जानें बीते दो दशक में गाँवों में हुए क्या-क्या बदलाव? और क्या हैं भावी सम्भावनाएं?

गाँव से शहर की तरफ पलायन करने वाले लोगो के लिए रोजगार की तलाश के साथ ही गाँव मे शिक्षा की उचित व्यवस्था ना होना भी एक बड़ा कारण है। किसान का बेटा किसान बने ये अच्छी बात है, लेकिन वो पढ़ा लिखा और शिक्षित किसान बने ये बहुत जरूरी है। तभी वो अपने खेत की फसल का उचित दाम लेकर आएगा और ये भी समझ पाएगा कि उसके लिये कौन सी फसल मुनाफे की है और कौन सी नुकसान की?

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भारत को एक कृषि प्रधान देश के रूप में माना जाता है। हमारे देश की कुल जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान कृषि क्षेत्र से आता है। साथ ही देश के 60 प्रतिशत का रोजगार कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे देश में किसानों का और कृषि का कितना महत्व है। बात अगर किसान और खेती की होगी तो वहाँ पर गाँव का नाम भी जोड़ना होगा क्योंकि फसलें गाँव के खेतों में ही लहलहाती हैं, किसी स्मार्ट सिटी के चौराहे पर नही।

ऐसे में अगर हमें कृषि के क्षेत्र को विकसित करना है, तो फिर हमें हमारे किसानों को विकसित करना होगा और किसानों का विकास करने के लिए हमें गाँव का विकास करना होगा। शायद इसीलिए सत्ता के हर सरकार की नजर गाँव के विकास से जुड़े लुभावने वादों पर भी टिकी रहती है। लेकिन क्या गांवों की सूरत बदली है? क्या गाँव की पगडंडियों तक सरकार के वादे पहुँच सके हैं? पिछले दो दशकों में हमारे देश के गाँव में कहाँ तक बदलाव हुआ है, इस पर भी विचार करना जरूरी है। ऐसे में आज के इस लेख में हम यहीं पड़ताल करने की कोशिश करेंगे कि आखिर हमारे गाँव किस हाल में हैं? कहीं शहर की चकाचौंध में हम अपने अन्नाधर को भूल तो नहीं रहे हैं?

बिजली ने जोड़ा आधुनिकता से

अगर बात की जाए गाँव के विकास की तो, विकास का सबसे पहला पैमाना होता है सड़क और बिजली। आज़ादी के बाद ही साल 1960 में सरकार द्वारा देश के हर गाँव में और हर घर में बिजली पहुँचाने का बीड़ा उठाया गया था। गुलामी के बाद आर्थिक कमी से जूझ रहे देश को गरीबी और भुखमरी से निकालने के साथ ही विकास को रफ्तार देने की भी चुनौती मौजूद थी। बिजलीकरण का काम शुरू हुआ और साल 2001 में देश के 44 प्रतिशत गाँव तक बिजली पहुँचा दी गयी थी। इसके बाद साल 2019 के आँकड़े के अनुसार देश के 90 प्रतिशत गाँव में बिजली पहुँच चुकी है। गौर करने वाली बात ये है कि आज़ादी के बाद के 40 सालों में 44 प्रतिशत गाँव में बिजली पहुँचाई जा सकी थी जबकि साल 2001 से 2019 के बीच के 19 सालों में बाकी के 46 प्रतिशत गाँव में बिजली पहुँचाई गयी है।

यानी कि बीते दो दशकों में गाँव के विकास ने काफी रफ्तार पकड़ी है। बिजली के आ जाने से न सिर्फ गाँव के किसानों के जन जीवन में सुधार हुआ है बल्कि इसके साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार देखने को मिला है। पहले खेतों की सिंचाई करने के लिये परम्परागत तरीक़े से सिंचाई की जाती थी, वहीं अब बिजली से चलने वाले मोटर की मदद से सिंचाई सस्ती और काफी सुलभ हुई है। साथ ही बिजली आने से गाँव के लोग भी तरह-तरह की टेक्नोलॉजी से तेजी से परिचित हुए हैं। सही मायनों में बिजली ने गाँव और शहर के अंतर को ही खत्म कर दिया है। अब गाँव के किसान भी स्मार्टफोन से लेकर कम्प्यूटर और इंटरनेट की मदद से दुनिया से जुड़े हुए हैं।

इससे शहरी समाज और गाँव के लोगों के बीच बनी जागरूकता की खाई भी खत्म होती नजर आई है। साल 2018 में भारत सरकार द्वारा जारी किए गए रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल 640,932 गाँवों में बिजली पहुँचाई जा चुकी है। लेकिन वास्तविकता ये है कि हमारे देश के अभी भी 2 करोड़ 30 लाख घर बिना बिजली के रह रहे हैं। उम्मीद है कि आने वाले कुछ ही सालों में देश के हर घर में बिजली की एलईडी चमक रही होगी। एलईडी इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अप्रैल 2019 ने प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना के तहत गाँव में हर घर मुफ्त बिजली का कनेक्शन दिए जाने के साथ ही बिजली की खपत कम करने के लिए एलईडी बल्ब देने का भी ऐलान किया गया है। इसके साथ ही साल 2025 तक देश में एक भी घर बिना बिजली के नही रहने का लक्ष्य रखा गया है।

पगडंडियों की जगह ले रहीं बारहमासी सड़कें

गाँव के विकास का दूसरा सबसे बड़ा पैमाना है सड़क निर्माण। क्योंकि सड़क के माध्यम से ही गाँव शहर से जुड़ता है और विकास के मार्ग पर आगे बढ़ता है। साल 2000 में भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरुआत की गई ताकि हमारे देश की पगडंडियों को पक्की सड़कों में बदला जा सके। इस योजना के अन्तर्गत देश के 1 लाख 78 हज़ार गांवों को पक्की सड़क देने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन योजना शुरू होने के 17 साल बाद तक यानी 22 मार्च 2018 तक भी कुल 17 प्रतिशत गाँव पगडंडियों के सहारे ही रेंग रहे थे।

बेशक तारीफ़ करनी होगी केंद्र की मोदी सरकार की, जिन्होंने इस योजना पर भरपूर काम किया है। साल 2012-13 के बीच इस योजना एक अन्तर्गत मात्र 24,161 किलोमीटर ग्रामीण सड़क का निर्माण किया गया था। जबकि साल 2016-17 में मोदी सरकार के नेतृत्व में कुल 47,447 किलोमीटर की पक्की सड़क बनाई गई है। सड़क और परिवहन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2016 तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत देश में 626,377 किलोमीटर बारहमासी सड़क का निर्माण किया जा चुका है। आंकड़ों के अनुसार अभी भी हमारे देश के कई सारे गाँव तक सड़क पहुँचाने का काम किया जाना बाकी है। बेशक सड़क निर्माण के साथ ही देश के गाँव शहर की धड़कन से जुड़ सके हैं। इससे गाँव में भी शहर जैसी सुविधाएं और चीजें उपलब्ध होने लगी हैं।

किसान का बेटे का शिक्षित किसान होना जरूरी है

हमारे देश के विकास का रास्ता गाँव के विकास से होकर जाता है। गाँव के विकास का अर्थ है वहां के लोगो का विकास, यानी कि किसानों का विकास या परम्परागत कार्य करने वाले लोगों का विकास। लेकिन समय परिवर्तन के साथ ही अब किसी व्यक्ति के विकास के लिए सिर्फ़ उसे अपने काम में ही माहिर होना पर्याप्त नही है, बल्कि उसका शिक्षित होना भी जरूरी है। आजादी के बाद से ही हमारे गाँव तक शिक्षा का दीप जलाना बहुत बड़ी चुनौती रहा है। गाँव से शहर की तरफ पलायन करने वाले लोगों के लिए रोजगार की तलाश के साथ ही गाँव मे शिक्षा की उचित व्यवस्था ना होना भी एक बड़ा कारण है। किसान का बेटा किसान बने ये अच्छी बात है, लेकिन वो पढ़ा लिखा और शिक्षित किसान बने ये बहुत जरूरी है। तभी वो अपने खेत की फसल का उचित दाम लेकर आएगा और ये भी समझ पाएगा कि उसके लिये कौन सी फसल मुनाफे की है और कौन सी नुकसान की?

अगर बात करें गाँव में शिक्षा की तो अभी भी इस क्षेत्र में हमें काफी सुधार लाने की जरूरत है। महज प्राथमिक विद्यालय खोल देने, मुफ़्त भोजन और शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराने से ही निरक्षरता को खत्म करने पर मजबूत प्रहार नहीं किया जा सकता है। योजना को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए अभी सरकार को और ज्यादा निगरानी करने की जरूरत है। गांव में मौजूद ना जाने कितने प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जहाँ पर बच्चों की कमी होने के साथ ही योग्य शिक्षक और संसाधन की भी कमी देखने को मिलती है।

आंकड़ों के मुताबिक गाँव के 14 से 18 साल के बीच के किशोरों में से तक़रीबन 25 प्रतिशत आबादी यानी कि तकरीबन 8 करोड़ 80 लाख लोग ऐसे हैं जो कि अपनी भाषा के शब्द भी ठीक तरह से नहीं पढ़ पाते हैं। (साल 2017 के वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट के अनुसार) गाँव के लगभग 86 प्रतिशत युवा सिर्फ़ स्कूल लेवल तक ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। उसके बाद वो या तो काम धन्धे में लग जाते हैं या फिर पढ़ाई छोड़ देते हैं। ये आँकड़े थोड़े खराब हैं, यानी कि इसमें सुधार की काफी जरूरत है। इसकी सबसे बड़ी वज़ह गाँव में बेहतर शैक्षणिक संस्थानों का ना होना भी है। इसके साथ ही आर्थिक कमजोरी के चलते भी अक्सर युवा शिक्षा छोड़कर काम में लग जाते हैं। ऐसे में सरकारों को ना सिर्फ गाँवों में बेहतर शैक्षणिक संस्थान उपलब्ध करवाने की जरूरत है, बल्कि उनकी बेहतर निगरानी और निम्न शुल्क में शिक्षा उपलब्ध कराने की भी जरूरत है।

कुल मिलाकर बेशक बीते दो दशकों में हमारे देश के गाँवों की स्थिति में व्यापक सुधार हुआ है। बिजली और सड़क मिलने से गाँव भी अब सड़कों की तरह विकास की तरफ बढ़ने लगे हैं। हालांकि अभी भी बहुत काम करना बाकी है, खासतौर पर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करना बहुत जरूरी है। उम्मीद है आने वाले कुछ वर्षों में हमारे देश में स्मार्ट सिटी के साथ ही स्मार्ट गाँवों की भी लम्बी लिस्ट देखने को मिलेगी।

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