लद्दाख में चीन के साथ जारी संघर्ष के बीच क्वॉड (QUAD) समूह को लेकर फिर चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है। इस समूह की स्थापना मुख्यतः एशिया प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन पर ज़ोर देने के लिए की गई थी। हाल के समय में इस क्षेत्र में ऐसी कई घटनाएं देखने को मिली हैं, जिनमें एक तरह से अंतरराष्ट्रीय कानूनों को चुनौती दी गई है। यह कार्य चीन द्वारा बड़ी बेशर्मी के साथ किया गया। मामला चाहे दक्षिण चीन सागर का हो या पूर्वी चीन सागर का या फिर मेकांग नदी जल साझेदारी का, चीन हमेशा अंतरराष्ट्रीय मर्यादाओं की अवमानना करता चला आ रहा है। चीन के आक्रामक और अड़ियल रवैये को देखते हुए यह अति-आवश्यक हो गया है कि क्वॉड को जल्द-से-जल्द एक सशक्त संगठन के तौर पर बनाया जाए।
क्वॉड की स्थापना और उसका उद्देश्य
द क्वाड्रीलैटरल सिक्युरिटी डायलॉग (क्यूसिड) जिसे क्वॉड (QUAD) के नाम से भी जाना जाता है जिसकी स्थापना का विचार सबसे पहले हाल ही में पीएम पद छोड़ने की घोषणा करने वाले जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने 2007 में रखा था। 2011 में इसकी पहली औपचारिक शुरुआत हुई। मूलतः इसके तीन सदस्य थे- अमेरिका, भारत और जापान। इसे प्रजातांत्रिक देशों के समूह के रूप में रेखांकित किया गया क्योंकि इसमें शामिल सभी देश प्रजातांत्रिक हैं। 2011 के पश्चात लंबे समय तक इस समूह की गतिविधियां सीमित रहीं। इस बीच ऑस्ट्रेलिया भी इस समूह में शामिल हो गया।
ऑस्ट्रेलिया शुरू में इस समूह में सक्रीय भागीदारी के लिए उत्सुक नहीं था, लेकिन अब उसकी ओर से कोरोना वायरस फैलाने के लिए चीन को उत्तरदायी ठहराए जाने के बाद से उसके और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है। आज ऑस्ट्रेलिया न सिर्फ इस समूह में सक्रीय भागीदारी निभा रहा है बल्कि चीन के खिलाफ खासा मुखर भी हो गया है। वहीं, क्वॉड समूह में वियतनाम, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड को भी शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। क्वॉड समूह की बढ़ती सक्रियता से चीन खासा चिंतित हो उठा है। हाल ही में चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा था कि भारत को ऐसे समूहों का सदस्य नहीं बनना चाहिए। ऐसा चीन तब कह रहा जब वो लद्दाख सीमा पर अपनी आक्रामकता नहीं छोड़ रहा। हालांकि भारतीय सेना चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है।
21वीं सदी है एशिया की सदी
शीत युद्ध के बाद और खासकर 9/11 की घटना के बाद अंतरराष्ट्रीय पटल पर एशिया प्रशांत क्षेत्र की महत्ता काफी बढ़ गई है। आज 21वीं सदी को एशिया की सदी माना जा रहा है। वहीं, चीन अपनी आर्थिक ताकत के नशे में चूर होकर इसे अपनी सदी बनाने पर आमादा है। इसके साथ ही वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका के एक मात्र महाशक्ति के दर्जे को हथियाना चाहता है। 2013 के बाद जैसे ही चीन के नए राष्ट्रपति शी चिनफिंग पद पर काबिज़ हुए तभी से उनकी महत्वकांक्षा बेलगाम होती चली गई। इसके बाद से चीन की नीति पड़ोसियों के साथ- साथ अन्य देशों के प्रति भी आक्रामक हो गई। चीन मानता है कि क्वॉड (QUAD) समूह उसके खिलाफ बनाया गया है। चीन इसे एक मुद्दा बनाता रहा इसलिए भारत इस समूह में अपनी भागीदारी के प्रति उतना संजीदा नहीं दिखा जितना उसे दिखना चाहिए था।
2014 के बाद भारतीय विदेश नीति में परिवर्तन
2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने से भारतीय विदेश नीति में आश्चर्यजनक रूप से बदलाव आया। इसी के साथ क्वॉड (QUAD) को महत्ता मिलनी शुरू हो गई। अक्टूबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी जापान के दौरे पर गए। वहां उन्होंने परोक्ष रूप से चीन पर प्रहार करते हुए कहा कि 19वीं सदी का विस्तारवाद आज चलने वाला नहीं है। हालांकि पिछले छह वर्षों में मोदी ने चीन से संबंध सुधारने के लिए तमाम पहल की, लेकिन पहले डोकलाम और अब लद्दाख में चीनी सेना की आक्रामकता से यही पता चलता है कि शी चिनफिंग अपने अड़ियल रवैये को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं।
बात करें डोकलाम की तो चिनफिंग को मोदी द्वारा 2017 में यहीं सबसे पहले चुनौती दी गई थी जब भारतीय सेना ने चीनी सेना की राह रोक ली थी। डोकलाम में भारतीय और चीनी सेना का 72 दिनों तक आमना-सामना रहा। अंत में संवाद के माध्यम से इस तनाव को कम किया गया। इसके पश्चात अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री मोदी कोरोना के चलते बदनाम हुए वुहान शहर गए। इसके बाद चिनफिंग अक्टूबर 2019 में महाबलीपुरम आए और इस तरह उनकी मोदी के साथ दूसरी शिखर वार्ता हुई। फिलहाल अब ये साफ हो चुका है कि चीन अपनी बदनीयत से बाज़ नहीं आएगा। ऐसे में भारत को भी अब चीन से उसीकी भाषा में जवाब देना होगा।
चीन को उसी की भाषा में जवाब देगा क्वॉड
चीन के आक्रामक रवैये को देखते हुए यह आवश्यक हो चुका है कि क्वॉड (QUAD) को एक मज़बूत संगठन के रूप में विकसित किया जाए। बिगड़े हालातों के बीच चीन से निपटने के लिए इस समूह ने साझा नौसैनिक अभ्यास करना शुरू कर दिया है। इसे मालाबार नौसैनिक अभ्यास के नाम से जाना जाता है। अभी तक इस अभ्यास में अमेरिका, भारत और जापान शामिल रहे हैं। अब ऑस्ट्रेलिया के भी इस समूह से जुड़ने से ये और सशक्त हो चुका है। गौरतलब है कि 2019 के जी-20 के शिखर सम्मलेन में क्वॉड समूह के शीर्ष नेताओं ने अलग से बैठक की थी। इसके बाद अगस्त महीने में क्वॉड समूह की वर्चुअल बैठक हुई। इस समूह के विदेश मंत्रियों की बैठक अक्टूबर में नई दिल्ली में प्रस्तावित की गई है। क्वॉड समूह की बढ़ती सक्रियता से चीन खासा परेशान है। देखा जाए तो चीन मुख्यतः मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ता रहा है। चीन ने सोचा था कि मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह रक्षात्मक ही रहेगी लेकिन मोदी सरकार ने चीन से दो-दो हाथ करने का फैसला कर लिया है। इससे चीन और चिढ़ गया है।
क्वॉड में नई भूमिका में भारत
आज क्वॉड (QUAD) एक ऐसे प्रभावी अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में उभर रहा है, जिसमें भारत की भूमिका बड़ी अहम होने वाली है। यह भी उल्लेखनीय है कि क्वॉड (QUAD) समूह के देशों ने चीन द्वारा लद्दाख में संकट उत्पन्न करने को लेकर भारत के पक्ष में अपनी आवाज़ बुलंद की है। इस समूह में भारत की बढ़ती भागीदारी एशिया के शक्ति संतुलन को चीन के विपरीत कर सकने में सक्षम साबित हो सकती है। यह समूह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन के लिए प्रतिबद्ध है इसलिए भारत को इसमें अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी। आज चीन को साफ संदेश देने की ज़रूरत है कि वो अपनी विस्तारवादी सोच का दायरा अपने तक ही सीमित रखे नहीं तो उसे इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। वास्तव में भारत को अगर दुनिया की महाशक्ति बनना है तो उसे चीन जैसे देशों को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। चीन जैसे देश भी उन्हीं का सम्मान करते हैं जो बिना झुके अपनी बात मनवाने में यकीन रखते हैं। भारत के पास दुनिया में चमकने का एक अच्छा मौका है, अब देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या भारत इस मौके का फाएदा उठा पाता है या नहीं ?