देश की राजधानी में लगातार 14 दिनों से किसानों का आंदोलन चल रहा है। अबतक सरकार के मंत्रियों तथा किसानों के बीच लगभग 6 से ज्यादा बैठक हो चुकी है और सारी ही बैठक बेनतीजा रही। इस पूरी प्रक्रिया के बाद अब सरकार ने किसानों को 10 पॉइंट में एक प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव में सरकार मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी एमएसपी कि मौजूदा व्यवस्था को जारी रखने के लिए लिखित में भरोसा देने पर राजी हो गई है। सरकार ने यह भी कहा है कि वह एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी यानी एपीएमसी के तहत बनी मंडियों को बचाने के लिए कानूनों में बदलाव भी लाएगी। हालांकि कृषि कानूनों को खत्म करने की किसानों की मांग केंद्र सरकार ने ठुकरा दी है।
कानून के प्रावधान जिन पर किसानों को ऐतराज है उन पर सरकार खुले मन से विचार करने को तैयार। किसानों का कहना है इस कानून के लागू होने के पश्चात सरकारी एजेंसियों को उपज बेचने का विकल्प खत्म हो जायेगा,फसलों का कारोबार निजी हाथों में चला जाएगा। वहीं सरकार की ओर से कहा गया है नए कानूनों में सरकारी खरीद की व्यवस्था में कोई दखल नहीं दिया गया है। एमएसपी सेंटर्स राज्य सरकार बना सकती हैं वे वहां मंडिया बनाने के लिए भी आजाद हैं। एमएसपी की व्यवस्था भी लगातार मजबूत हुई है फिर भी केंद्र सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने के लिए तैयार है।
किसानों का कहना था कि किसानों की जमीनों को बड़े उद्योगपति कब्जा लेंगे जिससे किसान अपनी जमीन खो देगा!
इस पर सरकार ने कहा है कृषि करार अधिनियम के मुताबिक खेती की जमीन की बिक्री लीज और मार्टगेज पर किसी भी तरह का करार नहीं हो सकता। किसान की जमीन पर कोई ढांचा भी नहीं बनाया जा सकता। अगर ढांचा बनता है तो फसल खरीदने वाले को करार खत्म होने के बाद उसे हटाना होगा यदि ढांचा नहीं हटा तो उसकी मिल्कियत किसान की होगी। ये साफ किया जाएगा कि किसान की जमीन पर ढांचा बनाए जाने की स्थिति में फसल खरीदार उस पर कोई कर्ज नहीं ले सकेगा और ना ही ढांचे को अपने कब्जे में रख सकेगा।