‘मन की बात’ में पीएम मोदी का संबोधन, मेजर ध्यानचंद और भगवान कृष्ण को भी किया याद

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर माह के अंतिम रविवार को मन की बात कार्यक्रम को संबोदित करते हैं। सुबह 11 बजे आज पीएम ने मन की बात कार्यक्रम को संबोधित किया। बता दें कि मन की बात कार्यक्रम का प्रसारण प्रसार भारती ने 23 भाषाओं में किया।

0
631
चित्र साभार: ट्विटर @BJP4India

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज रविवार को मन की बात कार्यक्रम को संबोधित किया। इस कार्यक्रम के माध्यम से पीएम ने मेजर ध्यान चंद को भी याद किया। पीएम मोदी ने कहा कि मेरे प्यारे देशवासियों, नमस्कार. हम सबको पता है आज मेजर ध्यानचंद जी की जन्म जयंती है और हमारा देश उनकी स्मृति में इसे राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता भी है। मैं सोच रहा था कि शायद, इस समय मेजर ध्यानचंद जी की आत्मा जहां भी होगी, बहुत ही प्रसन्नता का अनुभव करती होगी क्योंकि दुनिया में भारत की हॉकी का डंका बजाने का काम ध्यानचंद जी की हॉकी ने किया था और चार दशक बाद, करीब-करीब 41 साल के बाद, भारत के नौजवानों ने, बेटे और बेटियों ने हॉकी के अंदर फिर से एक बार जान भर दी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कितने ही पदक क्यों न मिल जाएं, लेकिन जब तक हॉकी में पदक नहीं मिलता भारत का कोई भी नागरिक विजय का आनंद नहीं ले सकता है और इस बार ओलंपिक में हॉकी का पदक मिला, चार दशक के बाद मिला। उन्होंने कहा कि आप कल्पना कर सकते हैं मेजर ध्यानचंद जी के दिल पर, उनकी आत्मा पर, वो जहां होंगे, वहां कितनी प्रसन्नता होती होगी। आज जब हमें देश के नौजवानों में हमारे बेटे-बेटियों में खेल के प्रति जो आकर्षण नजर आ रहा है, माता-पिता को भी बच्चे अगर खेल में आगे जा रहे हैं तो खुशी हो रही है, ये जो ललक दिख रही है न मैं समझता हूं यही मेजर ध्यानचंद जी को बहुत बड़ी श्रद्धांजलि है।

पीएम मोदी ने कहा कि साथियों जब खेल-कूद की बात होती है न तो स्वाभाविक है हमारे सामने पूरी युवा पीढ़ी नजर आती है। और जब युवा पीढ़ी की तरफ गौर से देखते हैं कितना बड़ा बदलाव नजर आ रहा है। युवा का मन बदल चुका है। आज का युवा मन घिसे-पिटे पुराने तौर तरीकों से कुछ नया करना चाहता है, हटकर के करना चाहता है। आज का युवा मन बने बनाए रास्तों पर चलना नहीं चाहता है। वो नए रास्ते बनाना चाहता है। Unknown जगह पर कदम रखना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हम देखते हैं अभी कुछ समय पहले ही भारत ने अपने Space Sector को Open किया और देखते ही देखते युवा पीढ़ी ने उस मौके को पकड़ लिया और इसका लाभ उठाने के लिए कॉलेजों के छात्र और प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले नौजवान बढ़-चढ़ करके आगे आए हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे Satellites की होगी, जो हमारे युवाओं ने, हमारे छात्रों ने, हमारे कॉलेज ने, हमारी Universities ने, लैब में काम करने वाले छात्रों ने बनाए होंगे।

उन्होंने आगे कहा कि आज छोटे-छोटे शहरों में भी Start-up Culture का विस्तार हो रहा है और मैं उसमें उज्जवल भविष्य के संकेत देख रहा हूं…अभी कुछ दिन पहले ही हमारे देश में खिलौनों की चर्चा हो रही थी। देखते ही देखते जब हमारे युवाओं के ध्यान में ये विषय आया उन्होंने भी मन में ठान लिया कि दुनिया में भारत के खिलौनों की पहचान कैसे बने? खिलौने कैसे बनाना, खिलौने की विविधता क्या हो, खिलौनों में Technology क्या हो, Child Psychology के अनुरूप खिलौने कैसे हो? आज हमारे देश का युवा उसकी ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है, कुछ Contribute करना चाहता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि सोमनाथ मंदिर से 3-4 किलोमीटर दूरी पर ही भालका तीर्थ है, ये भालका तीर्थ वो है जहां भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर अपने अंतिम पल बिताए थे। एक प्रकार से इस लोक की उनकी लीलाओं का वहां समापन हुआ था। सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा उस सारे क्षेत्र में विकास के बहुत सारे काम चल रहे हैं। मैं भालका तीर्थ और वहां हो रहे कार्यों के बारे में सोच ही रहा था कि मेरी नजर, एक सुंदर सी Art-book पर पड़ी। उन्होंने कहा कि यह किताब मेरे आवास के बाहर कोई मेरे लिए छोड़कर गया था। इसमें भगवान श्री कृष्ण के अनेकों रूप, अनेकों भव्य तस्वीरें थीं। बड़ी मोहक तस्वीरें थीं और बड़ी Meaningful तस्वीरें थी। मैंने किताब के पन्ने पलटना शुरू किया, तो मेरी जिज्ञासा जरा और बढ़ गई। जब मैंने इस किताब और उन सारे चित्रों को देखा और उस पर मेरे लिए एक संदेश लिखा और तो जो वो पढ़ा तो मेरा मन कर गया कि उनसे मैं मिलूं।

पीएम मोदी ने कहा कि दूसरे ही दिन मेरी मुलाकात जदुरानी दासी जी से हुई। वे अमेरिकी हैं, उनका जन्म अमेरिका में हुआ। जदुरानी दासी जी ISKCON से जुड़ी हैं, हरे कृष्णा मूवमेंट से जुड़ी हुई हैं और उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता है भक्ति Arts में वो निपुण हैं। आप जानते हैं अभी दो दिन बाद ही एक सितंबर को  ISKCON के संस्थापक श्रील प्रभुपाद स्वामी जी की 125वीं जयंती है। जदुरानी दासी जी इसी सिलसिले में भारत आई थीं। प्रधानमंत्री ने कहा कि साथियों दुनिया के लोग जब आज भारतीय अध्यात्म और दर्शन के बारे में इतना कुछ सोचते हैं, तो हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम अपनी इन महान परम्पराओं को आगे लेकर जाएं। जो कालबाह्यी है उसे छोड़ना ही है लेकिन जो कालातीत है उसे आगे भी ले जाना है। हम अपने पर्व मनाएं, उसकी वैज्ञानिकता को समझें, उसके पीछे के अर्थ को समझें. इतना ही नहीं हर पर्व में कोई न कोई संदेश है, कोई न कोई संस्कार है. हमें इसे जानना भी है, जीना भी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए विरासत के रूप में उसे आगे बढ़ाना भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम के माध्यम से संस्कृत भाषा के बारे में भी अपने विचार रखे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here