दुनिया की सबसे प्रमुख और प्रतिष्ठित मैगजीन टाइम मैगजीन ने साल 2020 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट जारी की है। जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम एक बार फिर शामिल किया गया है। उनके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है। टाइम मैगजीन की ओर से हर साल एक लिस्ट जारी की जाती है। जिनमें अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले उन लोगों का नाम शामिल होता है, जिनका प्रभाव पूरी दुनिया में है या जिनके चाहने वाले पूरी दुनिया में है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ इसमें कई और हिंदुस्तानियों के नाम भी शामिल हैं। जैसे बॉलीवुड एक्टर आयुष्मान खुराना का नाम भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है। इसके अलावा शाहीन बाग में प्रदर्शन को लेकर चर्चा में आई 82 साल की बिलकिस दादी का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है।
पिछले साल लंदन में एक मरीज को एचआईवी से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता को भी सूची में शामिल किया गया है। लंदन का वह मरीज दुनिया का दूसरा मरीज है जो एचआईवी से मुक्त हुआ है। लेकिन यहां एक बात सोचने की है जिस शाहीन बाग का नाम दिल्ली दंगों को भड़काने और दिल्ली दंगों की साजिश रचने के लिए आया है। या यूं कहिए कि जिस शाहीन बाग के इर्द-गिर्द दिल्ली को दंगे की आग में जलाया गया। उसमें प्रदर्शन करने वाली एक महिला को किस तरह प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष या उनके साथ किसी भी रूप से शामिल किया जा सकता है। प्रधानमंत्री का पद भारतीय लोकतंत्र का स्तंभ है, जिसे पूरे देश की व्यवस्था को संविधान के अनुसार चलाना होता है। और वही शाहीन बाग और शाहीन बाग के लोगों ने संविधान की मर्यादाओं से पार जाकर दिल्ली दंगों में अहम भूमिका निभाने का काम किया। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के साथ शाहीन बाग से जुड़े हुए किसी भी व्यक्ति का नाम शामिल करना निश्चित रूप से बेईमानी है।
लेकिन हमें यह बात भी समझनी चाहिए कि यह वही मैगजीन है जिसने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘भारत का डिवाइडर इन चीफ’ यानी ‘प्रमुख विभाजनकारी’ बताया था। टाइम मैगजीन के एडिटर कार्ल विक ने लिखा, ‘नरेंद्र मोदी सशक्तिकरण के लोकप्रिय वादे के साथ सत्ता में आए लेकिन उनकी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी ने न केवल उत्कृष्टता को बल्कि बहुलवाद खासतौर पर भारत के मुसलमानों को खारिज कर दिया। बीजेपी के लिए अत्यंत गंभीर महामारी असंतोष को दबाने का जरिया बन गया। और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र अंधेरे में घिर गया है।’
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