देश में ऑक्सीजन की किल्लत धीरे-धीरे समाप्त होते हुए दिखाई दे रही है। हालांकि कई राज्यों में अभी भी ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौत हो रही है। कई राज्यों के लोग बिना जरूरत के ही सिलेंडरों को स्टॉक कर रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देशभर में ऐसे संयंत्र वाले 30 उद्योगों की पहचान की है। जल्द ही इनमें थोड़ा बहुत तकनीकी संशोधन कर ऑक्सीजन का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा। कुछ संयंत्र नजदीकी अस्पतालों में स्थानांतरित किए जाएंगे, जबकि कुछ जहां हैं, वहीं से ऑक्सीजन का उत्पादन कर इसकी आपूर्ति करेंगे। आइआइटी मुंबई ने भी इस तकनीक को प्रमाणित किया है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार मौजूदा नाइट्रोजन संयंत्रों में कार्बन आण्विक छलनी की जगह जियोलाइट आण्विक छलनी के इस्तेमाल और ऑक्सीजन एनालाइजर की स्थापना के बाद कंट्रोल पैनल सिस्टम व फ्लो वाल्व आदि में कुछ बदलाव कर चिकित्सीय उपयोग के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा सकता है।
प्रो. मिलिंद अत्रे (डीन,आइआइटी मुंबई) ने बताया कि मौजूदा नाइट्रोजन संयंत्र में कुछ बदलाव कर ऑक्सीजन का उत्पादन किया जा सकता है। ऐसे नाइट्रोजन संयंत्र जो वायुमण्डल से कच्चे माल के रूप में वायु ग्रहण करते हैं, देश भर के विभिन्न औद्योगिक संयंत्रों में उपलब्ध हैं। इसलिए उनमें से प्रत्येक को आक्सीजन जनरेटर में परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार हमें वर्तमान सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से निपटने में मदद मिल सकती है।