जानिए भारत के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी के बारे में, 19 साल की उम्र में खुदीराम बोस को क्यों हुई फांसी

आज के दिन शहीद हुए खुदीराम बोस ने भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था। जब खुदीराम बोस को फांसी हुई तब उनकी शहादत के बाद बहुत दिनों तक देश के विद्यालय नहीं खुलते थे और उसके बाद लोग खुदीराम बोस के नाम वाले कपड़ों को पहनकर देश में घूमा करते थे।

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आज 11 अगस्त है आज के दिन भारत का एक वीर देश की आजादी के लिये फांसी के फंदे पर चढ गया था। उस वीर का नाम था खुदीराम बोस। देश की आजादी के लिए जब अहिंसा काम नहीं आई तब देश के वीरों ने क्रांति का सहारा लेकर राष्ट्र को आजाद कराने की मुहिम छेड़ दी। इन सभी क्रांतिकारियों में एक नाम ऐसा भी है जिन्हें 11 अगस्त 1908 को महज 19 साल की उम्र में फांसी दे दी गई थी। अंग्रेजी सत्ता को डराने वाले खुदीराम बोस आज ही के दिन हाथों में गीता लेकर फांसी के फंदे पर चढ गए थे।

“अपनी लाशों से हम तारीख को आबाद रखेंगे, वो लड़ाई होगी अंग्रेज याद रखेंगे।”

हाथ में गीता लेकर, मुस्कुराता हुआ खुदीराम फांसी के फंदे पर चढ़ गया

देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था। आजादी के इस दीवाने ने नौवीं कक्षा में ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी आहुति देने का निश्चय कर लिया था। अपने इसी देश प्रेम के कारण आजादी के दीवाने को 28 फरवरी 1906 को महज 17 साल की उम्र में पहली बार गिरफ्तार किया गया। लेकिन अपनी सूझबूझ के बल पर वे अंग्रेजों को चकमा देकर भाग गए और इसके बाद 2 महीने बाद में दोबारा पकड़ लिए गए।

6 दिसंबर 1908 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट में बोस का नाम शामिल था। इसके बाद क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्स फ़ोर्ट को मारने की जिम्मेदारी भी उन्हें मिली। इसमें उन्होंने प्रफुल्ल चंद चाकी के साथ पाकर किंग्स फ़ोर्ट की बग्गी पर बम फेंका लेकिन दुर्भाग्यवश उस बग्गी में दूसरे अंग्रेज अधिकारी की पत्नी और बेटी बैठी थी जिसके कारण उन दोनों की मौत हो गई और अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें एक रेलवे स्टेशन पर पकड़ लिया। खुदीराम बोस के साथी ने खुद को गोली मार ली जबकि खुदीराम बोस को पकड़ लिया गया।

हमारे लहू से भी आवाज आएगी ‘वंदे मातरम’

कोर्ट में जज ने खुदीराम बोस के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई करते हुए यह निर्णय लिया कि उन्हें मृत्यु दंड दिया जाएगा। 2 मई 1908 के दिन इस 19 साल के लड़के को जब मुजफ्फरपुर की कोर्ट ले जाया जा रहा था तो पूरा देश उसे देख रहा था और वह मुस्कुराता हुआ वंदे मातरम के नारे लगा रहा था। 11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दे दी गई। जिसके बाद पूरे देश में खुदीराम बोस के प्रति भावनाएं और ज्यादा बढ़ गई। गांव-गांव से नौजवान देश पर मिटने के लिए तैयार होने लगे। खुदीराम बोस ने देश में एक नई क्रांति का आगाज कर दिया था। आज उनकी शहादत दिवस पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।

Image Attribution: Unknown author / Public domain

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