आज के समय में सोशल मीडिया संचार का सबसे सरल माध्यम बन चुका है। सोशल मीडिया पर उन खबरों को तवज्जो मिलती हैं जहां तक पत्रकारों का पहुंचना भी असंभव सा हो जाता है। पिछले कुछ समय में सूचना के माध्यमों को विस्तार देने में सोशल मीडिया ने काफी बड़ी और अहम भूमिका निभाई है। सोशल मीडिया करोड़ो लोगों के लिए न्याय का माध्यम भी बना जिसके इस्तेमाल से लोगों ने अपनी दबी आवाज़ को आसानी से सरकार और लोगों तक पहुंचाया। लेकिन अब सोशल मीडिया के बढ़ते वर्चस्व ने इसके नकारात्मक पहलुओं को भी उजागर करना शुरू कर दिया है।
भारत में आज हर तीसरे व्यक्ति के पास स्मार्टफोन है। देश की करीब 1 चौथाई जनता सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रही है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इसका सकारात्मक इस्तेमाल लोगों को ज्ञान के स्तर पर समृद्ध कर सकता है लेकिन नियमों में ढील के चलते अब सोशल मीडिया के दुरुपयोग के मामले भी सामने आने लगे हैं। फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया मंच लोगों की जिंदगी का महत्वपुर्ण अंग बन चुके हैं। जब से इन मंचों का संगठित रूप से इस्तेमाल किया जाने लगा है, तब से इसके खतरे और बढ़े हैं। सोशल मीडिया का इस्तेमाल अब दंगे भड़काने, असामाजिक तत्वों को बढ़ावा देने और धर्मों के बीच नफरत पैदा करने के लिए किया जाने लगा है। फरवरी माह के मध्य CAA को लेकर देश भर में हुए विरोध प्रदर्शन को उग्र करने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका थी। हाल ही में हाथरस प्रकरण में भी कई विदेशी संगठनों ने उत्तर प्रदेश में दंगा भड़काने की साजिश इसी माध्यम के जरिये रची थी। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि सोशल मीडिया पर फैलता फर्जी ज्ञान, सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का दुश्मन बनता जा रहा है।
हाथरस कांड ताजा उदाहरण
सोशल मीडिया पर फैलता फर्जी और गलत ज्ञान किस कदर देश की जनता के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन सकता है इसका ताजा उदहारण हाथरस गैंग रेप है। उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक युवती से गैंग रेप की वारदात का मामला सामने आया। इस घटना पर जमकर बवाल मचा और राजनीति भी हुई। देखते ही देखते इस पूरे मामले पर दंगा भड़काने की साजिश की शुरुआत भी हो गयी। जिसमें सोशल मीडिया ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में हाथरस कांड के तर्ज पर दंगा भड़काने को लेकर एक फर्जी वेबसाइट का सहारा लिया गया था। जस्टिस फॉर हाथरस नाम की वेबसाइट का सहारा लेकर कुछ लोग यूपी में जातीय दंगे कराने की बड़ी साजिश रच रहे थे ताकि योगी सरकार को बदनाम किया जा सके। इस वेबसाइट में दंगे को अंजाम देने का पूरा ब्यौरा दे रखा था। इस तरह की घटना के पीछे PFI को जिम्मेदार बताया गया। जिसका लिंक आज से पहले भी भारत के कई राज्यों में दंगों को अंजाम देने के लिए जुड़ चुका है। एक सोशल मीडिया की वेबसाइट आज पूरे यूपी को जलाने का सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकती थी।
प्रधानमंत्री की छवि पर भी पड़ता है असर
सोशल मीडिया का नकारात्मक इस्तेमाल सिर्फ विरोध प्रदर्शन और दंगे जैसी गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए ही नहीं बल्कि अक्सर प्रधामंत्री के झूठे वादों और तस्वीरों को फैला कर उनकी छवि बदनाम करने को लेकर भी किया जाता रहा है। फेक खबरों में ज़्यादातर ऐसी फोटो या वीडियो का इस्तेमाल होता है, जिनमें छेड़छाड़ की गई होती हैं। कई बार फोटो तो असली होती है, लेकिन उन्हें गलत ऐंगल से दिखाया जाता है। साइबर सेल कई बार ऐसी गतिविधियों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही भी कर चुका है। इस तरह की गतिविधि का सीधा असर प्रधानमंत्री की छवि पर भी पड़ता है। जिसके कारण राष्ट्रीय एकता की अखण्डता भी बुरी तरह से प्रभावित होती है।
भारत में तेजी से बढ़ता सोशल मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता और यूजर्स के एक्टिव होने की दर में पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ोतरी हुई है। यही कारण है कि फेसबुक, वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर गलत सूचनाओं का प्रसारण काफी तेजी से बढ़ने लगा है। फेसबुक, वाट्सऐप और इंस्टाग्राम जैसे मंचों पर खबरों को विस्तार देने और सूचनाओं को प्रसारित करने को लेकर कड़े कानून बनाने की मांग भी उठती रही है। इस माध्यम के व्यापक असर को देखते हुए इसके उपयोग को लेकर भी एक सीमा तय करने की जरूरत है। क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो जिस तरह से सोशल मीडिया संचार का सबसे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है उसे देखते हुए आने वाले समय में स्थिति और भी घातक साबित हो सकती है।
ऐसे फेक खबरों को रोकते हैं बाकी देश
कई देशों में सोशल मीडिया पर गलत खबरों के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए Anti Fake News Law का गठन किया गया है। ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, रूस और फ्रांस जैसे तमाम देश अपने यहां इस कानून को लागू कर चुके हैं। मलेशिया में फेक न्यूज फैलाने पर 5,00,000 मलेशियन रिंग्गित (84.57 लाख रुपये) का जुर्माना या छह साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है। वहीं इसके अलावा 1,68,000 ऑस्ट्रेलियन डॉलर, रूस में फैलाने पर 3,00,000 रूबल (3.31 लाख रुपये) और 15 दिन की जेल और जर्मनी में गलत खबरें फैलाने को लेकर 50 लाख यूरो (38.83 करोड़ रुपये) की सजा का प्रावधान है। यही कारण है कि आज भारत के मुकाबले अन्य देश इस पर नियंत्रण पाने में कामयाब हुए हैं। हालांकि साइबर लॉ के जानकारों के अनुसार भारत में भी आईटी एक्ट है, जिसके तहत इस तरह के प्रावधान हैं, लेकिन ये कानून बहुत स्पष्ट नहीं है। लोगों को आईटी एक्ट के बारे में स्पष्ट जानकारी भी अभी तक सुचारू ढंग से नहीं पहुंचाई गयी है जिसके कारण लोग बिना सोचे-समझे किसी भी वायरल पोस्ट को फारवर्ड कर देते हैं।