बेकार पड़ी इन सरकारी संपत्तियों को बेचेगी मोदी सरकार, प्रधानमंत्री ने बताया किससे मिलेंगे कितने रुपए?

भारत सरकार अब देश में करीब 100 बेकार पड़ी सरकारी संपत्तियों को बेचने की तैयारी कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार इन संपत्तियों को बेचने पर करीब 2.5 लाख करोड रुपए आएंगे। जिन्हे लोक कल्याण में लगाया जाएगा।

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भारत सरकार अब 100 से ज्यादा बेकार पड़ी सरकारी संपत्तियों को 2.5 लाख करोड रुपए में बेचने जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी की मानें तो इन संपत्तियों के बिकने के बाद जो धन प्राप्त होगा उसका प्रयोग लोक कल्याण के लिए किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यक्रम के दौरान कहा था विनिवेश की प्रक्रिया को तेज करने के लिए सचिवों का अधिकार प्राप्त समूह निवेशकों के मुद्दों को सुलझाने का काम करेगा। सरकार को विकास पर ध्यान देना है और सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम जब भी कोई कारोबार करते हैं तो घाटा होता है।कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घाटे में है कईयों को करदाताओं के पैसे से मदद दी जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजीकरण का समर्थन करते हुए कहा था कि व्यवसाय करना सरकार का काम नहीं है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार रणनीतिक क्षेत्रों में कुछ सार्वजनिक उपक्रमों को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में सरकारी इकाइयों का निजीकरण करने को प्रतिबद्ध है घाटे वाले उपक्रमों को करदाताओं के पैसे के जरिये चलाने से संसाधन बेकार होते हैं। इन संसाधनों का इस्तेमाल जन कल्याण योजनाओं पर किया जा सकता है। बेकार पड़ी सरकारी संपत्तियों को बेचकर हम 2.5 लाख करोड़ रुपए जुटाएंगे।

प्रधानमंत्री ने दोस्तों में सुधार लाने के उद्देश्य से कई प्रमुख बातें कहीं। उन्होंने कहा, “मौजूदा सुधारों का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक धन का इस्तेमाल दक्षता से हो सके। सार्वजनिक उपक्रम देश की मूल्यवान संपत्तियां हैं और भविष्य में इनके लिए व्यापक संभावना है। उन्होंने कहा कि निजीकरण अभियान के लिए उचित कीमत खोज को सर्वश्रेष्ठ वैश्विक व्यवहार को अपनाया जाएगा। कार्यान्वयन भी महत्वपूर्ण है। पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए हमारी प्रक्रियाएं सही होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करने को मूल्य खोज और अंशधारकों की ‘मैपिंग के लिए स्पष्ट रूपरेखा होनी चाहिए।’ सरकारी कंपनियों को केवल इसलिए नहीं चलाया जाना चाहिए कि वे विरासत में मिली हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि रुग्ण सार्वजनिक उपक्रमों को वित्तीय समर्थन देते रहने से अर्थव्यवस्था पर बोझ पड़ता है।”

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