दोस्तों क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की है कि पहले के जमाने में मौत की सजा किस प्रकार दी जाती थी? आपको बता दें कि प्राचीन काल में राजा अपनी प्रजा के बीच खौफ बनाए रखने के लिए तरह-तरह की मौत की सजाओं का आविष्कार किया करते थे। कुछ फिल्मों और किताबों में हो सकता है आपने पढ़ा या देखा होगा कि अपराधी को उल्टा लटकाकर बीच में से काट दिया जाता था, सूली पर लटका दिया जाता था या फिर उन्हें चूहों के बीच छोड़ दिया जाता था और चूहे उन्हें खाकर मौत की सजा देते थे। लेकिन आज हम आपको इतिहास की सबसे क्रूर मौत की सजा के बारे में बताएंगे।
द ब्रेज़न बुल (The Brazen Bull) और सिसिलियन बुल (Sicilian Bull) के नाम से मशहूर मौत की सजा इतिहास की सबसे क्रूर और दर्दनाक मौत की सजा मानी जाती है। इसमें सजा के तौर पर एक व्यक्ति को तांबे से बने बैल (Bronze Bull) के अंदर डाल दिया जाता था और उसमें नीचे से आग लगा दी जाती थी। व्यक्ति को तबतक इसके अंतर तपाया और भूना जाता था, जबतक उसकी मौत नहीं हो जाती थी। इस ब्रेज़न बुल को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि इसके अंदर वाला व्यक्ति चाहे जितना मर्जी चीखे-चिल्लाए, लेकिन बाहर खड़े लोगों को उस बैल के अंदर से एक मधुर संगीत ही सुनाई देता था।
इस तरह की मौत की सजा क्रूर शासक फलारिस (Phalaris) ने शुरू की थी। वहीं पेरिलोस (Perillos) नाम के एक तांबे के कुशल कारीगर ने ब्रेज़न बुल को डिज़ाइन किया था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राजा फलारिस ने इस ब्रेज़न बुल की जाँच के लिए सबसे पहले इसके आविष्कारकर्ता पेरिलोस को ही इसके अंदर डालकर मौत की की सजा दी थी। और एक बात जानकर आपको आश्चर्य होगा कि पूरी ज़िन्दगी में कई लोगों की इस ब्रेज़न बुल के जरिए सजा देने वाला क्रूर राजा फलारिस की मौत का कारण भी यह ब्रेज़न बुल ही बना था।
एक समय दूसरे राजा ने फलारिस पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद उस दूसरे राजा ने फलारिस को ही ब्रेज़न बुल का शिकार बनाया। ब्रेज़न बुल के बारे में बहुत सी एतिहासिक किताबों में लिखा गया है और इसके समय के अंतराल में भी फर्क देखने को मिलता है। डायडोरस सेकुलस (Diodorus Siculus) ने अपनी किताब ग्रीक हिस्टोरियन (Greek Historian) में ब्रेज़न बुल के बारे में काफी विस्तार से लिखा है। सेकुलस के अनुसार ब्रेज़न बुल का आविष्कार 570 BC के दौरान किया गया था। तो दोस्तों इस जानकारी को पढ़ने के बाद मुमकिन है कि आपकी रूह भी काँप उठी होगी। लेकिन अच्छी बात ये है कि अब विश्व में कहीं भी इस प्रकार की दर्दनाक मौत नहीं दी जाती है।