बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से दूर सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई की बायोपिक फिल्म ‘गुल मकई’ आज बड़े पर्दे पर रिलीज़ हो गई है। इस फिल्म के साथ सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि पूरी दुनिया में पाकिस्तान का नाम रोशन करने वाली मलाला की ज़िन्दगी पर वहां के किसी डायरेक्टर ने फिल्म नहीं बनाई। भारतीय डायरेक्टर एच ई अजमद खान ने एक साहसी कदम उठाते हुए फिल्म का निर्देशन किया है। शायद अमजद खान जानते थे कि ये फिल्म बड़े पर्दे पर ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी, इसलिए उन्होंने फिल्म के प्रमोशन की ओर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिल्म में मशहूर टीवी एक्ट्रेस रीमा शेख मलाला यूसुफजई के किरदार में नजर आ रही हैं।
फिल्म की कहानी पाकिस्तान की स्वात वैली से शुरू होती है, जहां तालिबानियों ने पूरी तरह से आतंक फैला रखा होता है। वे महिलाओं की पढ़ाई के सख्त खिलाफ होते हैं और घाटी के अधिकतर स्कूलों में आग लगा चुके होते हैं। मलाला के पिता जियाउद्दीन यूसुफजई एक स्कूल के प्रिंसिपल होते हैं। ये दोनों तालिबान के नापाक इरादों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं और मीडिया में इंटरव्यू देना शुरू करते हैं। इसके बाद बीबीसी पर ‘गुल मकई’ ब्लॉग के जरिए मलाला पूरी दुनिया का ध्यान इस मुद्दे की ओर आकर्षित करती हैं। इसी के चलते आतंकी उन्हें गोली भी मार देते हैं। लोगों की दुआओं और अपने अच्छे कर्मों के कारण वह बच जाती हैं और आतंकवाद के खिलाफ जंग जीतकर अपनी पढ़ाई जारी रखती हैं।
फिल्म में एच ई अमजद खान का निर्देशन बहुत बेकार रहा है। एक फिल्म में मलाला के उन पहलुओं को दिखाना चाहिए था, जो अब तक आम लोगों को नहीं पता थे। फिल्म में ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया, जो इंटरनेट पर मौजूद ना हो। कमजोर स्क्रीन प्ले, बोरिंग किरदार और धीमी रफ्तार थियेटर में बैठे दर्शकों के चेहरे पर ऊबासी लाने का काम करती है। रीमा शेख को फिल्म में एक दमदार किरदार के रूप में पेश करना चाहिए था। इसकी बजाय वह पूरी फिल्म में बेहद नीरस और उलझी हुई सी नजर आई हैं। यह ओम पूरी के करियर की आखिरी फिल्म है। उन्हें फिल्म में ज्यादा स्पेस नहीं दिया गया, लेकिन ओमपूरी के चाहने वाले ये फिल्म देखने का प्लान बना सकते हैं। कुल मिलाकर यह फिल्म देखने की बजाय यदि आप यू-ट्यूब पर कोई डॉक्यूमेंट्री देख लें तो आपको ज्यादा अच्छा लगेगा।