Tokyo paralympic खेलने वाले वे खिलाड़ी जिन्होंने अपनी कमजोरी को बनाया अपनी ताकत, वैश्विक मंच पर दिखा रहे हैं अपनी ताकत

Tokyo paralympic में भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिभा भारत का सम्मान बड़ा रही है। Tokyo Paralympic में भारत की ओर से जो खिलाड़ी सहभागिता कर रहे हैं उनमें से अधिकतर वे है जिन्होंने अपनी कमजोरी को अपनी शक्ति बनाया है। आइए जानते हैं उन सभी खिलाड़ियों के बारे में-

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25 अगस्त से प्रारंभ हुए Tokyo paralympic की धूम चारों ओर दिखाई देती है। हर ओर केवल इसी ओलंपिक की बातें लोग कर रहे हैं। Tokyo Paralympic 2020 में हिंदुस्तान की ओर से जो खिलाड़ी खेल रहे हैं वे निश्चित रूप से कठिन परिश्रम और खेल के प्रति लगन के कारण आज वहां तक पहुंचे हैं। आज के इस लेख में आप जानेंगे कि किस तरह से टोक्यो पैरा ओलंपिक 2020 में भारत का सम्मान बनाने वाले खिलाड़ी लंबे संघर्षों के बाद कामयाबी के शिखर तक पहुंच रहे हैं?

पलक कोहली- पैरा बैडमिंटन

कई मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया जाता है कि स्कूल में पलक को शारीरिक शिक्षा की क्लासेस में खेलने नहीं दिया जाता था। क्योंकि 18 साल की पलक का एक हाथ काम नहीं करता है। जन्मजात विकृति के कारण उनका बाया हाथ ठीक से विकसित नहीं हो पाया और यही उनके रास्ते में कई बार समस्या बनता हुआ दिखाई दिया। लेकिन पलक की जिद थी कि वह खेल में अपना भविष्य बनाएंगे और दुनिया में अपना नाम रोशन करेंगे। जैसा कि कहा जाता है कि यदि व्यक्ति किसी चीज को ठान ले तो वह उसे हासिल करके रहता है। ठीक वही हुआ उन्होंने पैरा बैडमिंटन कोच गौरव खन्ना से संपर्क किया। नियमित रूप से ट्रेनिंग लेने के लिए वे जालंधर से लखनऊ पहुंची। अकादमी ज्वाइन कर ली। वे लगातार बैडमिंटन की प्रैक्टिस में अपना समय दे रही हैं। साल 2019 से ही उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया था और आज वह टोक्यो पैरालंपिक का एक हिस्सा हैं।

ज्योति बालियान – तीरंदाजी

उत्तर प्रदेश की निवासी 27 वर्षीय ज्योति टोक्यो पैरा ओलंपिक में भाग लेने वाली भारत की एकमात्र महिला तीरंदाज है। ज्योति के पिता एक कृषक है और गांव में अपनी जमीन देखते हैं। छोटी सी उम्र में एक दुर्घटना के कारण ज्योति ठीक से चल नहीं पाती हैं। लेकिन अपने संघर्षों के कारण भी भारत के युवाओं के लिए एक मिसाल बन चुकी हैं। एक गलत इंजेक्शन के कारण उन्हें पोलियो भी हो गया था लेकिन ज्योति ने अपनी इस समस्या को समस्या न मानकर उसे अपनी शक्ति बनाया। भविष्य में वे एक अच्छी तीरंदाजी करना चाहती थी और उन्होंने इसके लिए अपना मार्ग चुन लिया। साल 2009 से तीरंदाजी कर रहीं ज्योति, आज देश के टॉप पैरा तीरंदाजों में से एक हैं और दुनिया में उनका स्थान 17 वां है। नीदरलैंड में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप दो तरह से उन्हें लाभ देती हुई नजर आई। अपने बेहतर प्रदर्शन से वह विश्व में 17वें नंबर पर आ गईं और उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई भी कर लिया।

अवनी लेखरा- शूटिंग

वर्ष 2012 में अवनी 10 साल की थी और एक कार दुर्घटना के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोटे आई जिनके कारण वह आज तक व्हीलचेयर पर रहती हैं। व्हीलचेयर पर रहना निश्चित रूप से लोगों के मनोबल को तोड़ देता है लेकिन अवनी के साथ ऐसा नहीं हुआ।समय बदला और स्थितियां कुछ अनुकूल हुई धोनी के पिता ने उन्हें शूटिंग से जुड़ने के लिए कहा और अवनि ने हां कर दी। अग्नि ने अपने पिता की बात को मानकर राइफल शूटिंग और तीरंदाजी दोनों खेलों में प्रैक्टिस शुरू कर दी… प्रैक्टिस के कारण धीरे-धीरे उनकी शूटिंग में सुधार हुआ और राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं में कई पदकों को उन्होंने अपने नाम किया। संयुक्त अरब अमीरात में पैराशूटिंग विश्व कप में उन्होंने रजत पदक जीता और अपने लिए पैरा ओलंपिक के द्वार खुलवा लिए।

अरुणा तंवर – तायक्वोंडो

जब अरुणा का जन्म हुआ था तो उनकी बाजू में जन्मजात रूप से कमजोर थी। उनके हाथों में 5 के स्थान पर केवल तीन उंगलियां थी परंतु हौसले आसमान से भी ऊँचे थे। वे अपनी जिंदगी को अपने संघर्षों से रोशन करना चाहती थी। हरियाणा की इस लड़की ने अपने दम पर कुछ करने के लिए साल 2008 में मार्शल आर्ट में दाखिला ले लिया। लोग यह मानते हैं कि किसी भी व्यक्ति की कामयाबी में उसके माता-पिता का सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है अरुणा के साथ भी ऐसा ही हुआ। अरुणा के माता-पिता ने उनके फैसले का साथ दिया और अच्छे से अच्छे कोच की व्यवस्था करने की कोशिश की। आपको बता दें कि अरुणा के पिता एक ड्राइवर है। जब पिता के पास बेटी को ट्रेनिंग कराने के लिए पैसे कम पड़े तो उन्होंने लोन लिया लेकिन अपनी बेटी को भारत का सबसे टॉप लेवल का कोच दिलाने की कोशिश की। अपनी सफलताओं और संघर्षों के बाद उन्होंने अपने माता-पिता का नाम रोशन किया है और उन सभी लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो संपूर्ण शरीर के साथ जन्म लेने के बाद भी आत्महत्या जैसे कायरता पूर्ण प्रयास करते हैं।

एक इंटरव्यू में अरुणा ने बताया था कि दोस्तों और परिवार वालों ने कभी उनके साथ अलग व्यवहार नहीं किया। इससे उन्हें खेल में आगे बढ़ने का साहस मिला और वह इसके बलबूते अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाईं।

पारुल परमार – पैरा बैडमिंटन

पैरा बैडमिंटन खेलने वाली पारुल परमार गुजरात की निवासी है। कई मीडिया रिपोर्ट में यह बात कही जाती है कि सिर्फ 3 साल की उम्र में पारुल को पोलियो हो गया था और उनकी मुसीबतें लगातार बढ़ती गई। एक समय ऐसा भी आया जब उनके साथ एक दुर्घटना घटी और उनकी कॉलर बोन में गंभीर चोटें आईं। ठीक होने के बाद डॉक्टर ने उन्हें फिट रहने के लिए व्यायाम और योग करने को कहा। पारुल के पिता बैडमिंटन के खिलाड़ी थे और वह अपने साथ अपनी बेटी पारुल को भी ले जाया करते थे। पिता बैडमिंटन खेलते और बेटी व्यायाम करती। पिता को बैडमिंटन खेलते देख बेटी के मन में भी बैडमिंटन खेलने की इच्छा हुई। उन्होंने रैकेट उठाया और बैडमिंटन खेलना शुरू किया। लगातार प्रेक्टिस के साथ-साथ वे उस खेल में पारंगत हो गईं। और विभिन्न टूर्नामेंट में भाग लेने लगीं। 49 वर्षीय इस खिलाड़ी ने साल 2009 में अर्जुन पुरस्कार और एकलव्य पुरस्कार जीता।

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