“कुछ याद उन्हें भी कर लो जो लौट के घर न आये”

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भारतीय सेना (Indian Army) ने अबतक अपनी सीमाओं पर अपने अनगिनत जवान गबाये हैं इसका जीता जागता उदाहरण है गालवन घाटी में शहीद हुए हमारे 20 जवान। कहानी ऐसीं कि आप रो देंगे, कोई जवान एक साल पहले शादी के जोड़े में बंधा था, तो कोई अपने पिता का इलाज कराने के लिए इस साल घर आने वाला था, कोई अपनी 17 दिन की बेटी चेहरा देखे बिना ही इस दुनिया से चला गया तो किसी ने 10 महीने पहले ही भारतीय सेना को ज्वाइन किया था। भारत की एकता और अखंडता को जीवित रखने के लिए जिन वीरों ने अपने प्राण न्यौछाबर किए उनका कर्ज सदैव भारत के ऊपर बना रहेगा। वास्तव में भारतीय सेना अपनी धरती पर मिटने को सदैव तैयार रहती है क्यों की उन्हें लगता होगा –

“देखो वीर जवानों अपने खून पर ये इल्जाम न आये,
माँ न कहे कि मेरे बेटे वक्त पड़ा तो काम न आये।”

किस रेजिमेंट से कितने शहीद

16 बिहार रेजिमेंट: 12 शहीद
3 पंजाब रेजिमेंट: 3 शहीद
3 मीडियम रेजिमेंट: 2 शहीद
12 बिहार रेजिमेंट: 1 शहीद
81 माउंट बिग्रेड सिग्नल कंपनी: 1 शहीद
81 फील्ड रेजिमेंट: 1 शहीद

16 बिहार रेजिमेंट से 12 सैनिक शहीद हुए जिनमे – सिपाही कुंदन कुमार, सिपाही अमन कुमार और दीपक कुमार, सिपाही चंदन कुमार, सिपाही गणेश कुंजाम, सिपाही गणेश राम, सिपाही के के ओझ, सिपाही राजेश, सिपाही सी के प्रधान, नायब सूबेदार नंदूराम, हवलदार सुनील कुमार, कर्नल बी. संतोष बाबू शामिल हैं। इसी प्रकार 3 पंजाब रेजिमेंट के – सिपाही गुरतेज सिंह, सिपाही अंकुश, सिपाही गुरविंदर सिंह। 3 मीडियम रेजिमेंट से – नायब सूबेदार सतनाम सिंह, नायब सूबेदार मनदीप सिंह।12 बिहार रेजिमेंट के सिपाही – जय किशोर सिंह , 81 माउंट बिग्रेड सिग्नल कंपनी के हवलदार बिपुल रॉय, 81 फील्ड रेजिमेंट हवलदार के. पालानी इस जंग में शहीद हुए।

मुझे अपने बेटे के बलिदान पर गर्व है: कर्नल संतोष बाबू की माँ

चीन से जंग में शहीद हुए कर्नल संतोष के पिता ने अपने बेटे की शहादत पर कहा, “मैं खुद सेना (Indian Army) में भर्ती होना चाहता था पर दुर्भाग्य से मुझे बैंक में नौकरी करनी पड़ी। अपने रिश्तेदारों की मर्जी के खिलाफ मैंने अपने बेटे को सेना में भेजा।” अपने बेटे की शहादत पर उनकी माँ मंजुला ने कहा, “मुझे अपना बेटा खोने का गम तो है लेकिन मेरे बेटे ने देश के लिए बलिदान दिया है इसका गर्व भी है।”

अपनी नवजात बेटी को देखे बिना ही चले गए कुंदन

कुछ मिडिया चैनल्स की माने तो शहीद कुंदन 17 दिन पहले ही एक बेटी के पिता बने है। सीमा पर हालात सामान्य होने के बाद वे अपने घर जाने वाले थे। लेकिन बेटी का चेहरा देखने से पहले उन्होंने शहादत का चेहरा देख लिया। शहीद कुंदन के घर परिवार में माता, पिता, पत्नी और बेटी हैं। उनके पिता रविशंकर ओझा किसान हैं। कुंदन 2011 में बिहार रेजिमेंट कटिहार में भर्ती हुए थे। तीन साल पहले उनकी शादी हुई थी।

कोई आठ महीने पहले ही शादी के बंधन में बंधा था

मध्यप्रदेश रीवा के रहने वाले दीपक सिंह ने भी भारत चीन के बॉर्डर पर अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार दीपक 21 साल के थे और 8 महीने पहले उनकी शादी हुई थी। पार्थिव देह को गुरुवार को रीवा और फिर मनगवां इलाके के फरेहदा गांव लाया जायेगा। ऐसे वीरों के बलिदान पर ही भारत की एकता और अखंडता जीवित है।

“जिनकी शौर्य कहानी ने आखिर भारत का मान रखा,
नीचे विछा नींव में लाशें ऊपर हिंदुस्तान रखा।”

पिता का इलाज कराये बिना ही कह दिया दुनिया को अलविदा

पटना के शिकरिया नाम की जगह से आने वाले शहीद सुनील कुमार ने भी इस जंग में अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। जब मिडिया वालों ने सुनील की माँ रुक्मिणी देवी से बात की तो बे बोली मेने अपने बेटे से कुछ दिन पहले ही बात की थी। वह आकर अपने पिता का इलाज कराने वाला था। उसे अपने पिता का इलाज कराना था, अब सुनील रहा ही नहीं तो कौन उसके पिता का इलाज कराएगा?

भारतीय एकता और अखंडता को जीवित रखने के लिए इस बार फिर भारत के वीर सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया। प्रधानमंत्री सहित पूरे देश ने उनके इस बलिदान को नमन किया है। हम सभी पूरे देश की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करतें हैं तथा उनके परिवार जनों के लिए सहानुभूति प्रकट करते हैं।

11 COMMENTS

  1. कलम की शक्ति किसी भी हथियार से ज्यादा होती है, इनकी शहादत को देखकर मुझे उम्मीद है कि चीन की इस घटिया हरकत को देख कर लोग चीन का बहिष्कार करने मन से आगे आएंगे।

    • सही बात अब केवल लहू से ही ये क्रोध शांत होगा

  2. Gud work Abhishek…. Best way to explain the cruelty of china… And to tell the people about the night bravery of our soldiers.

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