विपक्षी दलों का हाथ दंगाइयों के साथ, दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश तक उपद्रवियों के पक्ष में आवाज उठाता है विपक्ष

कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि नरेंद्र मोदी की सरकार के कार्यकाल के बाद विरोध प्रदर्शन में 700 प्रतिशत बढ़ावा देखने को मिला है। इसी दौरान दंगाइयों ने देश भर के राज्यों में जमकर बवाल भी काटा। हैरान करने वाली बात ये थी कि इस दौरान विपक्षी पार्टियों ने दंगाइयों का जमकर साथ निभाया है।

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चीन के वुहान शहर में जन्मे कोरोना वायरस के खौफ से पूरा भारत अभी भी गुजर रहा है। भले ही इस वैश्विक महामारी ने देश में पैर पसारने कम कर दिए हों लेकिन अभी भी इसके प्रकोप ने आम जनजीवन को अस्त व्यस्त कर रखा है। आने वाला समय कैसा होगा यह देश किस दौर से गुजरेगा यह कोई नहीं जानता लेकिन मौजूदा स्थिति पर गौर करें तो 2021 में शायद ही कुछ बदलता नजर आए। केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान दिल्ली में अभी भी विरोध प्रदर्शन कर सड़कों पर बैठे हैं। यह दृश्य इसलिए भी भयानक है क्योंकि सरकार ने कुछ ही समय पहले इस वैश्विक महामारी पर थोड़ा काबू पाया था लेकिन अब किसानों की आड़ लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने पिछले कुछ महीनों में की गई सरकार की मेहनत पर पूरी तरह से पानी फेरने की तैयारी कर ली है। हैरान करने वाली बात यह है इस पूरे सुनियोजित प्रदर्शन को विपक्ष का हर तरह से सहयोग मिल रहा है।

यूं तो पहले भी देश में हुए प्रदर्शनों को राजनैतिक संरक्षण मिलता आया है लेकिन 2014 के बाद विपक्षी पार्टियों का सहयोग धरना और प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों से ज्यादा रहा। यही कारण है कि 2014 में सत्ता की चाबी अपने हाथ में लेने वाली मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में प्रदर्शनों में 700 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली है। देश की राजधानी दिल्ली की बात हो या फिर उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों की, प्रदर्शनों की आड़ में दंगाइयों ने खूब बवाल काटा है। विपक्षी पार्टियों का योगदान भी इसमें कम नहीं रहा। विपक्षी पार्टियों ने हमेशा से दंगों को बढ़ावा दिया और दंगाइयों का भरपूर साथ दिया। दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र से लेकर कश्मीर तक, विपक्ष हमेशा से उपद्रवियों के पक्ष में आवाज उठाता आया है।

CAA के प्रदर्शनकारियों को पेंशन

2020 की शुरुआत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में किस तरह से बवाल काटा था यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। इस प्रदर्शन में लिप्त सभी आरोपियों के खिलाफ जनता ने एकजुट होकर भारत सरकार से कार्यवाही की मांग की थी। भारत सरकार ने जब इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्यवाही की तो विपक्षियों ने इसका जमकर विरोध किया। विपक्षी पार्टियों ने उन दंगाइयों का साथ दिया जो प्रदर्शन की आड़ में देश की संपत्ति एकजुटता और अखंडता को ठेस पहुंचाने का काम कर रहे थे। इतना ही नहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों को पेंशन देने का वादा तक कर दिया था।

दंगाइयों के हौंसलों को बुलंद करते विपक्षी दल

मोदी सरकार ने जिस तरह दंगाइयों पर शिकंजा कसने की पहल की उसे देखते हुए स्पष्ट हो गया कि दंगाइयों को कहीं ना कहीं चोट जरूर पहुंचेगी लेकिन दूसरी तरफ सपा बसपा और कांग्रेस पार्टी लगातार उपद्रवियों के हौसलों को बुलंद करने का काम करती नजर आ रही थीं। इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी ने नागरिकता संशोधन कानून में लिप्त सभी आरोपियों पर दर्ज केस वापस तक लेने की घोषणा कर दी थी। इस तरह के फैसले किसी भी राजनीतिक पार्टी का दंगाइयों के लिए सहयोग दर्शाने के लिए काफी है।

कहां गया गांधीवाद?

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस महात्मा गांधी के विचारों पर चलने की बात कहती नजर आई है लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो कांग्रेस ने भी देश में दंगे भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कांग्रेस ने दंगाइयों का साथ किस तरह दिया है इस बात के कई उदाहरण हैं। 2018 के दौरान कांग्रेस ने भारत बंद के चलते दंगा-फसाद करने वालों को कानूनी मदद उपलब्ध करा कर यह साबित कर दिया था कि सत्ता हासिल करने के लिए वह कितने नीचे गिर सकती है। इतना ही नहीं एससी/ एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आयोजित भारत बंद के दौरान सुनियोजित ढंग से दंगा-फसाद करने के आरोप में पकड़े गए दंगाइयों को कांग्रेस कानूनी मदद उपलब्ध कराने को तैयार हो गयी थी।

दिल्ली सरकार भी पीछे नहीं

उपद्रवियों और दंगाइयों का साथ देने में दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कुछ ज्यादा पीछे नहीं हैं। सीएए को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में लिप्त उपद्रवियों में खुद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता शामिल थे। यही कारण था कि तमाम कानून व्यवस्था को दरकिनार करते हुए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली से ही हुई थी। शाहीन बाग में करीब 180 दिनों तक सड़क जाम कर प्रदर्शनकारियों ने इस कानून को वापस लेने की मांग की लेकिन अरविंद केजरीवाल 180 दिनों तक इस धरने को खत्म करने में असफल रहे। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा इस प्रदर्शन और दंगाइयों को सरकार का पूरा सहयोग मिला था। जिन प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने आगजनी और तोड़फोड़ के आरोप में गिरफ्तार किया था उनके खिलाफ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सहानुभूति दिखाते हुए रिहा करने की मांग तक की थी।

कब तक दंगाइयों को मिलेगा संरक्षण?

भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है इस देश में विरोध और प्रदर्शन होना लाजमी है लेकिन सवाल यह है यह है कि आखिर कब तक दंगाइयों और उपद्रवियों को विपक्षी पार्टी यूं ही संरक्षित और सहयोग देती नजर आएंगी? आने वाले समय में अगर देश की कानून व्यवस्था में सुधार करना है तो राजनीतिक पार्टियों के इस तरह दंगाइयों का साथ देने की प्रथा पर पूर्ण विराम लगाना होगा।

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