अक्सर हमारे देश में लोग रोजगार की तलाश में घूमते रहते हैं। वह या तो सरकार पर निर्भर रहते हैं या फिर सरकार को कोसते रहते हैं! लेकिन बहुत सारे युवक अपने पैरों पर खड़े होकर अपने लिए रोजगार का रास्ता बनाते हैं। ऐसे ही एक रोजगार के लिए रास्ता बनाने वाले युवक का नाम है रईस!.. रईस का जन्म श्रीनगर में पैदा हुआ था। वे यह बताते हैं कि जब कश्मीर में धारा 370 को हटाया गया था, उसके बाद कश्मीर में पहली बार लॉकडाउन लगा और बहुत सारे लोग उस समय खाना भी नहीं खा पाते थे। मेरे दोस्त ने जो पूरे दिन का भूखा था, उसने मुझे कॉल की और मुझसे बोला कि क्या मैं उसके लिए कुछ खाने का इंतजाम कर सकता हुँ? रईस ने कहा अपने दोस्त की गुहार सुनते ही मैं किचन में गया, मैंने टिफिन तैयार किया और अपने दोस्त को खाना पहुंचा कर जब मैं लौटा तो मैंने सोचा कि बहुत सारे लोग बाहर का खाना नहीं चाहते लेकिन भूख के कारण उन्हें अपनी इस बात से समझौता करना पड़ता है और हाइजेनिक खाने को ऑर्डर करना पड़ता है।
उसके बाद महीनों की रिसर्च के बाद उन्होंने अपनी पहली टिफिन सर्विस “टिफिन आ” की शुरुआत की! कुछ महीनों के भीतर ही उन्होंने अपनी एक छोटी सी टीम बना ली। जिसमें उनकी मां और एक सेफ है। उसके बाद हमने मैन्यू डिजाइन किया और खाना बनाना शुरू कर दिया! मैंने इस दौरान डिलीवरी करने के लिए एक छोटी सी नैनो कार खरीद ली !.. उन्होंने बताया कि यह काम कोई आसान नहीं था। बहुत सारी चुनौतियां थी उन्हें पार करना था लेकिन सबसे पहले उस समय इंटरनेट की समस्या हमारे सामने खड़ी हुई! इससे उबरने के लिए हमने ब्रोशर बांटे और मार्केटिंग का मेरा अनुभव इस दौरान बेहद काम आया!
जिस समय हमारे साथ 6 लोग जुड़े हुए थे और करीब प्रतिदिन 100 और आर्डर हम डिलीवर करते थे। श्रीनगर के 70% इलाके को हमने कवर किया। श्रीनगर के कई अस्पताल और बैंक के लोग भी हमारे ग्राहक बन गए। उन्होंने शुरू में खाने का बजट 100रूपये रखा जो कि शाकाहारी था और मांसाहारी खाने का बजट 150 रुपए था। खाना डिलीवर करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई चार्ज हम नहीं लेते हैं। इसके अलावा प्रतिदिन 10000 रूपये की सेल उस समय हो जाती थी।
रईस बताते हैं कि हम अपने खाने में किसी तरह के रंग नहीं मिलाते। मसाले का इस्तेमाल भी कम करते हैं रंग के लिए वह फूल तथा केसर मिलाते हैं। खाना पैक करने के लिए बैग गन्ने से बने बॉक्स का इस्तेमाल करते हैं और लकड़ी से बनी चम्मच देते हैं।
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