। इसी के चलते इस साल मनरेगा का बजट 61,500 करोड़ रूपए रखा गया है जिसमें 40,000 करोड़ रूपए की बढ़ोत्तरी एक बढ़िया कदम कहा जा सकता है।
सरकार की इस घोषणा से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सीधे लगभग एक लाख करोड़ रूपए पहुँचने की उम्मीद है, जो देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में सहायक सिद्ध हो सकता है। आज देश में 2.5 लाख ग्राम पंचायत हैं जिनमें से ढाई करोड़ लोगों को मनरेगा से काम मिल चुका हैI 40 हजार करोड़ से श्रम के 300 करोड़ मानव दिवस सृजित होंगे। इसके अलावा मानसून सीजन से पूर्व जल संरक्षण के कार्यों में कृषि क्षेत्र को भी इससे मदद मिलेगी। हाथ में नकदी पहुँचने से बाजारों में विभिन्न उत्पादों की मांग बढ़ेगी व इससे उत्पादन क्षेत्र को मजबूती मिलेगी।
कोरोना संकट से अब गाँव बचाएंगे देश को
लॉकडाउन में व्यावसायिक गतिविधियां ठप हैं व कोरोना संक्रमण के भय से प्रवासी मजदूर पलायन को मजबूर हैं। ऐसे में गाँवों में बेरोजगारी न बढ़े इसके लिए ज़रूरी है कि सिर्फ मनरेगा पर ही सरकार को अपना ध्यान नहीं केंद्रित करना चाहिए। इसके अलावा सरकार को और भी प्रयास करने होंगे जिससे कोरोना के इस संकटकाल में गाँवों में स्थितियां बेहतर हों। इस संकट में गाँव ही हैं जो देश को बचा सकते हैं और देखा जाए तो इसी कारण हम कई विकसित देशों के मुकाबले इस बीमारी से निपटने में काफी हद तक बेहतर साबित हुए हैं। अब जैसे-जैसे सरकार लॉकडाउन को ढीला कर रही ऐसे में हमें पहले से ज्यादा और भी संयमित व सजग रहने की ज़रूरत है तभी हम इस महामारी को फैलने से रोक पाएंगे।