जानिए बिहार की उस नदी के बारे में, जिसे डायन और मां दोनों कहा जाता है

बिहार में बहने वाली कोसी नदी एकमात्र ऐसी नदी है जिसे मां भी कहते हैं और डायन भी! मां इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह लाखों लोगों को जीवन देती है और डायन इसलिए क्योंकि ये हर साल कई जिंदगियां छीन लेती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 1953 से अब तक कोसी नदी में आने वाली बाढ़ के चलते 5000 लोगों की मौत हो चुकी है।

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क्या कभी आपने किसी ऐसी नदी का नाम सुना है जिसे मां भी कहा जाता है और डायन भी? नहीं सुना होगा लेकिन तिब्बत के रास्ते नेपाल से होते हुए भारत में दाखिल होने वाली कोसी नदी जिसकी लंबाई करीब 730 किलोमीटर है को मां भी कहा जाता है और डायन भी!..यह बिहार के सुपौल जिले से भारत में दाखिल होती है यह नदी कोसी, सहरसा सुपौल, मधेपुरा,किशनगंज, मधुबनी, दरभंगा, अररिया खगड़िया और कटिहार के कई इलाकों को प्रभावित करते हुए बहती है। कोसी नदी अपने साथ जो मिट्टी लेकर आती है उसके चलते इस पूरे इलाके में जमीन बेहद उपजाऊ होती है। लेकिन बरसात में जब कोसी अपने विकराल रूप पर आती है तो पूरे इलाके में तबाही मचा देती है इसीलिए इसे बिहार का अभिशाप या बिहार का शोक भी कहा जाता है।

तटबंध बन जाने से कोसी का पानी एक सीमित क्षेत्र में सिमट गया है।लिहाजा अब जब तटबंध टूटता है तो पानी भारी तबाही मचा देता है। इसके साथ ही कोसी का सारा जहर अब उस गांव को पीना पड़ रहा है जो कोसी तटबंध के अंदर ही छूट गए हैं। ऐसे गांव की संख्या लगभग 3:30 सौ से अधिक है और इनमें लाखों लोग रहते हैं। तटबंध बनने से इसके बाहर से इलाके तो बाढ़ से सुरक्षित हो गए। लेकिन बांध के भीतर के तमाम गांव चक्की के दो पाटों के बीच में फस कर रह गए हैं। सहरसा जिले का वीर गांव एक ऐसा गांव है जो कोसी नदी के पेट में बसा है। इस गांव में रहने वाले नागेश्वर यादव बताते हैं पहले मुश्किल से 5 दिन के लिए कोसी का पानी पीना पड़ता था और जब पानी गांव के खेत में आता था हम लोग इसका इंतजार करते थे क्योंकि पानी के साथ जो मिट्टी आती थी उससे खेत भी अच्छे होते थे और उसका इस्तेमाल भी घर पर करते थे। लेकिन तटबंध बन जाने के कारण पानी तीन-चार महीनों तक खड़ा रहता है। साल में 18 -19 बार-बाढ़ आती है अब धान की फसल अच्छी भी नहीं होती जबकि यहां की मुख्य फसल धान थी। घर की ऊंचाई हमें हर साल बढ़ानी पड़ती है ताकि बाढ़ का पानी घर के भीतर न घुस सके।

इसी गांव के रहने वाले मनोज पासवान का कहना है जहां जमीन मिली वहां से रोज यहां आकर खेती करना संभव नहीं था। ऊपर से उन जमीनों पर आज भी दबंगों का कब्जा है सिर्फ कागज पर ही आवंटन हमारे नाम हुआ है।हम अगर कभी अपनी उस जमीन पर जाते हैं तो दबंग लोग हम से उसका पैसा मांगते हैं। इसलिए गांव के कोई भी लोग तटबंध से बाहर नहीं बस सके, बीते सालों में इन गांवों की स्थिति सुधारने की जगह लगातार खराब हो रही है।

आप इस पूरे मामले से समझ सकते हैं कि बिहार की कोसी नदी विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जो लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करती है यह प्रभाव सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी! चाहे बिहार में किसी की भी सरकार बने बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी कभी इस समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसीलिए बिहार राज्य की स्थिति आज प्रतिदिन खराब होती जा रही है।

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