पिछले कुछ महीने भले ही कड़वी यादों के साथ गुजरें हो लेकिन एक हकीकत ये भी है कि इन कुछ महीनों या फिर पिछले एक साल की बात करें तो देश में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। केंद्र में लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज होने वाली मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में उन मुद्दों पर कानून बनाए जो पिछले 70 सालों से अटकें हुए थे। ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून बनाया गया, अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, राम मंदिर पर संवैधानिक फैसला सुनाया गया तो वहीं नागरिकता संसोधन कानून को भी लागू किया गया।
ये वो मुद्दे हैं जो दशकों से सरकारी फाइलों की तरह धूल खा रहे थे। सरकारों ने अपने मेनिफेस्टों में इन सभी मुद्दों के हल का भरोसा जरूर दिया लेकिन नीयत और नीति के आभाव के कारण किसी सरकार नें इन मुद्दों का हल नहीं निकाला। हालांकि मोदी सरकार ने साहस का परिचय देते हुए कड़े फ़ैसले लिये। सीएए (CAA), एनआरसी (NRC), ट्रिपल तलाक (Triple Talak), राम मंदिर निर्माण के बाद अब केंद्र के सामने Uniform Civil Code यानी समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी चुनौती है। सीएए और एनआरसी कानून पर मंजूरी के बाद अब इस कानून को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ चुकी है।
क्या है समान नागरिक संहिता (UNIFORM CIVIL CODE)?
समान नागरिक संहिता यानी युनिफ़ॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है देश में रहने वाले हर नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म का ही क्यों न हो, के लिए एक समान कानून होना। समान नागरिक संहिता के तहत शादी, तालाक और जमीन बंटवारे जैसे मामलों में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। फ़िलहाल देश में मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय के अपने-अपने पर्सनल लॉ हैं, जबकि हिंदू सिविल Law के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। लेकिन इस कानून के बाद ये सभी बोर्ड औपचारिक रुप से काम नहीं कर पाएंगे।
क्यों जरूरी है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक सहिंता कानून का भले ही कुछ पार्टियाँ विरोध कर रहीं हों लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इस कानून को जरूरी करार दिया है। इस कानून के बाद न्यायपालिका धर्मों से जुड़े मुद्दों पर भी फैसला सुना पाएगा। अलग-अलग धर्मों के अलग क़ानून होने से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है। लेकिन Uniform Civil Code के बाद अदालतों में वर्षों से चल रहे मुक़दमों के फैसले जल्दी हो पायेंगे। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे
शाहबानो केस के बाद गर्म हुआ विवाद
यूसीसी को शाहबानो केस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी जरूरी माना था। 1985 में शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ ने अपने कानून के तहत कोर्ट के फैसले को लेकर हस्तक्षेप किया। जिसके बाद मौजूदा समय की सरकार को कट्टरपंथियों के दवाब के कारण सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए कानून पास करना पड़ा। सरकार के लचर रवैये को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यूसीसी को जरूरी बताया था।
इन देशों में लागू है यूसीसी
पिछले साल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली संसदीय कार्यवाही के दौरान ही इस बात पर माहोल गर्म हो गया था कि केंद्र सरकार जल्द यूसीसी पर संसद में बिल पेश कर सकती है। हालांकि सीएए और एनआरसी को लेकर हुए विरोध के बाद इस कानून को पास करने में थोड़ी देरी जरूर हो रही है। हालांकि कुछ देश ऐसे भी हैं जो यूसीसी को अपने यहां लागू कर चुके हैं। एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं।