आरक्षण नही है मौलिक अधिकार, याचिकाओं पर नहीं होगी सुनवाई।

तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज में अन्य पिछड़ा वर्ग उम्मीदवारों के लिए कोटा को लेकर एक याचिका दाखिल की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है और कोई भी इसे मौलिक अधिकार नहीं कह सकता।

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उच्चतम न्यायालय में तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेज में अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को कोटा दिलाने के लिए एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार के संस्थानों को छोड़कर अन्य सभी संस्थाओं में ओबीसी उम्मीदवारों को ऑल इंडिया कोटे के तहत दी गई सीटों के बाहर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिया जाए। ओबीसी उम्मीदवारों के प्रवेश को रोकना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा अर्थात आरक्षण दिए जाने तक नीट के तहत उम्मीदवारों की प्रवेश पर रोक लगे।

इस पर न्यायमूर्ति एल नागेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोई भी आरक्षण को मौलिक अधिकार नहीं कह सकता। इसीलिए किसी को कोटे के तहत प्रवेश न देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट याचिकाकर्ताओं की दलीलों से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया जब आरक्षण मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता है तब इस मामले को अनुच्छेद 32 के तहत कैसे जारी रखा जा सकता है?

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पीठ ने कहा, “किसके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है? “अनुच्छेद 32 केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए उपलब्ध है। जब आरक्षण मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आता तब इस याचिका को जारी रखा ही नहीं जा सकता। इस मामले पर टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस मामले पर सारी पार्टियां एक साथ आई हैं। हम इस याचिका को खारिज नहीं कर रहे हैं अपितु हम आपको मौका दे रहे हैं कि आप सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका को वापस लेकर हाईकोर्ट में अपील करें।

Image Attribution: Yoga Balaji / CC BY

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