भारत का नागरिक बनते ही छलक पड़े आंसू, बोले – “पाकिस्तान में हमें लोग कहते थे काफिर, नहीं खेलने देते थे होली”

बरसों पहले पाकिस्तान से भाग कर भारत में शरण लेने वाले भोपाल के दो लोगों को भारत की नागरिकता मिल गई है। किसी ने 2 साल पहले तो किसी ने 3 साल पहले नागरिकता के लिए रजिस्ट्रेशन किया था।

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चित्र साभार: ट्विटर @drnarottammisra

नागरिकता संशोधन क़ानून के कारण देश में कई जगहों पर दंगे हुए बहुत सारे लोगों की हत्याएं भी हुईं। लेकिन वास्तव में नागरिकता संशोधन क़ानून की जरूरत उससे पूछिए जिसने पाकिस्तान में दर दर की ठोकरें खाई हो, अपने ही वतन में जिसके साथ गैरों जैसा व्यवहार हुआ हो। काफिर कहकर जिसे हर रोज सताया जाता हो। पाकिस्तान से जान बचाकर भारत लौटे दो लोगों को भारत की नागरिकता मिल गई है। इनमे से एक व्यक्ति ने 2 तथा एक ने 3 साल पहले नागरिकता के लिए एप्लाई किया था।

बुधवार को मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने नन्दलाल और अमित कुमार तथा मंदसौर के 6 लोगों को नागरिकता के प्रमाण पत्र दिए। नागरिकता मिलने के बाद ये लोग काफ़ी ख़ुश हैं क्यों कि अब उन्हें भारत का नागरिक कहा जायेगा। लेकिन पाकिस्तान में जिस तरह का भेदभाव उनके साथ हुआ वे उसे आज़ भी नहीं भुला पातें हैं।

जहां हम लोग रहते थे, वहां कई मंदिर जला दिए गए थे

अमित कुमार ने दैनिक भास्कर को बताया कि 17 जून 2005 को हम भोपाल आये थे। पाकिस्तान के जकोबाबाद में दिसंबर 1987 में मेरा जन्म हुआ था। मैं 17 जून 2005 को हिंदू शरणार्थी के रूप में परिवार के साथ अटारी से होता हुआ भोपाल आया था। यहां मेरे मामा रहते थे। कुछ समय उनके यहां रहने के बाद सिंधी कॉलोनी में मकान किराए पर लिया था। पाकिस्तान में हम लोग जिस जगह पर रहते थे, वहां का माहौल हिंदुओं के लिए ठीक नहीं था।

कई मामलों में वहां के लोगों द्वारा परिवार को परेशान किया जाता था। बहुत भेदभाव हाेता था और हमारे क्षेत्र में हिंदुओं के कई मंदिर जला दिए गए थे। कट्‌टरता इस हद तक दिखाई देती थी कि जब किसी को पता चलता था कि वे हिंदू हैं तो उनसे जातीय फर्क किया जाता था। वहां हिंदुओं को हीन दृष्टि से देखा जाता था। वहां के लोग हिंदुओं को कुछ समझते ही नहीं थे। डर लगता था कि कही हमें कुछ हो न जाये।

जब वे भारत आए, तो सुकून मिला। उन्होंने बताया कि मैंने नागरिकता के लिए 2 साल पहले आवेदन किया था। अब लखेरापुरा में एक कपड़े की दुकान पर काम करता हूं। पिता भी जॉब करते हैं। जब यहां आए थे, तब हिंदी समझने में थोड़ी समस्या आती थी। भोपाल में रहते हुए 15 साल से ज्यादा हो गए। अब उन्हें और मुझे किसी तरह की समस्या नहीं है।

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