राजनीतिक सह में पनपने वाले PFI का आतंकी संगठनों से है कनेक्शन, फिर भी तेजी से बना रहा अपनी पैठ

अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के उत्थान की बात करने वाला PFI असल मे देश के भीतर ही पनप रहा एक देशद्रोही संगठन है। अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठन से ताल्लुल रखने वाला PFI देश भर में तेजी से अपनी पैठ बनाता नज़र आ रहा है।

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बात उस वक्त की है जब देश भर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की लहर चली थी। उस वक़्त उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिंसा और दंगे की शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन प्रदेश की योगी सरकार ने दंगाइयों और हिंसा करने वालो पर नकेल कसने में जरा सी भी देरी नहीं लगाई। दंगाइयों की धर पकड़ शुरू हुई और फिर इन दंगों के पीछे PFI यानी कि पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम सामने आया। पता लगा कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हुए अधिकतर दंगो के पीछे PFI का ही हाथ था। इसके बाद प्रदेश की योगी सरकार ने सख्ती दिखाते हुए PFI को उत्तर प्रदेश में बैन कर दिया। PFI के सदस्यों को पकड़ा जाने लगा और उन पर काफी सख्त कार्यवाही होनी शुरू हो गयी। बात तकरीबन 9 महीने पुरानी हो गयी, PFI अभी भी उत्तर प्रदेश में बैन है, लेकिन खबरे ऐसी सुनने में आ रही है कि उत्तर प्रदेश में अब PFI फिर से अपने पैर पसारता नजर आ रहा है। इस बारे में हम आगे बात करेंगे लेकिन उससे पहले आपको बता देते हैं कि PFI क्या है? ये क्यों बनाया गया? क्या काम करता है? और  कैसे एक साधारण संगठन देशद्रोही गतिविधियों में शामिल हो गया?

क्या है PFI?

PFI एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। इसकी स्थापना साल 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई थी। शुरुआत केरल के कालीकट से हुई, और मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है। PFI खुद को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला संगठन बताता है। लेकिन वास्तविकता में ये संगठन सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के हक के लिए ही काम करता है। CAA के विरोध प्रदर्शन के पूर्व में भी तमाम ऐसे मौके आए हैं जब ये PFI मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर उतर चुका है। साल 2006 में दिल्ली के राम लीला मैदान में PFI  तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। उस वक्त भी PFI खूब चर्चा में आया था।

खुद को अल्पसंख्यक समुदाय का मसीहा बताता है, लेकिन असली चेहरा कुछ और..

PFI का कहना है कि वो समाज के अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के लोगों के समर्थन के लिए काम करता है। लेकिन PFI का ऐसा कोई भी काम कभी सुर्खियों में नहीं आया है। PFI हमेशा से देशद्रोही गतिविधियों, दंगे और आतंकवादी संगठनों से अपने कनेक्शन के चलते ही सुर्खियों में रहा है। केरल पुलिस  पीएफआई के कार्यकर्ताओं के पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज बरामद किये थे जिनमें पीएफआई अल कायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आयी थी। ऐसे में PFI को अगर आतंकवादी संगठन का नाम दिया जाए तो ये कहीं से गलत नहीं होगा। देश के भीतर ही आतंकवादी संगठन के तौर पर पनप रहे PFI को बैन करने की आवाज साल 2012 से ही उठ रही है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तो नागरिकता संशोधन बिल के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद PFI को बैन कर दिया। बाकी के अन्य राज्यो को भी जल्द ही इसके विरोध में एक्शन लेना चाहिए।

केरल से शुरु होकर देश के 23 राज्यो में पहुँच चुका है।

केरल के कालीकट से शुरू हुआ PFI संगठन आज देश के 23 राज्य में अपनी पहुँच बना चुका है। अल्पसंख्यको के हक की बात कर के राज्यों में जगह बनाने वाले PFI का असली चेहरा तो कुछ और ही है। साल 2012 में केरल सरकार ने एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट से कहा था कि पीएफआई की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं। केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय था। इन सभी जिलों में हुई हिंसा के पीछे PFI के कार्यकर्ताओं का बड़ा हाथ था।

बन चुका है राजनीति का बड़ा मुद्दा

उत्तर प्रदेश में तो PFI राजनीति का भी बड़ा मुद्दा बन चुका है। प्रदेश भर में दंगो को अंजाम देने वाले PFI को बैन करने के लिए जब प्रदेश की योगी सरकार ने सख्ती दिखाई, तो विपक्षी दलों ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना डाला। उनका कहना था कि भाजपा सरकार लोगों का ध्यान CAA और NRF के मुद्दे से हटाने के लिए ही PFI को निशाने पर ले रही है। लेकिन आपको बता दें कि सिर्फ़ भाजपा सरकार ही ऐसी नहीं है जो कि PFI को बैन करने के लिए क़दम उठा रही है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार की ओर से भी PFI के सदस्यों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जा चुकी है। मायावती के समय मे प्रदेश में PFI संगठन का सफाया भी हो चुका था। लेकिन पिछले 2 सालों में फिर से PFI ने राज्य में पैठ बनानी शुरू कर दी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में 19 दिसंबर 2019 को पीएफआई के 14 सदस्यों सहित 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जो की CAA और के विरोध प्रदर्शनों के दौरान लोगों को हिंसा करने के लिए भड़का रहे थे। इसके बाद से PFI के कार्यकर्ता योगी सरकार के रडार में आ गए। 

फिर उत्तर प्रदेश सरकार ने PFI को बैन किया और इनके कार्यकर्ताओं की धर पकड़ शुरू कर दी। प्रदेश भर में व्यापक कार्यवाही हुई। PFI के कार्यकर्ताओं को लगभग शांत कर दिया गया। लेकिन अभी भी PFI के कार्यकर्ता प्रदेश में अपनी पैठ बनाने में जुटे हुए हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में इस वक़्त योगी सरकार का रुख देखते हुए कहा जा सकता है कि यहाँ पर PFI की दाल नहीं गलने वाली है। भाजपा शासित राज्यों में तो PFI के खिलाफ सख्त एक्शन देखने को मिल सकता है। लेकिन अन्य राज्यों का इस आतंकी संगठन के खिलाफ क्या रवैया होता है, ये देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि PFI अब विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के लिए राजनीति का मुद्दा है। PFI उनके लिए वोट बैंक की तरह कार्य करता है। जो कि अल्पसंख्यक समुदाय और कहीं कहीं पर दलित वर्ग के लोगों का भी वोट जुटाने में राजनीतिक दलों की मदद करता है। लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर के वोट हासिल करते हुए विपक्षी पार्टियां किस हद तक गिर सकती है, ये कहना बहुत ही मुश्किल है।

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