जम्मू कश्मीर के प्राचीन इतिहास से हर कोई वाकिफ है जैसा जम्मू कश्मीर पिछले तीन-चार दशकों में दिखाई दिया वास्तव में जम्मू-कश्मीर वैसा नहीं था। आजादी के 70 सालों में जम्मू कश्मीर को जो दिशा दी गई है। जम्मू कश्मीर की असली पहचान नहीं थी घाटी से घाटी के निवासियों को जिस तरह मार मार कर भगाया गया, उसके बाद से लेकर बहुत समय तक जम्मू कश्मीर पर केवल उग्रवादियों और कट्टरवादी लोगों का शासन रहा। जिन्होंने केवल एक धर्म की भावनाओं का सम्मान किया और दूसरे धर्म की भावनाओं को लगातार अपमानित करने का प्रयास किया।
जम्मू कश्मीर के उन हालातों की गवाही देता है ज़ब एक धर्म के लिए उसकी अवस्थाएं उसकी पहचान बन रही थी और उसी पहचान की बदौलत उनका कत्लेआम किया जा रहा था।शीतलनाथ मंदिर को शीतलेश्वर मंदिर के नाम से भी जानते हैं. यह मंदिर कश्मीर के सबसे पावन मंदिरों में आता है. पश्चिम दिशा की तरफ स्थित मंदिर घाटी में बसे हिंदुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि यह मंदिर करीब दो हजार साल पुराना है। कश्मीर मामलों के जानकार और रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर त्रिलोकी नाथ गंजू ने इस मंदिर के बारे में विस्तार से लिखा है।
मंदिर का इतिहास
इसका जिक्र कश्मीर के आंठवें सुल्तान जाइन अल अब्दीन के इतिहासकार जोनाराजा ने भी किया था। उन्होंने हेतकेश्वरा में इस मंदिर का जिक्र भैरव मंदिर और शीतलेश्वर के तौर पर किया है। इससे साफ होता है कि 15वीं सदी में जब कश्मीर में सुल्तान राज कर रहे थे तो उस समय भी इस मंदिर की अहमियत कहीं ज्यादा थी। कश्मीर के इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर को अफगान शासकों ने जान-बूझकर नष्ट कर दिया था। सन् 1990 में आतंकियों ने इस मंदिर से लगे हवन कुंड को खत्म कर दिया था। इसकी वजह से एक बड़ा संकट पैदा हो गया था। देश में जब आजादी का संघर्ष शुरू हुआ तो उस समय इस मंदिर का कद काफी बढ़ गया। बताया जाता है कि यह मंदिर आजादी के उस महासंग्राम का गवाह बिरहा है जिसके लिए अनेकों शहीदों ने अपनी शहादत दी है।