स्वयं कुछ नहीं करती महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार की मदद भी लेते हैं, और केंद्र सरकार को कोसते भी हैं..

महाराष्ट्र और दिल्ली सरकार की राजनीति इन दिनों एक ही पटरी पर चल रही है। दोनों ही सरकारें अपनी विफलताओं का पूरा ठीकरा केंद्र पर फोड़ रही है। देश के 2 बड़े राज्य हर मोर्चे पर विफल नजर आए है। लेकिन आखिर कब तक दोनों राज्य इसी तरह केंद्र पर सवाल खड़े करते रहेंगे?

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देश के 2 राज्य दिल्ली और महाराष्ट्र की स्थिति आज एक जैसी हो चली है। आम आदमी पार्टी के मुख्या और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नीतियां भले ही महाराष्ट्र के नवनियुक्त सीएम उद्धव ठाकरे से थोड़ी अलग हो लेकिन कुछ मामलों में दोनों की राजनीति एक जैसी ही है। कोरोना महामारी के बाद दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को बेहतर करने में केजरीवाल सरकार बुरी तरह से विफल नजर आयी है। दिल्ली एनसीआर और आस पास के क्षेत्रों में प्रदूषण बेहद ही खराब स्तर पर पहुँच गया है। दिल्ली के अलावा महाराष्ट्र की बात करें तो आबादी के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा राज्य इस समय जंगल राज में तब्दील हो चुका हैं। ठाकरे राज़ में कानून व्यवस्था से लेकर अन्य सभी व्यवस्थाएं बुरी तरह से चौपट पड़ी है। कंगना रनौत के साथ विवाद के बाद आर भारत के चीफ एडिटर अर्णब गौस्वामी के साथ हुई घटना ने उद्धव ठाकरे की कार्यशैली पर कई तरह के सवाल खड़े कर दिए है।

भले ही दिल्ली और महाराष्ट्र इस समय विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहा हो लेकिन दोनो राज्यों में अगर कुछ एक समान देखने को मिला तो वो था अपनी गलतियों का पिटारा केंद्र सरकार के सर फोड़ना। अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे की राजनीति अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों से ही केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे पीछे ही घूम रही है। दिल्ली में MCD के साथ हालिया विवाद पर दिल्ली सरकार और केंद्र आमने सामने है। तो वहीं महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे ने सभी विवादों से किनारा करते हुए इसे भाजपा की साजिश करार दिया है। उद्धव ठाकरे का मानना है कि महाराष्ट्र में पिछले कुछ महीनों में जो भी घटा उसके पीछे केंद्र की महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने की बड़ी साजिश थी। यानि कि दोनों राज्यों के मुख्या ने जमीनी स्तर पर भले ही कुछ ना किया हो लेकिन अंत मे केंद्र सरकार पर अपनी ही गलतियों का पिटारा कर हर विवाद से पल्ला झाड़ लिया।

कोरोना काल मे फेल दोनों सरकारें

इसी साल 2020 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस के साथ मिलकर पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। उद्धव ठाकरे के शपथ लेने के बाद से ही महाराष्ट्र में कुछ भी ठीक नहीं रहा। महाराष्ट्र वो पहला राज्य था जिसने कोरोना काल के दौरान सबसे पहले लॉकडाउन घोषित किया था। लेकिन खराब स्वास्थ्य व्यवस्था और निर्णयों की वजह से महाराष्ट्र कोरोना का गढ़ बनता चला गया। हालात हर दिन के साथ बिगड़ रहे थे लेकिन उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार से मदद मांगना जरूरी नहीं समझा। सत्ता के मोह में उद्धव ठाकरे इतना उलझ चुके थे कि स्थिति को बिगड़ता देख उन्होनें इसका दोषी सीधा केंद्र सरकार को ही ठहरा दिया।

देश की राजधानी दिल्ली में अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के मूलभूत ढाँचे की बात करने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार की स्थिति भी कुछ महाराष्ट्र की तरह ही हो चली है। दिल्ली में कोरोना का संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है। हर दिन राज्य में कोरोना के रिकॉर्ड मरीज सामने आ रहे है। लेकिन अरविंद केजरीवाल की सरकार के नेता और कार्यकर्ता नगर निगम के मुद्दे को बढ़ा कर केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन कर रहे है। राज्य सरकार का कहना है कि हमने केंद्र सरकार द्वारा जारी हर दिशा-निर्देशों का पालन किया है, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ़ से हमें एक वेंटिलेटर तक नहीं उपलब्ध कराया गया। यही नहीं, टेस्टिंग और पीपीई किट, मास्क माँग के अनुसार नहीं मिले। लेकिन हकीकत ये थी की देश का सबसे बड़ा COVID अस्पताल अमित शाह ने दिल्ली को ही दिया। जिस समय कोरोना अपने चरम पर था, उस दौरान अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर दिल्ली की मदद ना करने का आरोप तो लगाया लेकिन उन्होंने केंद्र के साथ मिलकर काम करने का कोई जरिया नही ढूंढा।

क्या कहती है कानून व्यवस्था?

कानून व्यवस्था के मामले में भी दोनों सरकार बुरी तरह से विफल नजर आयी। कोरोना काल के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने जनता की परवाह किये बिना वैश्विक महामारी को पीछे छोड़ अपना पूरा ध्यान कंगना रनौत के साथ हुए विवाद पर केंदित रखा। शायद ठाकरे सरकार के लिए केंद्र सरकार को घेरने का ये सबसे बेहतरीन मौका था। लेकिन उद्धव ठाकरे अपने ही बनाए रास्ते पर खुद फिसलते चले गए। उनकी ही पार्टी के नेताओं ने कंगना के साथ मोदी सरकार के तमाम दिग्गज नेताओं को लेकर अभद्र टिप्पणियां करनी शुरू कर दी। ना तो प्रदेश की सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करने के बारे में सोचा और ना ही राज्यपाल के साथ मिलकर महाराष्ट्र के लिए कोई जरूरी कदम उठाए। यही कारण है कि जिस जनता ने शिवसेना को वोट देकर सत्ता की चाबी सौंपी अब वही जनता महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात कर रही है।

दिल्ली की बात करें तो इसी साल के शुरुआत में नागरिकता कानून को लेकर हुए प्रदर्शन को केजरीवाल सरकार रोक पाने में कामयाब नही रही। शाहीन बाग का धरना तो 100 दिनों से भी ज्यादा चला। जब दंगे रोकने को लेकर आम आदमी पार्टी सरकार पर सवाल खड़े हुए तो अरविंद केजरीवाल ने इसका जिम्मेदार भी भारत सरकार को ठहरा दिया। मुख्यमंत्री की ओर से तर्क दिया गया कि गृहमंत्रालय ने समय रहते पुलिस उपलब्ध नही कराई। दूसरी तरफ भाजपा का आरोप है कि दिल्ली सरकार पर MCD का 65 हजार करोड़ रुपये बकाया है।दिल्ली सरकार को नगर निगमोंं को 13500 करोड़ रुपये देने हैं। यह राशि तीसरे और चौथे दिल्ली वित्त आयोग द्वारा निगमों के लिए स्वीकृत है। जबकि दिल्ली सरकार MCD के साथ चल रही खींचतान का जिम्मेदार केंद्र सरकार को ठहरा रही है। भाजपा का आरोप है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बताना चाहिए कि बजट का पैसा अभी तक दिल्लीवासियों के हितों में कहां और कितना खर्च हुआ? क्या पिछले 6 वर्षों में एक भी नया कॉलेज, स्कूल, सड़क, हाईवे बनाया गया? इन सवालों का जवाब दिल्ली सरकार ने केंद्र के सहयोग का ना मिलना ही बताया है।

कब तक केंद्र से सवाल करते रहेंगे देश की 2 सबसे बड़े राज्य?

महाराष्ट्र और दिल्ली देश के 2 बड़े राज्य हैं। दोनों ही राज्यों में भले ही केंद्र सरकार से अलग सरकार है लेकिन आखिर कब तक दोनों राज्यों की सरकारें हर स्थिति का जिम्मेदार केंद्र सरकार को ठहरती रहेंगी? कानून व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवा को सुचारू करने में राज्य सरकार की अहम भूमिका रहती है लेकिन पिछले कुछ महीनों की राजनीति ने साबित कर दिया है कि महाराष्ट्र और दिल्ली दोनों ही अपनी हर विफलता का जिम्मेदार केवल केंद्र को ही मानती है।

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