लॉकडाउन के बीच चालीस दिन के बाद विकास प्रोजेक्ट भले ही शुरू हो चुके हैं, लेकिन उन्हें वो रफ्तार नहीं मिल पा रही है जो मिलनी चाहिए थी। श्रमिकों की अनुमति सीमित होने के कारण काम बेहद धीमी गति से हो रहा है। इन प्रोजेक्ट की निगरानी करने वाले एक्सपर्ट एवं इंजीनियर कुछ अलग राज्यों में फंसे हुए हैं। इसका सबसे जायदा असर एनएच-235 व आइटी पार्क प्रोजेक्ट पर दिखाई दे रहा है। इनके पास इतने भी श्रमिक नहीं हैं कि काम में तेजी ला सकें। NH-235 को भले ही अब काम शुरू करने के लिए अनुमति मिल गई है पर इसका काम तब तक महज खानापूर्ति का रहेगा जब तक श्रमिकों की कमी को दूर नहीं किया जाता।
कंपनियों के अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान में सिर्फ 20 फीसद ही श्रमिक व अन्य स्टाफ है। मशीनों को चलाने वाले ऑपरेटर भी नहीं हैं। अधिकांश श्रमिक दूसरे प्रदेशों के हैं। ऐसे में कार्य करना चुनौतीपूर्ण होगा। जब तक अन्य प्रदेशों या दूसरे जिलों से श्रमिक व स्टाफ नहीं आ जाता तब तक छोटे-मोटे निर्माण कार्य होंगे। अभी कैली गांव के पास JCB चल रही है पर उससे सिर्फ हाईवे के साइड में गड्ढे भरे जा रहे हैं। दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के लिए मेरठ क्षेत्र में सिर्फ 150 श्रमिकों की अनुमति है। इसमें मशीनों के ऑपरेटर व कंटेनर आदि के ड्राइवर भी शामिल हैं। ऐसे कार्य धीमा है, जो अंडरपास या पुलिया अधूरी रह गई थी उसे अब पूरा करने की कोशिश की जा रही है।
मेरठ से डासना तक तीन प्लांट चालू हैं। इनमें मेरठ क्षेत्र में भूड़बराल व गाजियाबाद क्षेत्र में भोजपुर व कुशलिया शामिल हैं। यहां मिक्सर से कंक्रीट तैयार करके निर्माण स्थलों तक पहुंचाया जा रहा है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पर मिट्टी भराव के साथ ही ओवरब्रिज संबंधित काम शुरू कर दिया है पर श्रमिक कम होने से यहां भी काम धीमा है। रैपिड रेल के लिए मेरठ क्षेत्र में रोड का चौड़ीकरण होना है। लेकिन भूड़बराल तक अनुमति होने के कारण उसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है। क्योंकि परतापुर से लेकर शहर के अंदर तक काम करने की मनाही है। इसी तरह से आइटी पार्क भी संघर्ष कर रहा है। यहां काम करने को करीब 15 श्रमिक ही हैं। कुछ सामान भी बाहर से आना है। परिसर में उद्यान का काम और भवन के अंदर इंटीरियर काम होना है। जिसके लिए श्रमिक व उससे जानकार बाहर से आएंगे। इसके लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। फिलहाल श्रमिकों की कमी के कारण भी यहां सामान्य काम हो रहा है।