सुप्रीम कोर्ट में कुछ दिनों पहले एक अर्जी दाखिल की गई थी जिसमें यह कहा गया था कि तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों की परीक्षा न कराई जाए। इस याचिका में वकील आलोक श्रीवास्तव ने कहा था कि बिहार में भयंकर बाढ़ के हालात हैं। ऐसे में परीक्षा आयोजित करने के फैसले को रद्द करना चाहिए। यहां पर बात यूजीसी के उस फैसले की हो रही है, जिसमें विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में 30 सितंबर से पहले अंतिम वर्ष की परीक्षा कराने की बात कही गई थी। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय इस मुद्दे पर 10 अगस्त की सुनवाई से पहले अपने पक्ष को स्पष्ट कर दें। इसके अलावा यूजीसी ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि कोई भी विद्यार्थी यह न सोचे कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो उसकी परीक्षा नहीं होगी, वह अपना अध्ययन जारी रखें।
जब देश हो रहा अनलॉक तो मस्जिद-मंदिर क्यों न खुलें?
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के बाबा बैद्यनाथ धाम में दर्शन को लेकर दाखिल भाजपा सांसद निशीकांत दुबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वर्चुअल दर्शन को वास्तविक दर्शन नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा यदि देश अनलॉक हो रहा है या अनलॉक के दौर से गुजर रहा है तो मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक स्थलों को क्यों नहीं खोला जा सकता? जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ ने झारखंड सरकार से कहा कि ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे भीड़ न लगे और सीमित संख्या में लोग दर्शन कर सकें।
इसके लिए ई-टोकन भी जारी किए जा सकते हैं। ई-टोकन का अर्थ है कि इंटरनेट के द्वारा लोग घर बैठे किसी भी मंदिर में जाने के लिए उसके टिकट को खरीद सकेंगे और उसके लेने के बाद ही उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा। यह व्यवस्था सबसे पहले उज्जैन के महाकाल मंदिर में प्रारंभ की गई है। शहर के अलग-अलग स्थानों पर ई-टोकन को दिया जा रहा है। जिसमें दर्शन करने वाले व्यक्ति से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां जैसे उसका फोटो, निवास और जन्मस्थान लिखा है।