कहा जाता है कि बच्चे ही माता-पिता के बुढ़ापे का सहारा होते है लेकिन एक शख्स ने खुद को कोरोना होने के डर से अंतिम वक़्त में अपने पिता का मुंह तक नहीं देखा। महाराष्ट्र के अकोला में कोरोना वायरस के कारण हुई मौत के बाद बेटे ने अपने ही पिता के शव को लेने से इनकार कर दिया। जैसे ही ये बात इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता को लगी तो उन्होंने बिना सोचे समझे इंसानियत के नाते मृतक का हिंदू रीति-रिवाज से दाह संस्कार किया। जबकि वो खुद मुस्लिम हैं। महापालिका के स्वच्छता अधिकारी प्रशांत राजूरकर ने बताया कि दो दिन पहले एक बूढ़े आदमी की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई।
कागजी कार्रवाई करने के बाद प्रशासन ने मृतक के घर वालों को जानकारी दी लेकिन घर से उनका शव लेने के लिए कोई नहीं आया। जिस बाप ने बेटे को जन्म दिया, उसे उसके अंतिम समय में बेटा देखने तक नहीं आया। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं देखकर मन को काफी धक्का लगता है। आखिर कोई बेटा ऐसा कैसे कर सकता है यह काफी दुःखद है मन को विचलित करने वाली घटना है।
प्रशांत ने बताया कि मृतक के घर में उसकी पत्नी और बेटा हैं। बेटा नागपूर में रहता है जब उसे अपने पिता की मौत की खबर लगी तो वो अकोला आ गया, लेकिन उसे कोरोना ना हो जाए इस डर से उसने बाप को कांधा देना तो दूर उनका अंतिम दर्शन करना भी उचित नहीं समझा। इस बारे में जब इलाके में कोरोना मरीजों की सेवा और उनके अंतिम संस्कार के काम में लगे जावेद जकारिया को लगी तो उन्होनें उस बूढ़े शख्स का हिंदू रीति-रिवाज से दाह संस्कार किया।
जावेद ने कहा कोरोना के इस काल में ऐसी घटनाएं दो बातों की तरफ इशारा करती हैं। पहली कि कोरोना ने हमारे रिश्तों की डोर को तोड़ने का काम किया है। बेटे को कोरोना ना हो जाए इसलिए उसने अपने बाप को कंधा नहीं दिया। दूसरा ये कि भारतीय समाज का जो तांना-बाना है जिसमें लोग बिना धर्म, जाति, मजहब देखे एक दूसरे की मदद के लिए आगे आते हैं उसे कोई भी बिमारी खत्म नहीं कर सकती है।