25 जून की वो अँधेरी रात ज़ब हुई लोकतंत्र की हत्या

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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो चुका था। आजादी के 28 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक रणनीति के तहत भारत के लोकतंत्र को एक अंधेरी कोठरी में ढकेल दिया। 25-26 जून की रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के बाद पूरे देश में आपातकाल (emergency) लागू हो गया। ये आपातकाल 21 महीनों तक चला था।

आपातकाल का सबसे बड़ा कारण

आपातकाल (emergency) का सबसे प्रमुख कारण था 1971 का वह लोकसभा चुनाव जिसमें इंदिरा गांधी ने अपने विरोधी प्रत्याशी राजनारायण को पराजित किया था लेकिन चुनाव परिणाम आने के 4 साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में एक अपील की जिसमें उन्होंने कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव को जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके तय सीमा से ज्यादा खर्च किया है और गलत तरीकों से चुनाव जीता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण की इन दलीलों को सही माना और 12 जून सन 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य ठहरा दिया तथा इसके अतिरिक्त इंदिरा गांधी को 6 साल तक चुनाव न लड़ने की सजा भी सुनाई। लेकिन क्योंकि श्रीमती इंदिरा गांधी उस समय सत्ता में थी और अपनी सत्ता के अंहकार के चलते श्रीमती इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को अमान्य कर दिया और इसका परिणाम था पूरे भारत को 26 जून सन 1975 को आपातकाल देखना पड़ा।

आपातकाल में कैसे हुई लोकतंत्र की हत्या

आपातकाल (emergency) की घोषणा होते ही इंदिरा गांधी ने प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं को आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाल दिया गया। जिसमे जयप्रकाश नारायण, लाल कृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेई और जॉर्ज फर्नांडिस आदि शामिल थे। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया। इमरजेंसी के दौरान धारा 352 का प्रावधान किया गया जिसके अनुसार श्रीमती इंदिरा गांधी जब तक चाहें भारत की प्रधानमंत्री रह सकती थी। इस आपातकाल के दौरान पूरे देश में न तो लोकसभा चुनाव हो सकते थे और ना ही विधानसभा चुनाव।

इस आपातकाल के दौरान पत्रकारिता के ऊपर बहुत बड़ा अंकुश लगाया गया। सरकार की अनुमति के बगैर कोई भी अखबार कोई भी खबर नहीं छाप सकता था। इसीलिए बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित सभी अखबारों के कार्यालयों की इलेक्ट्रॉनिक लाइन काट दी गयी। केवल टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर छापी क्योंकि उनका ऑफिस बहादुर शाह जफर मार्ग पर नहीं था। इंदिरा गांधी ने सिर्फ़ तीन लोगों की गिरफ़्तारी की अनुमति नहीं दी थी। वो थे तमिलनाडु के नेता कामराज, बिहार के समाजवादी नेता और जयप्रकाश नारायण के साथी गंगासरन सिन्हा और पुणे के एक और समाजवादी नेता एसएम जोशी। इसी आपातकाल के दौरान संजय गाँधी ने नसबंदी का कार्यक्रम चलाया जिसमे 60000 से ज्यादा पुरुषों की जबरन नसबंदी कराई गयी थी।

आपातकाल के बाद चली “इंदिरा विरोधी लहर “

आपातकाल (emergency) के बाद इंदिरा गाँधी ने लोकसभा भंग कर 1977 में चुनाव कराने की सिफारिश की। आपातकाल के बाद हुआ चुनाव इंदिरा गाँधी के लिए आत्मघाती साबित हुआ। ऐसी इंदिरा विरोधी लहर बनी कि खुद इंदिरा भी अपनी रायबरेली कि सीट बचा नहीं पायीं। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने जनता पार्टी की सरकार बनी। इंदिरा गाँधी का रुतबा इस तरह से समाप्त हुआ कि संसद में कांग्रेस के सदस्य 350 से 150 रह गए। कांग्रेस का उत्तरप्रदेश, बिहार, पंजाब से सूपड़ा ही साफ हो गया। 1979 में ये सरकार भी गिर गयी। उपप्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ सदस्यों को दो पार्टी बाला बताकर अपना समर्थन वापस ले लिया। बाद में चरण सिंह ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाई जो 5 महीने चली फिर गिर गयी।

आपातकाल के बाद क्या बदलाव हुए?

आपातकाल (emergency) के बाद जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने हारने के कारणों को खंगाला तो उन्हें पता लगा कि छात्रों की संगठन शक्ति, मीडिया समूहों के कार्य और विश्वविद्यालयों के अंतर्गत बैठे हुए अध्यापक उनकी हार का सबसे बड़ा कारण थे। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विश्वविद्यालयों, मीडिया संस्थानों और छात्रों के संगठनों पर अपना नियंत्रण करना प्रारंभ कर दिया। जो कि आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

Image Attribution: U.S. News & World Report photographer Warren K. Leffler / Public domain

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