खोखले वादे और गुंडागर्दी के लिए जानी जाती है महाराष्ट्र सरकार, विकास के नाम पर नहीं हुआ एक भी काम

कोरोना संकट के बाद महाराष्ट्र सरकार हर मोर्चे पर विफल नजर आयी है। राज्य की जनता के लिए सरकार द्वारा किसी भी योजना को बल नहीं दिया गया, उल्टा इस वैश्विक महामारी के दौरान सरकार के कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर जमकर गुंडागर्दी की।

0
454
चित्र साभार: ट्विटर @CMOMaharashtra

कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सत्ता में काबिज होने के बाद से ही महाराष्ट्र में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। जब से उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र की बागडोर अपने हाथ में ली है तभी से राज्य के लोगों का जीना मानो दुर्भर हो गया हो। कानून प्रशासन की बात हो या फिर जनता से किए गए वादों को निभाने की, महाराष्ट्र सरकार अभी तक हर मोर्चे पर विफल नजर आई है। कोरोना संकट के बाद तो मानो उद्धव ठाकरे की सरकार पर एक साथ कई मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़े हों। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने राज्य में ना तो किसी ठोस पहल की शुरुआत की और ना जनता के बीच खुद का विश्वास जताया। मजदूरों के पलायन पर भी सरकार पूरी तरह से असफल रही।

कोरोना संकट के साथ अब राज्य के लोग महाराष्ट्र सरकार की गुंडागर्दी और खोखले वादों से भी परेशान नजर आने लगे हैं। पिछले कुछ महीनों में शिवसेना के कार्यकर्ता सड़कों पर जमकर गुंडागर्दी करते नजर आए। हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार ने अभी तक ना तो इन कार्यकर्ताओं के खिलाफ सख्त कदम उठाए और ना ही इनके खिलाफ कुछ बोलना जरूरी समझा। सेना के अफसर की पिटाई की बात हो या बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना राणावत के दफ्तर पर गैरकानूनी तरीके से बुलडोजर चलाये जाने की, महाराष्ट्र सरकार की गुंडागर्दी इन कुछ महीनों में किसी से छिपी नहीं है।

गुंडागर्दी के लिए मशहूर हुई शिवसेना

यह सच है कि अब बालासाहेब ठाकरे के उसूलों पर चढ़ने वाली शिवसेना गुंडों की पार्टी बनकर रह गई है। पालघर में दो साधुओं की हुई निर्मम हत्या के बाद से राज्य सरकार की गुंडागर्दी का सिलसिला कम नहीं हुआ। 26 मई 2020 को शिवसेना के कार्यकर्ताओं का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह दो दुकानों के अंदर जमकर तोड़फोड़ करते नजर आए थे। दुकानदारों का कुसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने कोरोना काल में सरकार के खोखले वादों का चिट्ठा सोशल मीडिया पर खोल कर रख दिया था। जिसके बाद शिवसेना के गुंडों ने दुकानदारों की पिटाई कर दी थी।

इतना ही नहीं पालघर में साधुओं की हत्या पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से सवाल करने पर कांग्रेसी गुंडों ने 22-23 अप्रैल की रात करीब 12 से 1 बजे के बीच रिपब्लिक न्यूज चैनल के प्रमुख अर्नब गोस्वामी और उनकी पत्नी पर ऑफिस से घर लौटते वक्त हमला कर दिया था।

शिवसेना की गुंडागर्दी का सिलसिला यहीं नहीं थमा। अर्णब गोस्वामी पर हमला करने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने कंगना रनौत से भी विवाद मोल लिया। बिना एडवांस नोटिस के कंगना का दफ्तर तोड़ा गया। इस दौरान उन्हें कई बार धमकी भी दी गयी। कंगना के अलावा शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने भारतीय सेना के रिटायर्ड अफसर को भी नहीं छोड़ा। एक मामूली सी बात को लेकर बुजुर्ग सेना के रिटायर अफसर के साथ शिवसेना के गुंडई कार्यकर्ताओं ने जमकर मारपीट की थी जिसकी राज्य की हर जनता ने काफी आलोचना भी की थी।

नेताओं की बत्तमीजी

गुंडागर्दी के अलावा शिवसेना के नेताओं के विवादित बयान और बत्तमीजी भी किसी से छिपी नहीं है। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी पार्टी के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत का असली चेहरा भी लोगों के सामने आया है। कंगना विवाद के दौरान संजय राउत ने काफी विवादित बयान दिए। कंगना के सख्त तेवर से बौखलाए संजय राउत ने कंगना को हरामखोर लड़की तक कह डाला था। जिसके बाद उनके खिलाफ महिला आयोग ने विरोध भी किया था। लेकिन उनकी पार्टी संजय राउत के बचाव में खड़ी नजर आयी थी। 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान एक चुनावी सभा में राउत इतने जोश में नजर आए कि ये भी ध्यान नहीं रहा कि वे क्या बोल रहे हैं। जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि कानून गया भाड़ में, आचार संहिता को भी हम देख लेंगे। यानि की सत्ता के नशे में चूर शिवसेना कानून से ऊपर उठ कर किसी भी हद तक जा सकती है।

नहीं हल हुई मजदूरों की समस्या

कोरोना काल में अगर किसी राज्य में प्रवासी मजदूरों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा तो वो महाराष्ट्र था। राज्य में पलायन कर रहें मजदूरों के लिए सरकार ने कोई ब्लू प्रिंट तैयार नहीं किया। ना तो उनके रहने के लिए सरकार ने कोई इंतजाम किए और ना ही मजदूरों को रोजगार देने के लिए कोई विशेष कदम उठाए गए। महाराष्ट्र सरकार ने किसी भी राहत पैकेज की घोषणा तक नहीं की। प्रवासी मजदूर और विदेश में फंसे लोग भारत लौटना चाहते हैं, महाराष्ट्र एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विमानों को उतरने की अनुमति नहीं दी गई। ट्रेनों के संचालन पर भी राज्य सरकार ने रोक लगा दी थी।

कोरोना के सामने लाचार, कोरोना वेस्ट को भी नहीं रोक पाए

उद्धव ठाकरे सरकार कोरोना संक्रमण को रोकने में पहले ही नाकामयाब थी जिसके बाद अब कोरोना के कचरे को संभालने में भी महाराज सरकार लाचार नजर आई। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइड लाइन के मुताबिक देश के अलग-अलग हिस्सों में केवल सितंबर महीने में 5500 टन कोविड वेस्ट निकला है। अकेले महाराष्ट्र में ही पिछले 4 महीने में 3587 टन कोविड वेस्ट निकला है। ये आंकड़े महाराष्ट्र सरकार की नाकामयाबी को दर्शाने के लिए काफी हैं। सड़कों पर कोविड वेस्ट का यूँ बिखरा रहना आने वाले समय में कोरोना संक्रमण को और तेज़ी से बढ़ा सकता है।

खोखले वादे और जमीनी हकीकत शून्य

पिछले कुछ समय में महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ भी घटा है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि अगर कोरोना काल में कोई राज्य सबसे ज्यादा विफल नज़र आया है तो वो महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार लगातार बड़े-बड़े वादे करती है, लेकिन जमीनी हकीकत शून्य दिखाई दे रही है। चुनावी सभाओं के दौरान की गयी बड़ी घोषणाओं को अभी तक राज्य सरकार ने जमीन पर नहीं उतारा है। सवाल ये है कि राज्य सरकार की इन बड़ी परियोजनाओं को अगर इस वैश्विक संकट के दौरान जनता के बीच नहीं लाया गया तो आखिर कब इसे राज्य के विकास के लिए इस्तेमाल किया जाएगा?

Image Source: Tweeted by @CMOMaharashtra

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here