भारतीय संस्कृति में ईश्वर का एक अलग ही स्थान है। भारत की भूमि पर बहुत सारे धर्मो ने जन्म लिया है और बहुत सारे धर्म इसी धरती पर पलकर बड़े हुए। लेकिन सांस्कृतिक रूप से यदि हम इतिहास को पढ़ें तो भारत सनातन परंपराओं की भूमि रहा है, मूर्ति पूजा जिसका एक विशेष अंग है। वैसे तो भारत में हिंदुओं के बहुत सारे मन्दिर हैं और प्रत्येक मंदिर की अलग-अलग विशेषता भी है। लेकिन वहीं बिहार के गया में भगवान विष्णु का एक ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान विष्णु के पैरों के चिन्ह अंकित हैं। पितरों का तर्पण करने के बाद लोग भगवान विष्णु के चरणों का दर्शन करते हैं और अपने दुखों से मुक्ति पाते हैं।
क्या है इतिहास?
पुराणों के अनुसार यह माना जाता है कि राक्षस गयासर को धरती पर स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से धर्मवत्ता शिला लाई गई थी। जिसे गयासुर पर रखकर भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया था। इसके बाद इस चट्टान पर भगवान विष्णु के पैरों के निशान बन गए थे। माना जाता है कि दुनिया में विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है जहां पर भगवान विष्णु के पैरों के निशान अंकित हैं।
भगवान विष्णु के इन पद चिन्हों का श्रृंगार लाल चंदन से किया जाता है। इस पर गदा, चक्र और शंख आदि बनाए जाते हैं। यह बताया जाता है कि मंदिर की यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है। भगवान विष्णु का यह मंदिर फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीता कुंड स्थित है। जहां माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। प्रबंध कारिणी समिति के सचिव गजाधर लाल पाठक बताते हैं कि पौराणिक काल में यह स्थान अरण्य जंगल के नाम से प्रसिद्ध था। भगवान श्री राम, माता सीता के साथ महाराज दशरथ का पिंडदान करने यहाँ आए थे। यहीं पर माता सीता ने महाराज दशरथ को बालू से बने पिंड अर्पित किये थे। जिसके बाद यहां से बालू से बने पिंड देने का महत्व माना जाने लगा।