सुप्रीम कोर्ट ने पुणे की फरहा हुसैन शेख की याचिका पर सुनवाई करते हुए महिलाओं को देशभर की मस्जिदों में प्रवेश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और वक्फ बोर्ड के साथ अन्य पक्षकारों से नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध असांविधानिक, लैंगिक न्याय और समानता के अधिकार का उल्लंघन है। इसमें महिलाओं को प्रवेश देने की इजाजत मांगी गई है। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उनकी याचिका से मिलते जुलते मामले नौ जजों की संविधान पीठ के आगे लंबित हैं।
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि आपका मामला संविधान पीठ नहीं सुनेगी। वो रेफरेंस का मैटर है। लिहाज़ा कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब तलब कर लिया। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ इस मामले में महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश से रोकने के लिए जारी फतवे को दरकिनार करते हुए सुनवाई के लिए सहमत हो गई। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई करते हुए पीठ ने इस मामले में केंद्र के अलावा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री, राष्ट्रीय महिला आयोग और ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड को भी नोटिस देकर जवाब मांगा है।
यह याचिका पुणे की एक मुस्लिम महिला फरहा हुसैन शेख ने दायर की है। महिला ने सांविधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि मजहब, जाति, जन्मस्थान या लैंगिक आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। याचिका में दलील दी गई कि मस्जिद और दरगाह जैसे मुस्लिम धर्मस्थलों में महिलाओं के प्रवेश और इबादत करने पर रोक है, जो महिलाओं को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
याचिका में यह भी दलील दी गई कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश के लिए कभी मना नहीं कहा, कुरान और हदीस भी महिलाओं और पुरुष के बीच बिलकुल भी भेदभाव नहीं करता है। इसके बावजूद भी महिलाओं को मस्जिदों और दरगाहों में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। लिहाजा इस रोक के खिलाफ आदेश दिया जाए, ताकि महिलाएं मस्जिदों और दरगाहों में बिना किसी बाधा के प्रवेश कर सकें और इबादत कर सकें। अब इस याचिका पर इस मामले में अगली सुनवाई 6 जुलाई को होगी।